भारत एक ऐसा देश है जहां हर धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। इसलिए यहां की सभ्यता विभिन्न संस्कृति को बखूबी बयान करती है। हालांकि, हर संस्कृति की अपनी अलग खूबसूरती है, जिसे एक लंबे संघर्ष के बाद इतिहास के पन्नों पर दर्ज किया है। साथ ही साथ भारत को विभिन्न आस्था का बहुत बड़ा केंद्र भी कहा जाता है।
इसलिए लोग अपनी मुरादों को पूरा करने के लिए मंदिर, मस्जिद, दरगाह, गुरुद्वारा आदि जाते हैं और यकीनन हर जगह लोगों की मुरादें पूरी भी होती हैं। हालांकि, कुछ लोग ज्यादातर दरगाह जाना पसंद करते हैं क्योंकि कहा जाता है कि यहां लोग सच्चे दिल से जो भी दुआ मांगते हैं, वो पूरी होती है। कहने के लिए तो दरगाह मुस्लिम धर्म का तीर्थ स्थल है लेकिन यहां आपको हर धर्म के लोग माथा टेकते दिख जाएंगे।
आप भी यकीनन कई बार दरगाह गए होंगे, लेकिन क्या आपको पता है कि मजार पर हरी चादर क्यों चढ़ाई जाती है? अगर नहीं, तो आइए दरगाह और इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में जानते हैं।
क्या है दरगाह?
दरगाह सूफियों का पूजा स्थल है, जिसे किसी प्रतिष्ठित वली, पीर या संत की कब्र पर बनाया जाता है। कब्र बनाने के बाद लोग इसकी जियारत करने के लिए आते हैं और चादर चढ़ाकर दुआ मांगते हैं। कहा जाता है कि दरगाह पर मांगी गई हर दुआ कबूल होती है। (इस मकबरे में मौजूद है मुगल बादशाह अकबर की कब्र)
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आखिर क्यों चढ़ाई जाती है चादर?
कहा जाता है कि जिस सूफी संत की मजार है उन्हें सम्मान देने के लिए चादर चढ़ाई जाती है। हालांकि, दरगाह पर चादर चढ़ाना इस्लाम का पार्ट नहीं है और ना ही चादर चढ़ाना जरूरी बताया गया है, लेकिन दरगाह पर चादर चढ़ाने का सही मतलबसंत को सम्मान देना है। (क्या सिर्फ तीन बार 'कुबूल है' कहने पर हो जाता है निकाह)
हरा रंग क्यों है जरूरी
हरा रंग इस्लाम धर्म में काफी पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि हरा रंग शांति और खुशहाली का भी प्रतीक है। इसलिए हम देख सकते हैं कि इस्लाम धर्म के झंडे से लेकर दरगाह की चादर तक सभी चीजें हरे रंग की होती हैं। मान्यता है भी कि इस्लाम की स्थापना करने वाले पैगंबर मोहम्मद को भी हरे रंग के कपड़े पहनना काफी पसंद था।
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होती है हर दुआ कबूल
कई लोगों का मानना है कि दरगाह पर चादर चढ़ाने से न सिर्फ दुआ कबूल होती है बल्कि घर में खुशहाली भी आती है। इसलिए लोग मजार के अंदर प्रवेश करने से पहले चादर चढ़ाते हैं और फिर दुआ मांगते हैं। हालांकि, हर बार चादर चढ़ाना जरूरी नहीं है। आप बिना चादर के भी दरगाह में प्रवेश कर सकते हैं।
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