रिश्तों को निभाना हमेशा से ही काफी ज्यादा चैलेंजिंग रहा है। पहले के समय में समाज और परिवार के दबाव में या फिर परिवार वालों के समझाने-बुझाने पर रिश्ते टूटने से बच जाते थे, लेकिन आज के समय में कपल्स बहुत लंबे समय तक रिश्तों में कड़वाहट झेलने के बजाय अलग हो जाना ज्यादा मुनासिब समझते हैं। ऐसी स्थितियों में बच्चों की परवरिश करना काफी मुश्किल हो जाता है। तलाक हो जाने पर जब बच्चे की पूरी जिम्मेदारी मां के सिर आ जाए तो उनके लिए घर और बाहर सबकुछ साथ में मैनेज करना आसान नहीं होता। अक्सर ऐसी स्थितियों में मां बहुत ज्यादा तनाव में रहती है और उसका गुस्सा बच्चे पर ही निकल जाता है। ऐसी स्थितियों से बचने के लिए बहुत जरूरी है कि सिंगल मदर कुछ अहम बातों का ध्यान रखें-
बच्चे की अकेले परवरिश करते हुए महिलाओं पर दोहरी ज़िम्मेदारी होती है। इस ज़िम्मेदारी को सही तरीक़े से निभाने के लिए आपको अपना रूटीन सही रखना बेहद जरूरी है। रूटीन सही रहेगा तो बच्चे और आपके खानपान से लेकर सोने जागने जैसी हर चीज का नियम सही बना रहेगा। सही समय पर आराम और खानपान से आप दोनों हेल्दी रहेंगे और इससे बच्चे की परवरिश से जुड़ी हुई ज्यादातर परेशानियों से आप प्रभावी तरीके से निपट पाएंगी। अगर आपने बच्चे को समय पर काम करना नहीं सिखाया तो उसके बिगड़े रूटीन की वजह से आपके लिए भी समस्याएं बढ़ सकती हैं। ऐसे में बच्चे को अनुशासित करने पर आपके लिए भी सहूलियत बढ़ जाएगी और आप बेवजह के स्ट्रेस से भी बची रहेंगी।
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सिंगल पेरेंटिंग में बच्चे मां के साथ रहते हुए उनक पर इमोशनली काफी ज्यादा निर्भर हो जाते हैं। ऐसे में कभी साथ में ज्यादा वक्त बिताने या घूमने की जिद करते हैं। अगर आपके लिए समय निकालना मुश्किल है तो आपको बच्चे को बहुत प्यार से समझाने की जरूरत है। घर चलाने के लिए आपका काम करना भी बहुत अहमियत रखता है, ऐसे में बच्चे के लिए अतिभावुक होने के बजाय चीजों में बैलेंस बनाए रखें और बच्चे को अनुशासित रहने की अहमियत समय-समय पर समझाते रहें। जब आप बच्चों को नियम का पालन करने के लिए प्रेरित करेंगी तभी वे स्वाभाविक तरीके से अपने काम वक्त पर करने और आत्मनिर्भर होने की दिशा में कदम बढ़ाएंगे।
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मां और पिता दोनों की भूमिका अकेले निभाना मां के लिए कतई आसान नहीं है। ऐसी स्थितियों में कभी डिप्रेशन या स्ट्रेस में आना बहुत स्वाभाविक है। पति-पत्नी के झगड़ों और नकारात्मक माहौल से आगे बढ़कर आप जब सिंगल पेरेंटिंग की दिशा में आगे बढ़ जाती हैं तो पीछे मुड़कर देखने और दुखी होने की जरूरत नहीं है। इस बात को लेकर मन पर बोझ ना रखें कि परवरिश में आपसे कहीं कोई कमी ना रह जाए। तनाव बढ़े तो दोस्तों और घर-परिवार के साथ हल्के-फुल्के पल बिताना काफी अच्छा रहता है। इससे आप मेंटली रिलैक्स हो जाती हैं और रोजमर्रा की जिंदगी में फिर से पूरी ऊर्जा के साथ काम में लग जाती हैं।
मां अक्सर बच्चे की जिम्मेदारियां पूरी करने और घर के कामों में अपना खयाल रखने के लिए समय नहीं निकाल पातीं। इसी कारण कुछ समय बाद महिलाओं को हेल्थ इशुज, थकान और चिड़चिड़ेपन जैसी समस्याएं महसूस होने लगती हैं। इसीलिए बच्चे का ध्यान रखते हुए अपनी सेहत को लेकर लापरवाही ना करें। जब आप मेंटली और फिजिकली हेल्दी रहेंगी, तभी तो अपने बच्चे का ख़्याल रख पाएंगी। इसीलिए बच्चे के खान-पान और सोने-जागने के साथ अपना रूटीन भी मैच करें ताकि आप और आपका बच्चा दोनों हेल्दी और खुशहाल रहें।
कई बार महिलाएं समस्याओं से अकेले जूझते-जूझते परेशान हो जाती हैं। इस तरह की फ्रस्टेशन ना हो, इसके लिए अपनी जान-पहचान में दूसरे सिंगल पेरेंट्स से भी संपर्क में रहना अच्छा रहता है। मुमकिन है कि आप जिन इशुज से परेशान होती हों, उन पर दूसरे सिंगल पेरेंट्स ने कुछ और रणनीति अपनाई हो, जिससे आप भी सीख ले सकें। ऐसे में आप एक-दूसरे से सीख लेते हुए बच्चे की परवरिश कहीं बेहतर तरीके से कर सकती है और अकेलेपन की फीलिंग से भी बाहर निकल सकती हैं।
तो इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखें और सिंगल परेंटिंग के अहम रोल को प्रभावी तरीके से निभाते हुए बच्चे की परवरिश करने के मुश्किल काम को बना लीजिए आसान।
Image Courtesy: Imagesbazaar
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