5 में 1 लड़की और 20 में एक लड़का बाल यौन शोषण का शिकार होता है। यह आंकड़े हमारे नहीं, बल्कि द नेशनल सेंटर फॉर विक्टिम्स ऑफ क्राइम के हैं। बाल यौन शोषण के मामलों के बढ़ते आंकड़ों को देख किसी के भी रौंगटे खड़े हो सकते हैं। लेकिन, इससे भी भयावह स्थिति तब आती है जब बाल यौन शोषण के मामलों में संवेदनशीलता की कमी और न्याय की धीमी प्रक्रिया देखने को मिलती है। कई बार तो बाल यौन शोषण मामलों में पहले एफआईआर का इंतजार किया जाता है, फिर आगे की कार्रवाई की जाती है। जिसकी वजह से पीड़ित बच्ची या बच्चे के मानसिक और शारीरिक हालत बिगड़ने की स्थिति बन जाती है। इसी समस्या से बचने के लिए पश्चिम बंगाल हेल्थ डिपार्टमेंट ने पॉक्सो एक्ट के नियम पर दिशा-निर्देश जारी किया है।
जी हां, पश्चिम बंगाल ने पॉक्सो मामलों से निपटने के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी किए हैं। निर्देशों में इस बात पर जोर दिया गया है कि राज्य सरकार के सभी अस्पतालों में बाल यौन शोषण के पीड़ितों का मेडिकल टेस्ट अनिवार्य रूप से किया जाए। यहां तक कि उन मामलों में भी मेडिकल टेस्ट किया जाए, जिनकी एफआईआर नहीं फाइल हुई है।
पॉक्सो मामलों में बिना FIR भी होगा मेडिकल टेस्ट
पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य विभाग ने शुक्रवार यानी 3 मई 2025 को आदेश जारी किया है। इस आदेश में स्वास्थ्य विभाग ने कहा है कि पॉक्सो पीड़ितों के मेडिकल एग्जामिनेशन में सामने आने वाली परेशानियों से निपटने के लिए महिला मेडिकल ऑफिसर, यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो अधिनियम,2012) के नियम 27 का पालन ठीक तरह से करें।
क्या है नियम 27?
इसमें पीड़ित बच्चे और बच्ची का मेडिकल एग्जामिनेशन आता है। इस एक्ट के तहत किसी भी तरह का क्राइम हुआ हो उसमें बिना FIR या शिकायत दर्ज के भी मेडिकल टेस्ट होगा। यह मेडिकल टेस्ट, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 1644 के अनुसार किया जाएगा।
पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य विभाग ने शुक्रवार अपने आदेश में कहा, अगर यौन शोषण पीड़िता बालिका है, तो मेडिकल टेस्ट महिला डॉक्टर ही करेंगी। इसके अलावा मेडिकल टेस्ट माता-पिता या किसी अन्य परिवार के व्यक्ति की उपस्थिति में ही किया जाएगा। लेकिन, यह वह व्यक्ति होगा जिस पर बच्चे को भरोसा या विश्वास हो। निर्देशों के मुताबिक, अगर बच्चे के माता-पिता या भरोसेमंद व्यक्ति मेडिकल टेस्ट में शामिल नहीं हो पाते हैं, तो पॉक्सो बोर्ड की महिला डॉक्टर का अस्पताल में रहना अनिवार्य है।
क्यों पश्चिम बंगाल ने जारी किए दिशा-निर्देश?
बता दें, पॉक्सो एक्ट में यह नियम पहले से ही शामिल हैं। लेकिन, कुछ समय से पश्चिम बंगाल के हेल्थ डिपार्टमेंट को नियमों का पालन नहीं करने की शिकायतें मिल रही थीं। इन्हीं शिकायतों को रोकने और नियमों का ठीक ढंग से पालन हो पाए इसलिए पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य विभाग ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
इसे भी पड़ें:18 लड़कियों का यौन शोषण करने के आरोप में स्कूल टीचर हुआ गिरफ्तार, प्रिंसिपल ने भी दिया साथ
दिशा-निर्देश जारी करने के साथ ही स्वास्थ्य विभाग ने सभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों के प्रिंसिपल, वाइस प्रिंसिपल और जिला स्वास्थ्य अधिकारियों को भी चाइल्ड सेक्शुअल एब्यूज मेडिकल टेस्ट में पॉक्सो एक्ट के नियमों का सही तरह से पालन करने पर जोर दिया है। दिशा-निर्देशों पर जोर देने से मेडिकल सिस्टम कितना एक्टिव, जिम्मेदार और मानवीय हो पाता है यह सोचने का विषय हो सकता है। हालांकि, इससे देशभर में नियमों को सिर्फ कागजों पर रखने भर का नहीं, बल्कि पालन करने का संदेश जरूर मिल सकता है।
हमारी स्टोरी से रिलेटेड अगर कोई सवाल है, तो आप हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।
अगर आपको स्टोरी अच्छी लगी है, इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी से।
Image Credit: Freepik
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों