एक अनोखी परंपरा जहां मानसून से पहले धूमधाम से होती है मेंढक की शादी, दूल्हे-दुलहन की तरह सजाए जाते हैं जोड़े

भारत में आज भी कुछ जगहों पर ऐसी रीति-रिवाजों को लोग फॉलो कर रहे हैं, जो सुनने बिल्कुल अनोखे लग सकते हैं। इन्हीं में से एक मेंढक-मेंढकी की शादी। तो चलिए आज इस बारे में विस्तार से जानते हैं। 

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भारत कई धर्मों, जातियों, भाषाओं, संस्कृतियों, परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ कई अलग-अलग समुदाओं का एक मिश्रण देश है। तेजी से आधुनिक होती दुनिया में आज भी भारतीय समाज अपनी संस्कृति और परंपराओं को महत्व देता नजर आता है। यहां कई ऐसे रीति-रिवाज भी हैं, जो कि सुनने में आपको अनोखा लग सकता है। इन्हीं में से एक है मेंढक की शादी करवाने की प्रथा। दरअसल, कुछ राज्यों में ऐसा मानसून से पहले मेंढक जोड़े को दूल्हे-दुल्हन की तरह सजाकर उनकी शादी कराई जाती है। लेकिन, ऐसा क्यों किया जाता है चलिए इस बारे में विस्तार से जानते हैं।

किस राज्य में होती है मेंढक की शादी?

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पहले मेंढक-मेंढकी की शादी पारंपरिक रूप से असम में होती थी, लेकिन अब मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में भी पूरे रीति-रिवाज से ये प्रथा मनाई जाती है। खास बात यह है कि यहां, पारंपरिक हिंदू विवाह समारोह में मेंढकों की शादी कराई जाती है।

मानसून से पहले क्यों रचाई जाती है मेंढक की शादी?

सुनने में अनोखी लगने वाली मेंढक की शादी भारत के कई राज्यों में प्रदर्शित किए जाते हैं। दरअसल, लोक प्रथाओं के जानकारों का मानना है कि मेंढक-मेंढकी की शादी का मानसून से कनेक्शन होता है। क्योंकि मानसून के दौरान मेंढक बाहर निकलता है और टर्राकर मेंढकी को आकर्षित करता है। ऐसे में, मेंढक-मेंढकी की शादी एक प्रतीक के तौर पर कराई जाती है, ताकि उन दोनों के मिलन के लिए बारिश आ जाए। मान्यता यह भी है कि इससे बारिश के देवता प्रसन्न होते हैं और धरती पर बारिश होती है।

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कब कराई जाती है मेंढक-मेंढकी की शादी?

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जब मानसून आने के बाद भी बारिश नहीं होती है और इस कृषि प्रधान देश भारत में सूखे का डर सताता है, तब जून से सितंबर के बीच मेंढक-मेंढकी की शादी रचाई जाती है। इससे पहले नर मेंढक का नाम वरुण यानी पानी का देवता रखा जाता है। वहीं, मादा मेंढक का नाम वर्षा यानी मानसून या बरसात के मौसम के नाम पर रखा जाता है। फिर, दोनों की शादी की जाती है। यह प्रथा भारतीय संस्कृति और परंपरा में इतनी रच-बस गई है कि यह देश भर के कई राज्यों में किया जाने लगा।

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Image credit- Jagran

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