महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध के आंकड़े हैरान और परेशान कर देने वाले हैं। आज के दौर में जिस तरह से तकनीक और समाज में बदलाव आ रहे हैं, उतनी ही तेजी से अपराधों के स्वरूप भी बदल रहे हैं। हाल ही में एक नया शब्द चर्चा में आया है, डिजिटल रेप। यह शब्द पहली बार सुनने के बाद ऐसा लग सकता है कि इसमें ऑनलाइन या इंटरनेट पर किसी यौन शोषण हुआ है। लेकिन, ऐसा नहीं है। यहां डिजिटल रेप का कनेक्शन उंगलियों से है।
क्या है डिजिटल रेप?
डिजिटल रेप एक गंभीर और संवेदनशील अपराध है। इसे भारतीय कानून में गंभीरता से लिया जाता है। डिजिटल रेप में बिना सहमति के किसी महिला के प्राइवेट पार्ट में हाथ की उंगली या किसी वस्तु को डालना शामिल होता है। डिजिटल रेप शब्द में डिजिटल का मतलब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या इंटरनेट से नहीं, बल्कि उंगलियों से है।
क्या डिजिटल रेप को लेकर है भारत में कानून?

भारत में डिजिटल रेप को लेकर क्या कानून है और इसमें आरोपी को कितनी सजा मिलती है। इसे लेकर हमने इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील नितेश पटेल से बात की है। वकील के मुताबिक, साल 2012 निर्भया कांड के बाद डिजिटल रेप को कानून में बलात्कार की कैटेगरी में शामिल किया गया था। वहीं, अब नए भारतीय न्याय संहिता में भी इसे गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इसका मतलब है कि हाथ की उंगली या अंगूठे को जबरदस्ती प्राइवेट पार्ट में डाला जाता है और पेनेट्रेशन किया जाता है, तो यह यौन अपराध माना जाएगा।
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डिजिटल रेप में कितनी मिलती है आरोपी को सजा?
पुराने आईपीसी IPC की धारा 375 और 376 के तहत दोषी को कम से कम 7 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद की सजा मिल सकती है। वहीं, अगर किसी नाबालिग के साथ डिजिटल रेप होता है, तो आरोपी को पॉक्सो एक्ट के तहत 10 से 20 साल की सजा हो सकती है। वहीं, नए कानून के अनुसार किसी भी महिला के साथ उसकी बिना मर्जी के यौन शोषण होता है तो आरोपी को 10 साल से लेकर जब तक जीवन है तब तक की सजा मिल सकती है। इसके अलावा यौन शोषण के दौरान पीड़िता की मौत हो जाती है, तो फांसी की सजा भी मिल सकती है।
डिजिटल रेप के मामले में कई बार यह भी विचार आता है कि जब शारीरिक संबंध नहीं बना, तो इसे रेप कैसे कहा जाता है। लेकिन, भारतीय कानून में बलात्कार की परिभाषा सिर्फ शारीरिक संबंध तक नहीं है। अगर पीड़िता की मर्जी के बिना किसी भी तरह का यौन शोषण किया जाता है, तो उसे रेप की कैटेगरी में रखा जा सकता है। डिजिटल रेप के मामले में पीड़िता का बयान, मेडिकल रिपोर्ट और साक्ष्य अहम भूमिका निभाते हैं।
शारीरिक ही नहीं, मानसिक भी होता है डिजिटल रेप का असर!
डिजिटल रेप को लेकर कानून तो सख्त है, लेकिन इसके मामले बहुत कम ही सामने आ पाते हैं। ज्यादातर महिलाएं ऐसे मामलों में चुप्पी साध लेती हैं। डिजिटल रेप अस्पताल, घर, सार्वजनिक स्थान यहां तक कि पुलिस हिरासत में भी हो सकते हैं। ऐसे में इसका प्रभाव शारीरिक के साथ-साथ भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक दोनों ही होता है। डिजिटल रेप जैसे यौन शोषण का प्रभाव तब और ज्यादा गंभीर हो सकता है जब पीड़िता बेहोश या शारीरिक रूप से लाचार या मेडिकल केयर में हो, जैसा गुरुग्राम के प्राइवेट अस्पातल में महिला एयर होस्टेस के साथ हुआ।
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