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इस श्राप की वजह से धीरे-धीरे घट रहा है गोवर्धन पर्वत? जानिए इसके पीछे की कथा

हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा या अन्नकूट मनाया जाता है। इस साल 13 नवंबर को यह पर्व देशभर में मनाया जाएगा।&nbsp;&nbsp; <div>&nbsp;</div>
Editorial
Updated:- 2023-11-23, 17:44 IST

गोवर्धन पूजा हिंदू धर्म में बहुत खास पर्व है, जिसे कार्तिक मास की प्रथम तिथि को मनाया जाता है। इस साल 2023 में 13 नवंबर को देशभर में धूमधाम से अन्नकूट या गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाएगा। घरों में गोबर से गोवर्धन बनाकर उनकी पूजा की जाती है और फिर भाई दूज के दिन उनको भोजन करा कर शाम में उनकी विदाई की जाती है। गोवर्धन जी के भोग में लोग अपनी शक्ति अनुसार 56 प्रकार के भोग भी बनाते हैं। बता दें कि गोवर्धन जी को भगवान कृष्ण का ही रूप माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि गोवर्धन जी को भी श्राप मिला हुआ है। इस श्राप के कारण गोवर्धन जी हर दिन घटते जा रहे हैं। तो चलिए बिना देर किए जानते हैं इस कथा के बारे में...

आखिर क्यों हुए थे ऋषि पुलस्त्य गोवर्धन जी पर क्रोधित

govardhan giri

एक पौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार ऋषि पुलस्त्य तीर्थयात्रा करते हुए गोवर्धन पर्वत के पास पहुंचे, ऋषि पर्वत की सुंदरता को देखकर मोहित हो गए। तब ऋषि ने द्रोणाचल पर्वत से निवेदन किया कि आप अपने पुत्र गोवर्धन को मुझे दे दीजिए, ताकि मैं उसे काशी ले जाकर वहां स्थापित कर उनकी पूजा कर सकूं। ऋषि की बात सुनकर द्रोणाचल दुखी हो गए, फिर गोवर्धन बोले मैं आपके साथ चलने के लिए तैयार हूं, लेकिन मेरी एक शर्त है। आप मुझे एक बार जहां भी रख देंगे मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा और दोबारा नहीं हिलुंगा। ऋषि पुलस्त्य ने गोवर्धन पर्वत की बात मान ली और उन्हें साथ ले जाने के लिए तैयार हो गए। जानें से पहले गोवर्धन पर्वत ऋषि से प्रसन्न पूछते हैं, कि मैं इतना लंबा, चौड़ा और बड़ा हुं आप मुझे काशी कैसे ले जाएंगे। इस पर ऋषि गोवर्धन पर्वत से कहते हैं, कि वो अपनी तपोबल और शक्ति से उन्हें उठा लेंगे।

इस वजह से तिल तिल घट रहे हैं गोवर्धन पर्वत

गोवर्धन पर्वत ऋषि के साथ चल दिए, रास्ते में ब्रजधाम आया और उसे देखकर गोवर्धन पर्वत सोचने लगे कि द्वापर के अंत में यहां भगवान श्री कृष्णआएंगे और बहुत सी लीलाएं करेंगे। फिर गोवर्धन पर्वत के मन में यह खयाल आया कि उन्हें ब्रज में ही रूक जाना चाहिए। फिर गोवर्धन पर्वत अपनी शक्ति से ऋषि के हाथों में भार बढ़ाने लगे, भार बढ़ने से ऋषि के मन में यह विचार आया कि उन्हें यही रुक कर विश्राम करना चाहिए। फिर क्या था ऋषि पर्वत को वहीं रखकर विश्राम करने लगते हैं और पर्वत की शर्त को भूल जाते हैं। कुछ देर बाद जब विश्राम कर ऋषि उठते हैं, तो वे गोवर्धन पर्वत को उठाते हैं। लेकिन पर्वत उनसे हिलते भी नहीं और गोवर्धन जी ऋषि से कहते हैं, कि मैंने आपसे पहले ही कहा था कि आप मुझे जहां रखेंगे मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। फिर ऋषि पुलस्त्य गोवर्धन पर्वत को साथ ले जाने की हठ करते हैं, लेकिन पर्वत वहां से टस से मस नहीं होते हैं। 

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ऋषि पुलस्त्य ने गोवर्धन पर्वत को दिया श्राप

govardhan hill

गोवर्धन पर्वत की हठ से ऋषि क्रोधित हो जाते हैं और श्राप देते हैं, कि तुम मेरी मनोरथ पूरी नहीं होने दिया इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूँ की तुम प्रतिदिन तिल-तिल कर धरती में समाहित हो जाओगे और एक दिन ऐसा आएगा जब तुम पूरी तरह से धरती में मिल जाओगे। इस श्राप के बाद से गोवर्धन पर्वतहर दिन तिल-तिल कर धरती में समा रहे हैं और कलयुग के अंत तक यह पूरी तरह से धरती में मिल जाएगें।    

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