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पांडवों ने क्यों बनवाया था केदारनाथ मंदिर? जानिए कथा

सनातन धर्म में केदारनाथ धाम की बहुत मान्यता है। महाभारत में उल्लेख किया गया कि केदारनाथ मंदिर का निर्माण कैसे हुआ था। 
Editorial
Updated:- 2021-04-27, 11:38 IST

हिन्दू धर्म में केदारनाथ धाम का बहुत महत्व है। इस पवित्र धाम को बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना गया है। केदारनाथ धाम को भगवान शिव का निवास माना जाता है। पुराणों के अनुसार, भगवान भोलेनाथ यहां हर समय विराजमान रहते हैं। हर साल हजारों भक्त भोलेनाथ के दर्शन करने केदारनाथ आते हैं। मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से बाबा के दर्शन करने केदारनाथ जाते हैं उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

इस पवित्र धाम के जुड़ी कई कथाएं हैं लेकिन महाभारत में केदारनाथ धाम से जुड़ी एक कथा का वर्णन है। जिसमें बताया गया है कि केदारनाथ मंदिर का निर्माण कैसे हुआ था। चलिए आपको महाभारत में इस धाम से जुड़ी कथा के बारे में विस्तार से बताते हैं।    

श्री कृष्ण ने पांडवों को बताया पापों से मुक्ति का मार्ग 

pandava with krishna

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, महाभारतके युद्ध में विजय पताका लहराने के बाद पांडवों के सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा बनाया गया। उन्होंने हस्तिनापुर के सिंहासन को चार दशकों तक संभाला। एक दिन पांडव और भगवान श्री कृष्ण महाभारत युद्ध पर चर्चा कर रहे थे। इस दौरान पांडव भगवान श्री कृष्ण से बोले, हे प्रभु हम सभी भाइयों पर अपने ही भाईयों की हत्या का कलंक है। इस कलंक से कैसे मुक्ति पाई जाए? भगवान श्री कृष्ण बोले कि महाभारत के युद्ध में जीत तुम्हारी हुई है लेकिन तुम लोग अपने भाईयों को मारने की वजह से पाप के भागी बन गए हो। इस पाप से तुम्हें सिर्फ भगवान शिव ही मुक्ति दिला सकते हैं। इतना कहकर श्री कृष्ण वहां से चले गए। 

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महादेव की खोज में निकल पड़े पांडव 

उसके बाद से ही पांडव मन ही मन चिंतित रहने लगे और सोचने लगे कि कैसे राज पाठ त्यागकर महादेव की शरण में जाएं। इसी बीच एक दिन पांडवों को श्री कृष्णके देह त्यागने का पता चला। श्री कृष्ण के परमधाम लौटने की बात सुनकर पांडव व्याकुल हो उठे। पांडव अपने गुरू, पितामह और मित्रों को युद्ध में पहले ही खो चुके थे। अब श्री कृष्ण भी साथ नहीं रहे थे। ऐसे में पांडवों ने हस्तिनापुर राज्य परीक्षित के हाथों में सौंप दिया और द्रौपदी के साथ भगवान महादेव की तलाश में निकल पड़े। 

 

महादेव को खोजने हिमालय पहुंचे पांडव

पांचों पांडव और द्रौपदी भगवान महादेव के दर्शन को व्याकुल हो रहे थे। वह सबसे पहले पांडवकाशी पहुंचे लेकिन भोलेनाथ वहां नहीं मिले। उसके बाद पांडव कई जगह गए लेकिन उनके पहुंचने से पहले ही भगवान शिव वहां से चले जाते। एक दिन पांडव और द्रौपदी भोलेनाथ को खोजते-खोजते हिमालय तक जा पहुंचे। भोलेनाथ ने जैसे ही पांडवों को देखा वह छिप गए लेकिन युधिष्ठिर ने उन्हें देख लिया। उन्होंने भगवान शिव से कहा कि हे प्रभु हम आपके दर्शन किए बिना यहां से नहीं जाएंगे। हमने पाप किया है यह बात हम भली भांति जानते हैं। इसलिए आप हमसे छिप रहे हैं। 

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महादेव ने पांडवों को पापों से किया मुक्त

उसके पश्चात महादेव से मिलने के लिए पांडव आगे बढ़ने लगे लेकिन उसी समय एक बैल ने उनपर आक्रमण कर दिया। भीम उस बैल से लड़ने लगे। तभी बैल ने अपना सिर चट्टान में छुपा लिया। भीम ने बैल को चट्टान से बाहर निकालने के लिए उसकी पूंछ पकड़कर खींची तो बैल का सिर धड़ से अलग हो गया। इसके बाद बैल का धड़ शिवलिंग बन गया और उसमें से भगवान महादेव प्रकट हुए। भोलेनाथ ने पांडवों को सारे पापों से मुक्त कर दिया। 

 

केदारनाथ धाम में विराजमान है शिवलिंग

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भगवान भोलेनाथ को सामने देखकर पांडवों ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगी। उसके बाद भगवान शिव ने पांडवों को स्वर्ग का मार्ग बताया और अंतर्ध्यान हो गए। उसके बाद पांडवों ने शिवलिंग की पूजा-अर्चना की. वहीं, शिवलिंग केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। 

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Image Credit: hindirasayan.com, badrinath-kedarnath.gov.in, i.pinimg.com

 

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