1951 की जनगणना के बाद से, भारत में जातियों की गिनती बंद कर दी गई थी, केवल अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) को छोड़कर। वहीं, इस बार भारत सरकार ने राजनीतिक और सामाजिक मांगों के चलते जाति जनगणना का फैसला लिया है। सरकार का उद्देश्य है कि समाज में जाति आधारित आर्थिक और सामाजिक असमानताओं को समझा जा सके ताकि सरकार समुदायों के हिसाब से बेहतर योजनाएं बना सके। हालांकि, कुछ लोगों को यह भी चिंता सता रही है कि जाति जनगणना होने से जाति के नाम पर और ज्यादा बंटवारा हो सकता है। तो आइए आज हम इस आर्टिकल में जानते हैं कि जाति जनगणना क्या होती है और इसकी शुरुआत कब और किसने की थी।
जाति जनगणना क्या होती है?(What is caste census)
जाति जनगणना का मतलब होता है कि हर व्यक्ति की जाति के बारे में जानकारी एकत्रित की जाती है और उसका रिकॉर्ड तैयार किया जाता है। इस तरह की जनगणना से सरकार को पता चलता है कि अलग-अलग जातियों के लोग देश में कहां-कहां और कितनी संख्या में रह रहे हैं। उनकी आर्थिक और सामाजिक हालत कैसी है। ऐसा करने से सरकार को हर जाति के लोगों की सही स्थिति का पता चल जाता है और यह रिकॉर्ड सही नीतियों और योजनाओं को बनाने में मदद करता है।
जाति जनगणना का इतिहास(Historical Background)
भारत में पहली बार साल 1881 में ब्रिटिश शासनकाल में जाति जनगणना की गई थी। इस जनगणना में लोगों की जाति,धर्म और उनके प्रोफेशन की जानकारी को इकट्ठा किया गया था। उस समय अंग्रेजों का मकसद था कि जनसंख्या को अलग-अलग वर्गों में बांटना और शासन करना। यह प्रथा 1931 तक के बाद तक जारी रही थी, जिसके माध्यम से जाति आधारित डेटा एकत्र किया जाता था।
आजादी के बाद(Post-Independence Scenario)
1947 में भारत आजाद हुआ था और भारत की आजादी के बाद, साल 1951 में पहली बार जनगणना कराई गई थी। उस समय तत्कालानी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने फैसला लिया था कि वह जाति जनगणना नही कराएंगे, क्योंकि उन्हें ऐसा करने से जातिगत भेदभाव बढ़ने के आसार लग रहे थे। हालांकि, सरकार ने अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) की जानकारी को छोड़कर बाकी जाति संबंधी डेटा एकत्र करने की प्रथा को बंद करने का फैसला किया।
1961 में राज्य सरकारों को दिशा-निर्देश
साल 1961 में केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को जाति जनगणना की छूट दे दी थी। उन्होंने कहा था कि अपने-अपने राज्य पिछले वर्गों (OBC) की पहचान के लिए सर्वे कर सकते हैं।
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जनगणना (SECC) 2011(Socio-Economic and Caste Census 2011)
साल 2011 में भारत सरकार ने एक खास जनगणना करवाई थी, जिसे सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) कहा गया। इसका मकसद था गरीबी, रोजगार, शिक्षा और जाति के आधार पर जानकारी इकट्ठा करना। हालांकि, SECC 2011 के दौरान एकत्र किए गए डेटा को सार्वजनिक नहीं किया गया था। कई लोगों ने सरकार पर सवाल उठाए थे और आलोचना की थी।
जाति जनगणना का महत्व(Importance of Caste Census)
- जाति जनगणना कराने से भारत में रहने वाली जातियों की सटीक संख्या का पता चलता है। डेटा के हिसाब से सरकार को कल्याणकारी योजनाओं और नीतियों को डिजायन करने में मदद मिल सकती है।
- विभिन्न जाति समूहों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का पता चल सकता है और उन्हें समानता दिलाने के लिए सरकार मदद कर सकती है।
- जाति जनगणना से प्राप्त डेटा यह सुनिश्चित करता है कि उचित संसाधन उन समुदायों को आवंटित किए जाएं, जिन्हें उनकी सबसे अधिक जरूरत है।
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Image Credit- freepik, jagran
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