मां बनना हर महिला का सपना होता है। मगर इस सपने के पूरा होने के साथ जहां एक तरफ खुशियां आती हैं वहीं दूसरी तरफ जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं। यह जिम्मेदारियां बच्चे की उम्र बढ़ने के साथ ही और भी अधिक हो जाती हैं। मम्मियों को सबसे ज्यादा दिक्कत बच्चे के बड़े होने पर उसे पॉटी ट्रेनिंग देने में आती है। क्योंकि बड़े बच्चे को हर वक्त डायपर्स पहना कर नहीं रखा जा सकता है। ऐसे में अगर बच्चे को सही पॉटी ट्रेनिंग न दी जाए तो मां को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
दिल्ली स्थित फॉर्टिस हॉस्पिटल की सीनियर गायनाक्लॉजिस्ट डॉक्टर मधु गोयल कहती हैं, ‘बच्चा जैसे ही बैठना सीख जाए उसे पॉटी ट्रेनिंग देनी शुरु कर देनी चाहिए। अगर बिगनिंग से ही बच्चे को इसकी आदत पड़वा दि जाए तो मां को आगे चलकर दिक्कत नहीं होती।’ मगर पॉटी ट्रेनिंग भी स्टेप बाइ स्टेप देनी चाहिए। डॉक्टर मधु गोयल इन स्टेप्स के बारे में बताती हैं।
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मां को सबसे पहले बच्चे को बोल कर समझना चाहिए कि उसे पॉटी आने पर मां को संकेत देना है। इसके लिए मां को कई बार बच्चे से टॉयलेट और पौटी आने के बारे में पूछना चाहिए। एक ही शब्द को बार-बार दोहराने पर बच्चा उसका मतलब समझने लगता है। खासतौर पर जब बच्चा 18 से 20 महीने का हो जाता है तो उसे चीजों को मतलब कुछ-कुछ समझ आने लगता है। अगर मां बच्चे को बार-बार पूछेगी तो जब भी उसे पॉटी की जरूरत महसूस होगी वह मां को संकेत देगा।
जब बच्चा पॉटी, पू या टॉयलेट जैसे शब्दों को समझ लेगे तो वह आपको संकेत जरूर देगा। यह संकेत बच्चा किसी भी तरह दे सकता है। हो सकता है कि जब बच्चे को पॉटी आए तो वह अपना पेट पकड़ ले, मुंह से कुछ आवाजें निकाले या यह भी हो सकता है कि वह चेहरे के एक्सप्रेशन से आपको यह बात समझाने की कोशिश करें। यह बात आपको रीड करनी होगी। कई बच्चे जब पॉटी आती है तो शांत हो कर बैठ जाते हैं या फिर किसी विशेष स्थान पर जा कर खड़े हो जाते हैं। बच्चों की आदतों और संकेत को आपको समझना होगा।
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बच्चे को पॉटी की सही ट्रेनिंग देने के लिए उसे पॉटी पर बैठाएं। हो सकता है कि बच्चा कुछ दिन पॉटी पर बैठने पर रोए। ऐसे में उसके साथ जबरदस्ती न करें। थोड़े-थोड़े दिन के अंतर में बच्चे को पॉटी पर बैठाएं। कुछ समय बाद बच्चे को पौट पर बैठने की हैबिट हो जाएगी। बच्चे को रोज पॉटी पर बैठाने से एक फायदा यह भी होगा कि बच्चे को जब भी महसूस होगा कि उसे टॉयलेट जाना है वह खुद ही पॉटी पर बैठने लगेगा। बच्चे को थोड़ा और बड़े होने पर आप उसे कमोट पर भी बैठा सकती हैं। इसके लिए आपको बच्चे के साइज की सीट परचेज करनी होगी ताकि बच्चे को बैठने में दिक्कत न हो।
पॉटी ट्रेनिंग के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि बच्चे का वॉशरूम जाने का समय तय करें। कई बच्चों को आदत होती है कि कुछ खाते ही उन्हें पॉटी जाना होता है। ऐसे में बच्चे को खाना खिलाने से पहले एक बार वॉशरूम जरूर ले जाएं। अगर बच्चे को फिर भी खाना खाने के बाद ही पॉटी जाना है तो उसे खाना खिलाने कुछ समय बाद वॉशरूम जरूर ले जाएं। इतना ही नहीं सुबह उठने के बाद और सोने से पहले भी बच्चे को एक बार वॉशरूम जरूर लेकर जाएं।
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