"अभी बच्चा बहुत छोटा है ऑफिस जाने के बारे में मत सोचना, अभी बच्चे को मां की जरूरत है।"
"अरे! तुम बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग नहीं कराती तब ही तो बच्चा इतना कमजोर है। "
"अब अपने बारे में कम और बच्चे की परवरिश के बारे में ज्यादा सोचो।"
"घरवाले और केयर टेकर कितना भी बच्चे को देख ले, मगर मां तो मां ही होती हैं न। मां से अच्छी देखभाल बच्चे की कोई और नहीं कर सकता।"
क्या आप भी हाल-फिलहाल में मां बनी हैं? अगर हां, तो ऊपर कहीं गईं कुछ बातें आपको भी सुनी-सुनी लग रही होंगी या आपने भी वास्तविकता में इससे मिलता-जुलता कुछ अनुभव किया होगा। दरअसल, एक महिला के मां बनते ही लोग उसे काली माता बना देते हैं। सबको लगता है कि उसके 10 हाथ उग आए हैं। मां बनने के बाद महिला घर, बच्चा और ऑफिस सब कुछ एक साथ देख सकती हैं। बड़ी बात तो यह है कि इतनी सारी जिम्मेदारियों को निभाते-निभाते अगर वो कहीं यह कह बैठे कि "इतने सारे काम एक साथ मैं कैसे करूं", तो घरवाले, रिश्तेदार और यहां तक कि कुछ ऐसे लोग जिनसे को लेना देना भी नहीं है, वो भी कह देते हैं "कैसी बातें कर रही हो, मां बन गई हो, अब ये सब तो करना ही पड़ेगा।" मां बनने का अनुभव एक औरत के लिए तब और स्ट्रेसफुल हो जाता है, जब लोग बच्चे से जुड़ी हर चीज का जिम्मेदार उसे ही मानने लगते हैं।
मसलन, मां बनने के बाद एक औरत की अपनी कोई पहचान नहीं रहती है। अब वो मां है और बच्चे से जुड़े सारे काम उसे ही करने है। पति सहित घर के बाकी लोग उसकी मदद तो कर देंगे, मगर यह उनके मूड पर निर्भर करता है। यानी बच्चा तुमने पैदा किया है, तो काम भी तुम ही करो।
जाहिर है, ऐसी परिस्थितियों में एक महिला बहुत सारी छोटी-बड़ी बातों के लिए खुद को ही जिम्मेदार मानने लग जाती है। कई बार तो वो इतना अपराध बोध महसूस करने लगती हैं कि अवसादग्रस्त हो जाती है। मगर यहां यह समझना जरूरी है कि "लोग तो कहेंगे, लोगों का काम है कहना ..." आपको केवल उन बातों पर ही गौर करना चाहिए, जो आपको वाकई जरूरी लगे और खुद को कुछ बातों के लिए कभी दोषी नहीं मानना चाहिए। चलिए आज बात करते हैं कि एक नई मां किन-किन गैरजरूरी बातों के लिए खुद को दोषी मनने लग जाती है।
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ऐसा होता है कि मां बनने के बाद मां जैसी जिम्मेदारी और ममता महसूस नहीं होती । बच्चे के काम समझ नहीं आते और उन्हें करने में अच्छा नहीं लगता है। अगर आपके साथ ऐसा हो रहा है, तो यह नॉर्मल बात है। हालांकि, लोग आपको बहुत सारी नसीहते देंगे, जैसे- बच्चे को चिपकाकर और उसकी तरफ मुंह करके सो। बच्चे को गोदी में रखो, बच्चे को एक मिनट के लिए भी अकेला मत छोड़ो। मगर यदि आपको यह बातें बेतुकी लगती हैं, तो ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है, बल्कि आपको अपने मन की सुनने की जरूरत है।
ऐसा बहुत सारी न्यू मॉम्स के साथ होता है। मां बनने की ट्रेनिंग लड़कियां पेट से लेकर नहीं आती हैं। न ही कोई ऐसी प्राकृतिक शक्ति होती है, कि मां बनते ही महिला को मां के सारे काम समझ में आ जाएं। यह सच है कि ब्रेस्टफीडिंग मां और बच्चे दोनों के लिए फायदेमंद है, मगर आप यदि सही तरह से ब्रेस्टफीडिंग नहीं करा पा रही है तो ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है और हां, रिश्तेदारों के कहने पर कोई ऐसी चीजें खाने की भी जरूरत नहीं है, जो आपकी टेस्ट बड का न मंजूर हो या डॉक्टर ने मना की हो, मगर लोग आपको उसे मिल्क प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए खाने पर जोर दे रहे हों।
