होली रंगों और खुशियों का त्यौहार है लेकिन महिलाओं के मन में इस पर्व को लेकर एक झिझक देखने को मिलती है। कई महिलाएं तो इस पर्व के कुछ दिनों पहले से ही घर से बाहर निकलने में डरने लग जाती हैं। अब आप सवाल कर सकते हैं कि क्यों? तो जवाब सिंपल है कि राह चलती महिलाओं को गुब्बारे मारना और उनका मजाक उड़ाना ही कुछ लोगों के लिए होली की परिभाषा है। इसी वजह से महिलाएं होली से पहले ही घर से बाहर निकलते वक्त डर महसूस करती हैं।
सालों से इस त्यौहार पर बतीमीजी होती आ रही है और लोग हर बार बुरा ना मानो होली है कहकर लिमिट क्रॉस कर देते हैं। इसी को देखते हैं हुए हम आज आपके लिए लेकर आए हैं कुछ ऐसे उदाहरण जो साफ-साफ बताते हैं कि होली का पर्व कुछ लोगों के लिए बदतमीजी करने का शानदार अवसर होता है।
क्या है 'बुरा ना मानो होली है' का मतलब
होली के पर्व को मनमुटाव भुलाकर सभी के साथ पर्व मनाने के लिए कहा जाता है कि "बुरा ना मानो होली है।" हालांकि कुछ लोगों ने इस जुमले की परिभाषा को अपने हिसाब से बदल लिया और उनके मुताबिक होली पर कुछ भी करके मात्र "बुरा ना मानो होली है" कह देना सब ठीक कर देता है। इसी मानसिकता के चक्कर में लोग यह भूल गए कि होली को किसी के साथ मनाने के लिए सामने वाले की दिलचस्पी का होना भी मायने रखता है।
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गुब्बारे मारकर ठहाके लगाना कितना है सही?
होली से कुछ हफ्तों पहले ही गलियों और चौराहों में खड़े होकर लोग महिलाओं को गुब्बारे मारना शुरू कर देते हैं। बता दें कि गुब्बारों में सिर्फ पानी ही नहीं बल्कि अंडे, कंडोम और ना जाने कैसी-कैसी चीजों का बेझिझक इस्तेमाल किया जाता है। महिला दिखी नहीं कि गुब्बारा मारा और जोर-जोर से ठहाके लगाए, जैसे कितना बड़ा काम किया है। इन हरकतों की वजह से बहुत सी महिलाओं को परेशानी होती है जो इस ट्रेड को फॉलो करने वाले लोगों की बुद्धि में समझ आ जाना चाहिए। (महिलाओं पर अजीबो-गरीब जोक बनाकर क्यों लगाए जाते हैं ठहाके?)
बहन-बेटियों को रंग लगाते वक्त भूले नहीं कि..
कुछ लोगों को लगता है कि महिलाओं को उनकी हरकतों का अंदाजा नहीं है। खासतौर पर होली जैसे अवसरों पर पुरुष महिलाओं को छूने के 100 तरीके ढूंढते हैं। गाल पर गुलाल लगाते-लगाते हाथ अब शरीर को अन्य भागों तक पहुंच जाता है इस बात का उन्हें कोई अंदाजा ही नहीं होता है जो सरासर गलत है। आप रंग बेशक रंग लगाएं लेकिन भूले नहीं कि रंग लगाने और छूने के बहाने ढूंढने में जमीन आसमान का अंतर होता है।
सालों से चलता आ रहा है यह ट्रेंड
अगर आप सोच रहे हैं कि ऐसा पिछले कुछ समय से हो रहा है तो बता दें कि आप गलत हैं। नीचे दिए 1959 से लेकर 2013 के बीच आए गाने साफ कर रहे हैं कि महिलाओं के साथ सालों से होली के पर्व पर बतीमीजी होती आ रही है।
- "आया होली का त्यौहार, उड़े रंग की बौछार, तू है नार नखरेदार मतवाली रे, आज मीठी लगे है तेरी गाली रे, तक-तक ना मार पिचकारी की धार, कोमल बदन सह सके ना ये मार...." गाना - अरे जा रे नटखट, फिल्म - नवरंग (1959)
- "रंग बरसे भीगे चुनरवाली, रंग बरसे, अरे मैंने मारी पिचकारी तोरी भीगी अंगिया, ओ रंग रसिया रंग रसिया..." गाना - रंग बरसे, फिल्म - सिलसिला (1981)
- "इनको शर्म नहीं आये देखे नाहीं अपनी उमरिया, साठ बरस में इश्क लड़ाए, मुखड़े पे रंग लगाए, बड़ा रंगीला सांवरिया...." गाना - होली खेले रघुवीरा, फिल्म - बागबान (2003)
- "अंग से अंग लगाना सजन हमें ऐसे रंग लगाना, गालों से ये गाल लगा के, नैनों से ये नैन मिला के.....ऊपर ऊपर रंग लगय्यो, ना करिओ कुछ नीचे, मोसे कुछ ना बोल, खड़ी रे चुप से अँखियाँ मीचे..." गाना - अंग-से-अंग लगाना, फिल्म - डर (1993)
- "बलम पिचकारी जो तूने मुझे मारी, तो सीधी साधी छोरी शराबी हो गयी..तेरी कलाई है, हाथों में आई है, मैंने मरोड़ा तो लगती मलाई है...." गाना - बलम पिचकारी, फिल्म - ये जवानी है दीवानी (2013)
बेढंगी होली को क्यों सहन करें महिलाएं?
इन सभी उदाहरणों के बाद यह तो साफ हो गया है कि बुरा ना मानो होली है कहकर बहुत से लोग इस पर्व का गलत फायदा उठाते हैं जो गलत है। त्यौहार सिर्फ पुरुषों का नहीं बल्कि महिलाओं का भी है इसलिए दोनों को इसे सेलिब्रेट करने का बराबर अवसर मिलना चाहिए। इसी लिए मैं यह लिख रही हूं कि होली मनाए, बेढंगी होली बिल्कुल नहीं।
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Photo Credit: Twitter
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