भारत में हर घंटे में 3 रेप होते हैं यानी हर 20 मिनट में एक महिला की आबरू पर हमला किया जाता है। यह बात हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि केंद्र सरकारी की एजेंसी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े कहते हैं। यह आंकड़े देखकर सिर्फ रोंगटे नहीं खड़े होते हैं, बल्कि हमें खुद पर शर्म भी आती है।
कोलकाता महिला डॉक्टर रेप और हत्याकांड ने एक बार भले महिला सुरक्षा मुद्दे को गर्मा दिया है। लेकिन हम हर दिन यही सवाल करते हैं कि आखिर कब तक महिलाओं के प्रति ऐसी बबर्रता सुनने और देखने को मिलती रहेगी। पहले निर्भया, फिर दिशा और अब अपराजिता...आखिर कब तक महिलाओं और बच्चों के प्रति ऐसे जघन्य अपराध होते रहेंगे और फिर वही आंदोलन और कानूनों में बदलाव की कड़ी चलती रहेगी।
महिलाओं की सुरक्षा का जिम्मा सिर्फ कानून के माथे नहीं है, बल्कि मां-बाप, परिवार और समाज के हिस्से भी आता है। कहते हैं ना पहला स्कूल घर होता है और पहले शिक्षक मां-बाप होते हैं। ऐसे में अगर कुछ बदलाव लाना है, तो इसकी शुरुआत भी घर से ही हो सकती है।
मां-बाप की सीख और परिवार के संस्कार एक व्यक्ति की विचारधारा को बनाते और आकार देने में मदद करते हैं। बच्चा, वही देखता और सिखता है जो उसके मां-बाप, परिवार या आस-पास के लोग कहते और करते हैं। अगर हम चाहते हैं कि महिला सुरक्षा को लेकर समाज में एक सकारात्मक बदलाव आए, तो यह जरूरी है कि मां-बाप अपने बच्चों को समानता, सम्मान और समझदारी जैसे वैल्यूज-एथिक्स सिखाएं।
बच्चों को छोटी ही उम्र में ही सिखाएं कि सभी सामान है, फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष। जेंडर के आधार पर भेदभाव को खत्म करने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि बचपन में ही बच्चे को समानता और सम्मान के मूल्य सिखाए जाएं।
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बच्चों को सिर्फ शिक्षा देने से काम नहीं चलेगा, इसके लिए आपको अपने घर और परिवार में भी वही वैल्यूज लागू करनी होंगी। अगर, बच्चे का पिता अपनी पत्नी, बहन या मां को सम्मान नहीं देता है तो वही बच्चा भी सीखेगा। अपने बेटे या बेटी को यह जरूर सिखाएं कि सम्मान और आदर सभी का करना चाहिए। यह महिलाओं के लिए नहीं, बल्कि सभी लोगों के लिए लागू होता है।
मां-बाप और परिवार की जिम्मेदारी होती है कि बच्चे को स्वतंत्रता और अधिकार के बारे में जरूर बताएं। बच्चे को बचपन से ही सिखाएं कि जितनी स्वतंत्रता आपको है, उतना ही सामने वाले की भी है। ऐसा नहीं है कि सभी सीख बच्चों को देनी है, यह घर के बड़े और बुजुर्गों के लिए भी जरूरी है कि समय के साथ वह सोच को बदलें और घर में बेटा और बेटी में स्वतंत्रता और अधिकारों को लेकर भेदभाव ना करें।
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मां-बाप और परिवार की जिम्मेदारी होती है कि वह ध्यान रखें कि बच्चा किस तरह की फिल्में और टीवी शोज देख रहा है। क्योंकि फिल्मों और टीवी शोज का असर बच्चे के दिमाग पर सीधा पड़ता है। ऐसे में हमेशा ध्यान रखें कि आपका बच्चा, नकारात्मक विचारों वाला कंटेंट ना देखे।
डिजिटल युग में बच्चे सोशल मीडिया बहुत कुछ सीखते हैं। आजकल छोटे-छोटे बच्चे यूट्यूब और सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं, ऐसे में यह मां-बाप और परिवार की जिम्मेदारी होती है कि वह बच्चों को सीख दें कि क्या सही है और क्या नहीं। साथ ही ध्यान रखें कि उनका बच्चा नेगेटिव या गलत शिक्षा देने वाला कंटेंट तो नहीं देख रहा है।
'देवी' पूजने वाले इस देश और समाज में अगर सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं तो इसकी शुरुआत एक-एक को अपने घर से करनी होगी। आपकी इसपर क्या सोच है, यह हमें कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे जरूर शेयर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
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