कई बार बहुत छोटी-छोटी बातें मां के मन को परेशान करती हैं। जैसे- मेरी अनुपस्थिति में बच्चे का ख्याल कौन रखेगा।, बच्चा बीमार होता है, तब भी मां घबरा जाती है। बच्चे की परवरिश को लेकर भी मां हमेशा चिंता में रहती है। इन सब से ज्यादा जो बात एक नई मां के मन को सताती है, वो यह है कि 'मैं एक अच्छी मां बन पाउंगी या नहीं।' जबकि अच्छी मां की कोई परिभाषा नहीं होती। हर मां अपने बच्चे के लिए अच्छी ही होती है। इस तरह की बातें अगर आपके मन में आएं भी तो परेशान न हों। समय के साथ-साथ बच्चा बड़ा होता है और एक मां के तौर पर आपकी लर्निंग बढ़ती जाती है।
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अपने लिए समय निकालना एक नई मां के लिए बहुत मुश्किल हो जाता है। इससे भी अव्वल मां के मन में अपने लिए समय निकालने का ख्याल भी आजाता है, तो उसे पाप लगता है। वैसे भी खरी खोटी सुनने वालों की तो कोई कमी है नहीं। जो मां के मन में यह भर देते हैं कि जो समय तुम अपनी मस्ती के लिए या खुद को पैंपर करने के लिए निकाल रही हो वो समय तुम्हें अपने बच्चे को देना चाहिए। वहीं मां के मन में भी यही बात आ जाती है कि मैं अपने लिए कुछ करूं उससे अच्छा बच्चे का कोई काम कर दूं।
आपके मां बनने के बाद आपको बधाई और उपहार से ज्यादा लोगों की सलाह मिलेगी। कोई कहेगा घर से बाहर मत जाओ, तो कोई कहेगा नहाओ मत, ये मत खाओ, वो मत पीयो। ऐसे में सारी सलाह को मनना जरूरी नहीं है। लोगों की फ्री की सलाह आपको इमोशनली वीक बना सकती हैं। इसलिए खुद को मेंटली स्ट्रॉन्ग बनने के लिए आपको पहले खुद को खुश रखना है और इसके लिए वो काम करने हैं, जो आपको खुशी देते हों।
ऐसा भी होता है कि आप अपने बच्चे के रंग, फेशियल फीचर और हेल्थ को दूसरे बच्चों से कम्पेयर करने लगती हैं। इसमें कोई बुराई नहीं है, मगर इन बातों को अपने दिल और दिमाग पर हावी न होने दें। आपको यह समझना होगा कि किसी की भी कठ-काठी एक सी नहीं होती है। समय के साथ आपके बच्चे में बहुत सारे बदलाव होंगे।
वर्किंग मॉम्स के लिए यह सबसे बड़ी प्रॉब्लम है। बच्चे को घर पर छोड़कर जब वो ऑफिस जाती हैं, तो उन्हें लगता है कि वो अपने बच्चे के साथ सही नहीं कर रही है। अपने बच्चे का बचपन मिस कर रही हैं। मगर जरा सोच कर देखें कि आज के जमाने में अगर आप कमाने के लिए घर से बाहर नहीं निकलेंगी, तो बच्चे की अच्छी परवरिश कैसे कर पाएंगी।
हां, तो मॉडर्न होने में प्रॉब्लम क्या है। जमाने के साथ चलने में क्या बुराई है। अगर एक मां यूट्यूब देख कर बच्चे का कोई काम सीख रही है या बच्चे की परवरिश में मॉडर्न टूल्स का इस्तेमाल कर रही है, तो अच्छी बात है। इसमें अगर आपको कोई यह कहता है कि आप मॉडर्न हैं, तो दिल पर लेने की जगह दिमाग से जवाब दें। उन्हें बता दें कि वक्त के साथ बदलना किता जरूरी है।
हो सकता है, आपके अनुभव इससे भी अलग हों। मगर इस बात का ध्यान आप रखें कि मां बनने के बाद आप वो तो रहोगे ही न, जो आप पहले थे। सांस लेना तो बंद नहीं करोगे। तो फिर खुश रहें और हर बात के लिए खुद को दोषी न समझें।
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