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अगर आपके अंदर भी हैं ये 'self-destructive'आदतें, तो इन्हें तुरंत बदलें

एक्सपर्ट से जानें क्या है सेल्फ- डिस्ट्रक्टिव बिहेवियर। इसे कैसे पहचाने और कैसे सुधारें। अगर यह आदतें आप पर हावी होने लगें, तो तुरंत परामर्श लें।
Editorial
Updated:- 2021-06-03, 18:46 IST

हम सभी ने किसी न किसी मोड़ पर कुछ गलत फैसले जरूर लिए होंगे। कुछ ऐसे फैसले लिए होंगे जिनका असर हमारे ऊपर बहुत सकारात्मक असर भी नहीं हुआ। ऐसे ही फैसलों ने कभी न कभी हमारे मनोबल को गिराया भा होगा। लेकिन हमें समझना चाहिए कि यही जवीन है। अपनी गलतियों से सीखना ही सबसे बड़ी जीत है। ये मानवीय गलतियां ही हमारे व्यक्तिगत विकास में योगदान देती हैं। आदमी गलतियों से सीखकर ही तो आगे बढ़ता है। हालांकि, कई बार हम यह पहचानने में सक्षम नहीं होते हैं कि हमारे द्वारा चुने गए कुछ विकल्प हमारे जीवन पर नकारात्मक प्रभाव कैसे डाल सकते हैं। इसलिए, यह समझना महत्वपूर्ण है कि सेल्फ-डिस्ट्रक्टिव बिहेवियर क्या है और इसे कैसे बदला जा सकता है। इनके बारे में बता रही हैं, जानी-मानी क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. भावना बर्मी

क्या है self-destructive habit

self destrutuive behaivor

डॉ. भावना बर्मी कहती हैं कि यह ऐसी हैबिट या ऐसा बिहेवियर है, जो हमें कुछ समय के लिए तो राहत देता है, लेकिन हमारी जीवनशैली पर धीरे-धीरे असर डालता है। इन आदतों का हम पर और हमारे जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हम चीजों से उखड़े रहते हैं। किसी भी बात पर या चीज पर खुद को दोष देने लगते हैं और जीवन के हर परिणाम के प्रति नकारात्मक नजरिया रखना शुरू कर देते हैं।

ऐसी आदतों के लक्षण

कुछ ऐसी आदतें हैं जिन्हें आत्म-विनाशकारी व्यवहार की श्रेणी में रखा जा सकता है। ये आदतें हानिरहित लग सकती हैं और संभवतः किसी स्थिति से निपटने का सबसे अच्छा तरीका भी। हालांकि, लंबी अवधि में, ये अंततः नकारात्मक प्रभाव पैदा करेंगे। आपके पेशेवर से लेकर आपके निजी जीवन तक, ये व्यवहार जीवन के सभी क्षेत्रों को प्रभावित कर सकते हैं और आपके मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट ला सकते हैं। डॉ. बर्मी ने ऐसे ही 4 आदतों के बारे में बताया है, जिन्हें हमें पहचानना चाहिए और मदद लेने चाहिए।

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डेडलाइन्स आने पर घबरा जाना

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हममें से अधिकांश आखिरी समय तक काम को नज़रअंदाज करते हैं और फिर जब डेडलाइन सिर पर होती है, तो उसे लेकर पैनिक करने लगते हैं। घबराते हैं जिससे हमें तनाव, स्ट्रेस की समस्या होने लगती है। अगर आपके अंदर यह आदत है, तो जरूरत है इसे तुरंत बदलने की।

