ब्रज, श्री कृष्ण और राधा रानी से जुड़ी ऐसी कई पौराणिक कथाएं और लीलाएं हैं जिनके बारे में आज भी बहुत कम लोग ही जानते हैं। उदाहरण के तौर पर, आप में से अधिकतर लोगों को यह पता होगा कि राधा रानी श्री कृष्ण की प्रेमिका हैं और राधा रानी एवं कान्हा ने ब्रज में कई लीलाएं दिखाई हैं, रास रचाया है। श्री कृष्ण से पहले राधा रानी का नाम लेने का वरदान श्री कृष्ण ने ही दिया था। बिना राधा नाम के कृष्ण नहीं मिलते हैं आदि।
इन सभी बातों, धारणाओं और राध-कृष्ण से जुड़ी लीलाओं के बीच क्या आप ये जानते हैं कि जिस ब्रज में कन्हैया और राधा रानी ने जन्म लिया, कि जिस ब्रज को राधा रानी और श्री कृष्ण की लीलाओं का साक्षी माना जाता है, कि जिस ब्रज में कान्हा ने कई राक्षसों का उद्धार किया, कि जिस ब्रज के कण-कण में कान्हा और राधा रानी हैं उसी ब्रज में क्यों सिर्फ राधा नाम लिया जाता है, कान्हा का नहीं। ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से जानते हैं।
ब्रज में कृष्ण नाम क्यों नहीं लिया जाता है?
पौराणिक कथा के अनुसार, जब श्री कृष्ण ब्रज धाम छोड़कर द्वारका चले गये थे, तब राधा रानी समेत ब्रज चौरासी कोस में जितनी भी गोपियां थीं वह कान्हा की विरह पीड़ा में बहुत रोईं थीं। यहां तक कि एक भी ऐसा दिन नहीं जाता था जब उनकी आंखों से आंसू नहीं टपकते थे।
राधा रानी और गोपियों को कान्हा से इतना प्रेम था जिसका आंकलन कर पाना भी संभव न था। कान्हा के जाने के बाद राधा रानी और गोपियों का हाल ऐसा हो गया था कि अगर कोई ब्रज मंडल में कृष्ण का नाम भी ले दे तो वह कृष्ण नाम सुन विरह पीड़ा में बेहोश हो जाती थीं।
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यहां तक कि गोपियां कई-कई घंटों तक बेहोश रहत थीं और जब भी होश में आती थीं तब कृष्ण-कृष्ण पुकारते हुए पुनः मूर्छित हो जाया करती थीं। ब्रज के पुरुषों द्वारा गोपियों का यह हाल देखा नहीं गया। सभी पुरुषों ने यह तय किया कि वह राधा रानी के पास जाकर बात करेंगे।
हालांकि जब सभी गोपियों के परिजन और स्वयं राधा रानी के पिता वृषभान जी श्री राधा रानी के पास पहुंचे तब उन्होंने देखा कि राधा रानी खुद किसी मूरत की तरह एक स्थान पर एक रूप में एक अवस्था में बिना हिलेडुले बैठी हुई थीं और उनके नेत्रों से लगातार आंसू बहे जा रहे थे।
राधा रानी की प्रिय सखी ललिता ने बताया कि आखिरी बार श्री कृष्ण इसी स्थान पर राधा रानी से विदा लेकर गए थे जहां अभी वो बैठीं है और उस दिन से आजतक भी राधा रानी इसी स्थान पर विराजित हैं। राधा रानी के मुंह से एक शब्द, एक ध्वनि तक भी नहीं निकली है।
यह देख वृषभान जी ने यह निर्णय लिया कि वह ब्रज मंडल के मुख्य द्वार पर एक पहरे दार बैठाएंगे और साथ ही, कुछ पहरेदारों को ब्रज के भीतर नियुक्त करेंगे जो इस बात का ध्यान रखें कि किसी भी व्यक्ति के मुंह से कृष्ण नाम न निकले और आगे हुआ भी ऐसा ही।
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ब्रज क्षेत्र में आते ही किसी को भी कृष्ण नाम लेने की अनुमति नहीं थी। ऐसे में जिन लोगों को जब भी कभी कृष्ण पुकारने का मन करता तो वह राधा नाम ले लेते क्योंकि राधा कृष्ण एक ही हैं अलग-अलग नहीं। तो इस तरह ब्रज में तब से लेकर आज तक भी राधे-राधे बोला जाता है।
हालांकि अन्य कृष्ण मंदिर जो ब्रज के बाहर हैं, जैसे कि द्वारकाधीश मंदिर गुजरात या फिर श्री कृष्ण के अलग-अलग स्वरूपों के मंदिर जैसे कि गोविंद देव जी मंदिर आदि सभी मंदिरों में जय श्री कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण कहा जाता है लेकिन सिर्फ ब्रज में राधे-राधे बोला जाता है।
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image credit: herzindagi
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