भारत के पूर्वी हिस्से में स्थित एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य पश्चिम बंगाल है। यह राज्य न केवल साहित्य, कला, संगीत और राजनीति में आगे रहा है, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी इसकी भूमिका अहम रही है। यहां की सभ्यता और इतिहास करीब 4000 साल पुराना माना जाता है। लेकिन मन में अक्सर सवाल आता है कि जब यह राज्य भारत के पूर्व में हैं, तो इसे पश्चिम बंगाल क्यों कहा जाता है? आपको इसका जवाब इतिहास के गलियारों में मिल जाएगा।
अंग्रेजों ने बंगाल को दो भागों में विभाजित किया(Historical Context of Bengal's Partition)
20वीं सदी की शुरुआत में, अंग्रेज भारत पर शासन कर रहे थे, उन्होंने फूट डालो शासन करो की नीति के तहत, बंगाल को 1905 में धार्मिक आधार पर दो भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें पूर्व बंगाल और पश्चिमी बंगाल शामिल थे। इस फैसले का लोगों ने काफी विरोध किया था और 1911 में बंगाल को फिर से एक कर दिया गया था।
आजादी के बाद भी बट गया था बंगाल(1947 Partition And Emergence Of West Bengal)
हालांकि, जब भारत को 1947 में आजादी मिली थी, तो स्वतंत्रता के बाद देश भारत और पाकिस्तान में बट गया था। इसका बंटवारा धार्मिक आधार पर हुआ था और इसका असर बंगाल क्षेत्र पर पड़ा था। बंगाल को भी धर्म के आधार पर दो हिस्सों में बांट दिया गया था। पश्चिम बंगाल, जहां ज्यादातर आबादी हिंदू थी और भारत का हिस्सा बना दिया गया था। पूर्वी बंगाल(बाद में पूर्वी पाकिस्तान) कहा गया, जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा थी और इसे पाकिस्तान का हिस्सा बना दिया गया था। वहीं, 1971 में पूर्वी पाकिस्तान को स्वतंत्र राष्ट्र बना दिया गया, जिसे हम आज बांग्लादेश कहते हैं।
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बंगाल का नाम और उसका गौरवशाली इतिहास(History Of Bengal)
बंगाल जिसे आज हम पश्चिम बंगाल के नाम से जानते हैं। इसका इतिहास 4 हजार साल पुराना है और बंगाल शब्द बंग या वंग से लिया गया है, जो यहां के प्राचीन जनजातीय और भौगोलिक पहचान को दर्शाता है। माना जाता है कि यहां द्रविड़ियन, तिब्बती-बर्मी और ऑस्ट्रो-एशियाई समुदायों ने सबसे पहले निवास किया था और ये समुदाय बंगाल की संस्कृति और भाषा की नींव बने।
मगध साम्राज्य का हिस्सा
7वीं शताब्दी ईसा पूर्व में जब मगध साम्राज्य की स्थापना हुई, तो बंगाल भी इसका अहम हिस्सा था। मगध उस समय का एक शक्तिशाली और प्रभावशाली साम्राज्य था, जिसकी सीमाएं आज के बिहार, बंगाल और आसपास के क्षेत्रों तक फैली थीं। वहीं, सम्राट अशोक के समय में मगध साम्राज्य ने जबरदस्त विस्तार किया था और तब भी बंगाल इसका हिस्सा बना रहा था। उस समय यह साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर फारस तक फैला हुआ था। अशोक के शासनकाल में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार बंगाल में भी हुआ था।
इसके बाद मौर्य और गुप्त वंशों का राज रहा। सिकंदर के समय (326 ईसा पूर्व) बंगाल में “गंगारिदयी” नामक राज्य था जो अपनी सैन्य ताकत के लिए जाना जाता था।
राजा शशांक और पाल वंश
7वीं सदी में राजा शशांक ने बंगाल में स्वतंत्र शासन की नींव रखी और उन्हें बंगाल का पहला स्वतंत्र राजा माना जाता है। उनके बाद पाल वंश आया जिसने लगभग 400 वर्षों तक इस क्षेत्र में शासन किया। पाल शासक बौद्ध धर्म के बड़े संरक्षक थे और नालंदा, विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों की स्थापना उन्हीं के काल में हुई।
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सेन वंश
पाल वंश के बाद, बंगाल पर सेन वंश का शासन रहा। सेन राजाओं ने हिन्दू परंपराओं को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया, लेकिन 13वीं शताब्दी में दिल्ली के मुस्लिम शासकों ने सेन राजाओं को पराजित कर दिया और बंगाल पर नियंत्रण स्थापित कर लिया।
मुगल साम्राज्य
13वीं से 16वीं शताब्दी के बीच, बंगाल में कई मुस्लिम सुल्तानों और स्थानीय शासकों का शासन रहा।16वीं सदी में अकबर के नेतृत्व में मुगलों ने बंगाल को अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया। इस काल में बंगाल एक समृद्ध प्रांत बन गया।
अंग्रेजों का आगमन
मुगलों के शासन के बाद, यूरोपीय व्यापारियों खासकर अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में दस्तक दी और यहीं से बंगाल के आधुनिक इतिहास की शुरुआत मानी जाती है। 17वीं शताब्दी की शुरुआत में पुर्तगाली, डच, फ्रांसीसी और आखिर में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल में व्यापारिक गतिविधियां शुरू कीं। लेकिन धीरे-धीरे, अंग्रेजों ने व्यापार के साथ-साथ राजनीतिक हस्तक्षेप भी बढ़ाना शुरू कर दिया।
प्लासी की लड़ाई
बंगाल के इतिहास में अहम मोड़ तब आया, जब 1757 में प्लासी की लड़ाई लड़ी गई। इस युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराकर सत्ता पर कब्जा कर लिया। यह केवल युद्ध नहीं था, बल्कि ब्रिटिश शासन के भारत में स्थायी जमावड़े की शुरुआत थी। बंगाल पहला ऐसा क्षेत्र बना जहां से अंग्रेजों ने भारत पर राज करना शुरू किया था।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में बंगाल के क्रांतिकारियों और आंदोलनकारियों की अहम भूमिका रही है। उस समय नेताजी सुभाष चंद्र बोस, अरविंद घोष, रासबिहारी बोस और खुदीराम बोस जैसे महान सेनानियों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष को नई दिशा दी थी।
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