कैसे सुधारें : उस डर को दूर करें जो आपको काम शुरू करने से रोक रहा है। टू-डू लिस्ट बनाकर शुरुआत करें, अनुमान लगाएं कि हर काम में कितना समय लगेगा, फिर खुद को उस समय से दोगुना समय दें। अगर कोई काम मुश्किल लग रहा है, तो उसे बांट-बांट कर करें। जैसे-जैसे आप यह काम करती चली जाएंगी आपको खुद अच्छा महसूस होगा और कोई तनाव भी नहीं होगा। जब काम खत्म हो जाए, तो खुद को रिवॉर्ड दीजिए जैसे किसी हॉबी को पूरा करें या फिर अपनी मनपसंद का शो देख लें।

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नए लोगों से मिलना छोड़ देना

कभी-कभी खराब अनुभवों के कारण हम खुद को उन चीजों से दूर कर लेते हैं। आप भी ऐसा ही करती होंगी। खुद को लोगों से दूर कर लेना। लोगों से न मिलना, खुद को आइसोलेट कर लेना दूसरी ऐसी आदत है, जो हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती है। बुरे अनुभवों को खुद पर हावी न होने दें और नए लोगों से घुलना-मिलना बिल्कुल न छोड़ें।

कैसे सुधारें : हर महीने एक जरूरी अवसर में शामिल होना शुरू करें। चाहे वो दोस्तों के साथ हैंगआउट करना हो या फिर परिवार के साथ लंच, कुछ भी हो दूसरे से दूरी न बनाएं। जब आप इन चीजों में सहच महसूस करने लगें, तो महीने में दो-तीन बार आउटिंग में जाना शुरू करें। जब आप इन सोशल मीटिंग्स में जाने लगेंगी, तो लोगों से भी मिलेंगी। खुलकर बात करें और खुद को आइसोलेट बिल्कुल भी न करें।

भावनाओं को छिपाना

hiding emotions

कभी-कभी हमें नकारात्मक भावनाओं से निपटना की बजाय उनसे दूर हो जाना या उन्हें छिपाना बेहतर लगता है। जब हम ऐसा बार-बार करने लगते हैं, तो ये नकारात्मक भावनाएं हमारे मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती हैं। इन्ही चीजों से Self-Destructive आदतों को बढ़ावा मिलता है।

कैसे सुधारें : अपनी पावरफुल फीलिंग्स को स्वीकार करना कभी डरा देने वाला होता है, लेकिन आप इनसे तब छुटकारा पा सकती हैं, जब आप उन्हें लिखना शुरू करें। इसके लिए एक जर्नल तैयार करें और हफ्ते या रोजाना जैसा आप चाहें. इसमें अपनी भावनाओं को लिखें। आप कैसा महसूस करती है, क्या गलत लगता है और क्या अच्छा सब कुछ इसमें लिखें। अगर यह सब करने से चिंता बढ़ रही है और आप उस पर नियंत्रण नहीं कर पा रही हैं, तो किसी प्रोफेशनल से मदद लें।

दूसरों को नुकसान पहुंचाने के बारे में सोचना

जी हां, किसी झगड़े में या मनमुटाव में हमें ऐसा लगता है कि हम सामने वाले के साथ भी बुरा करें। लेकिन जब यह भावना आप पर हावी होने लगे तो समझिए कुछ गड़बड़ है। खुद की स्थिति ठीक करने के बजाय हम दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश में जुट जाते हैं। दूसरों को चोट पहुंचाने के तरीके सोचने लगते हैं, जो चीजों को देखने का आपका नकारात्मक नजरिया भी दर्शाता है।

कैसे सुधारें : ऐसे लोग दूसरों के प्रति असभ्य होते हैं। दूसरों को चोट पहुंचाने से बेहतर है आप अपने जीवन पर ध्यान दें। इसलिए हर दिन किसी व्यक्ति को, कोई भी हो, उसे अच्छा कहने का लक्ष्य बना लें। दूसरों के प्रति जब आप दयालु होंगी, तो खुद में सकारात्मक बदलाव महसूस करने लगेंगी। इससे धीरे-धीरे आपका माइंडसेट भी बदलेगा और आपको सुकून मिलने लगेगा।

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Image Credit : freepik images

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