सनातन धर्म में तुलसी को पूजनीय माना गया है। यही वजह है कि कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष द्वादशी पर तुलसी विवाह के पर्व को भी खास महत्वता दी गई है। इस दिन अगर किसी जातक की कोई मनोकामना है या फिर विवाह संबंधित कोई समस्या है, त उनके लिए तुलसी विवाह का दिन सबसे शुभ माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि अगर तुलसी विवाह के दिन भगवान विष्णु के स्वरूप शालीग्राम और तुलसी माता की पूजा कर रहे हैं, तो विधिवत रूप से करनी चाहिए। आपको बता दें, तुलसी विवाह के दिन व्रत रखने से व्यक्ति को सभी परेशानियों से भी छुटकारा मिल जाता है।
अब ऐसे में अगर जो महिलाएं तुलसी विवाह के दिन व्रत रख रहीं हैं, तो इस दिन व्रत कथा पढ़ने का महत्व है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से व्रत कथा के बारे में जानते हैं।
पौराणिकमान्यताओं के अनुसार, दैत्यराज कालनेमी की पुत्री का विवाह जालंधर से हुआ। जो महाराक्षस था। वह अपनी सत्ता में चूर माता लक्ष्मी को पाने की कामना के लिए युद्ध करने लगा। लेकिन समुद्र से ही उत्पन्न होने के चलते माता लक्ष्मी ने जालंधर को अपने भाई के रूप में स्वीकार किया। फिर वहां से पराजित होकर वह माता पार्वती को पाने की लालसा में कैलाश पर्वत पहुंच गया।
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राक्षस जालंधर भगवान शिव का ही स्वरूप लेकर माता पार्वती के समीप गया, लेकिन मां ने उसे पहचान लिया। तब वह वहां से अंतर्ध्यान हो गया। उसके बाद देवी पार्वती ने क्रोधित होकर सारी बातें भगवान विष्णु को सुनाया। राक्षस जालंधर की पत्नी वृंदा पतिव्रता स्त्री थी। उसी के पतिव्रता की शक्ति से जालंधर न तो माता जाता और न पराजित हो पाता था। इसलिए जालंधर का नाश करने के लिए वृंदा के पतिव्रता धर्म को भंग करना भी आवश्यक था।
इसी कारण भगवान विष्णु ऋषि का भेश धारण करके वन में पहंचे। जहां वृंदा भगवान विष्णु की पूजा में लीन थी और उस दौरान वृंदा को राक्षस जालंधर ने कहा था कि वह भगवान शिव को पराजित करके वापस जीवित लौटूंगा। वृंदा अपने पति को जीवित देखने के लिए विष्णु जी की पूजा करने लगी। तभी पूजा करने के दौरान भगवान विष्णु राक्षस जालंधर का रूप लेकर वृंदा के पास पहुंचे। वृंदा को लगा कि मेरा पति जालंधर जीत कर आएं हैं। वह बेहद खुश हुई, जालंधर के भेष में भगवान विष्णु वृंदा के समीप गए और तभी वृंदा को आभास हुआ कि यह मेरे पति जालंधर नहीं है। वह बेहद रोई और भगवान शिव के पास पहुंची। वहां पहुंचकर वृंदा ने देखा कि जालंधर का सिर धड़ से अलग जमीन पर पड़ा था।
यह दशा देखकर वह भगवान विष्णु को बेहद कोसनी लगी और इससे भगवान शिव के साथ भी बेहद नाराज हुए। तभी उन्होंने विष्णु जी को शिला का शाप दे दिया। उस दौरान भगवान शिव शालीग्राम पत्थर बन गए और तभी सृष्टि के पालनकर्ता के पत्थर बन जाने से ब्रह्मांड में असंतुलन की स्थिति बन गई। यह देखकर देवी-देवता वृंदा से प्रार्थना करने लगे कि वह भगवान विष्णु को इस शाप से मुक्ति दिलाए। वृंदा ने भगवान विष्णु को शाप से मुक्त कर स्वयं आत्मदाह कर लिया।
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जहां वृंदा भस्म हुईं, वहां तुलसी का पौधा उग गया। भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा कि हे वृंदा, तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी। तभी विष्णु जी ने कहा कि जो मनुष्य भी मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह करेगा उसे इस परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा।
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Image Credit- HerZindagi
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