मार्गशीर्ष माह में माता अन्नपूर्णा की जयंती मनाई जाती है। हर साल मार्गशीर्ष माह के पूर्णिमा तिथि को माता अन्नपूर्णा की जयंती मनाई जाती है। माता अन्नपूर्णा को मां दुर्गा या पार्वती का ही रूप माना गया है। साथ ही काशी विश्वनाथ से भी माता अन्नपूर्णा का विशेष संबंध बताया गया है। काशी में माता अन्नपूर्णा का भव्य मंदिर है, जहां जाने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। बहुत से भक्तों के मन में यह सवाल रहता है कि अन्नपूर्णा कौन है और माता पार्वती के बीच क्या संबंध है, तो चलिए बिना देर किए जान लेते हैं उनके बारे में विस्तार से।
कौन है माता अन्नपूर्णा?
स्कंदपुराण और काशी खंड में माता अन्नपूर्णा के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। माता अन्नपूर्णा के स्वरूप का वर्णन करते हुए पुराणों में कहा गया है कि वह काफी सुंदर और मनमोहक हैं। उन्हें माता दुर्गा का ही रूप बताया गया है, जो भक्तों पर करुणा करती हैं। माता अन्नपूर्णा के कृपा से कोई भी भक्त भूखा नहीं रहता। माता अन्नपूर्णा को अन्न की देवी कहा गया है, इसलिए उनका नाम भी अन्नपूर्णा है। अन्नपूर्णा का अर्थ है अन्न की पूर्ति करने वाली। माता अन्नपूर्णा को लेकर यह तथ्य भी सत्य है कि वो पूरे सृष्टि में अन्न और भोजन का संचालन करती हैं।
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काशी और मां अन्नपूर्णा का क्या है संबंध?
शास्त्रों के अनुसार यह कहा गया है कि मां अन्नपूर्णा ने ही पार्वती के स्वरूप में भगवान शिव से विवाह किया था। भगवान शिव कैलाश के निवासी थे, लेकिन माता पार्वती कैलाश में रहना पसंद नहीं था। इसलिए भगवान शिव माता पार्वती के साथ काशी रहने आए। भगवान के काशी आने के बाद काशी को भोलेनाथ की नगरी कहा जाने लगा। काशी में माता अन्नपूर्णा का भव्य मंदिर है, जहां स्वयं काशी पति भगवान भोलेनाथ माता अन्नपूर्णा से अन्न की भिक्षा मांग रहे हैं। माता अन्नपूर्णा के नगरी में जो कोई भी जाता है वो भूखा नहीं लौटता है, माता अन्नपूर्णा का यह मंदिर अन्नकूट के दिन खुलता है और उस दिन 56 तरह के भोग लगाए जाते हैं।
भगवान शिव ने क्यों मांगी माता अन्नपूर्णा?
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय जब पृथ्वी पर सूखा पड़ गया था और जमीन बंजर हो गई थी तब शिव जी ने पृथ्वी के जीवों के कल्याण के लिए स्वयं भिक्षुक बन माता पार्वती के अन्नपूर्णा स्वरूप से भिक्षा मांगी थी। भगवान शिव माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगे और उस अन्न को लेकर पृथ्वी गए थे। पृथ्वी लोक में भगवान शिव ने भिक्षा में मांगे उस अन्न को बांट दिया और एक बार फिर पृथ्वी लोक धन-धान्य से संपन्न हो गया। इस दिन के बाद पृथ्वी लोक में अन्नपूर्णा जयंती मनाया जाने लगा।
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