भारत देश में हिंदू धर्म वैज्ञानिक आधार और प्राचीन मान्यताओं एवं परंपराओं पर आधारित धर्म है। कहा जाता है कि इस धर्म की स्थापना प्राचीन ऋषि मुनियों और देवी-देवताओं द्वारा की गई है। ऐसे में आज के इस लेख में हिंदू धर्म से जुड़े सोलह संस्कारों के बारे में बात करेंगे। हिंदू धर्म ग्रंथ में इसे लेकर कहा गया है कि सोलह संस्कार मनुष्य के पाप और अज्ञान को दूर कर विचारों को शुद्ध करता है और ज्ञान को बढ़ाता है। धार्मिक ग्रंथों में यह कहा गया है कि यह सोलह संस्कार मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास में विशेष महत्व रखता है।
हिंदू धर्म में सोलह संस्कार कौन से हैं?
1. गर्भाधान संस्कार
इस संस्कार में विवाहित स्त्री के द्वारा मन एवं विचारों को पवित्र कर स्वस्थ रूप से गर्भधारण करती है, तब उसे स्वस्थ एवं बुद्धिमान संतान की प्राप्ति होती है। यह सभी संस्कारों में एक शिशु के लिए पहला संस्कार है।
2.पुंसवन संस्कार
इस संस्कार में जब महिला स्वस्थ रूप से गर्भधारण कर गर्भवती हो जाती है, तब पति और पत्नी मिलकर यह प्रतिज्ञा लेते हैं कि वे मिलकर गर्भ की रक्षा करेंगे और किसी भी प्रकार से गर्भ में पल रहे शिशु को नुकसान न हो इस बात का खास ध्यान रखेंगे।
3. सीमन्तोन्नयन संस्कार
यह तीसरा संस्कार है, जो कि गर्भधारण के 1 या 2 महीने में किया जाता है। इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य गर्भ को पवित्र एवं शुद्ध करना है। इस संस्कार में गर्भ में पल रहे संतान के अच्छे गुण, ज्ञान, कर्म और स्वभाव के विषय में विचार किया जाता है। इस दौरान गर्भवती महिला जैसा आचरण रखती है और जिस प्रकार से वह व्यवहार करती है उसका असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर पड़ता है।
4. जातकर्म संस्कार
यह संस्कार शिशु के जन्म के बाद होता है। माना जाता है कि इस संस्कार के करने से गर्भ में उत्पन्न दोषों को समाप्त किया जा सकता है। इस संस्कार में नवजात शिशु को सोने के चम्मच या अनामिका उंगली से शहद और घी चटाया जाता है। प्राचीन लोगों का मानना है कि घी चटाने से शिशु की आयु बढ़ती है और पित्त व वात का नाश हो सकता है। वहीं, शहद चटाने से कफ का नाश हो सकता है।
5. नामकरण संस्कार
इसके बारे में तो सभी ने सुना होगा। यह शिशु के जन्म के बाद उसके नाम रखने का एक नियम है। यह बहुत महत्वपूर्ण संस्कार है। जन्म लग्न के अनुसार किसी पंडित के द्वारा शिशु का नाम रखा जाता है। नाम का अक्षर भी सुझाया जाता है जिससे परिवार वाले अपने पसंद से बच्चे का नाम रखते हैं और उसके मंगल भविष्य की कामना करते हैं।
6. निष्क्रमण संस्कार
इस संस्कार में शिशु के आयु वृद्धि की कामना की जाती है एवं बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना की जाती है। यह संस्कार शिशु के 4 या 6 महीने पूरे होने के बाद किया जाता है।
7. अन्नप्राशन संस्कार
इस संस्कार में शिशु के समस्त दोषों का नाश होता है, जो मां के गर्भ के दौरान उसमें आ जाते हैं। इस संस्कार से नवजात शिशु को पहली बार अन्न खिलाया जाता है या अन्न से मुंह को जूठा किया जाता है। अन्नप्राशन में बच्चे को अन्न खिलाने के साथ साथ उसे उपहार एवं उनकी लंबी उम्र की कामना की जाती है।
8. मुंडन संस्कार
इस संस्कार में बच्चे के 1, 3,5 या 7 साल पूरा करने पर बाल को किसी धार्मिक स्थल या नदी किनारे उतारे जाते हैं। इस संस्कार को वपन क्रिया संस्कार के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि इस संस्कार से शिशु को बुद्धि, बल और आयु की प्राप्ति होती है।
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9. कर्णवेधन संस्कार
इस संस्कार में बच्चे का कान छेदने का रस्म पूरा किया जाता है। इस संस्कार को शिशु के जन्म के बाद 6 माह से लेकर 5 वर्ष तक कभी भी किया जा सकता है।
10. उपनयन संस्कार
इसे यगोपवित या जनेऊ संस्कार के नाम से भी जाना जाता है। इस संस्कार में बालक को पूरे विधि विधान के साथ जनेऊ धारण करवाया जाता है। प्राचीन धर्म ग्रंथों में यह कहा गया है कि इस संस्कार के बाद बालक को वेदों के अध्ययन करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
11. विद्यारंभ संस्कार
प्राचीन काल में इस संस्कार से बच्चों की शिक्षा प्रारंभ होती थी। विद्वानों और आचार्यों द्वारा शुभ मुहूर्त निकाल कर इस संस्कार को किया जाता था।
12. केशांत संस्कार
पुराने समय में बच्चे विद्या ग्रहण करने गुरुकुल जाया करते थे, जब उनकी शिक्षा पूरी हो जाती थी तब गुरुकुल में बच्चों का केशांत संस्कार होता था। इस संस्कार में बच्चे को पहली बार हजामत (दाढ़ी) बनवाने की अनुमति दी जाती थी। इसे गोदान संस्कार के नाम से भी जाना जाता है।
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13. समावर्तन संस्कार
इस संस्कार में शिक्षा पूरी होने के बाद जब बच्चे शिक्षा समाप्त कर अपने गुरु की इच्छा से घर लौटते थे, तब उस लौटने की प्रक्रिया को ही समावर्तन संस्कार कहा जाता है। इस संस्कार के बाद एक ब्रह्मचारी बालक गृहस्थ जीवन में प्रवेश लेने का अधिकार प्राप्त करता है।
14. विवाह संस्कार
यह जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है जिसमें पुरुष और स्त्री, माता-पिता की आज्ञा से देवी-देवताओं की पूजा आराधना और विवाह नियम के साथ विवाह कर गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करते हैं। (तिलक लगाने का महत्व)
15. विवाह अग्नि संस्कार
इस संस्कार में वर वधु के द्वारा विवाह के दौरान किए गए हवन यानी विवाह अग्नि को शादी के बाद नव विवाहित जोड़े के द्वारा अपने घर में लाकर पवित्र स्थान पर प्रज्वलित किया जाता है। (महिलाओं के लिए शादी के फायदे)
16. अंत्येष्टि संस्कार
यह व्यक्ति के जीवन का आखिरी संस्कार है जिसे मृत्यु के बाद की जाती है। इस संस्कार में घर से अग्नि ले जाकर श्मशान घाट पर शव को चिता पर लेटा कर चिता प्रज्वलित की जाती है।
ये रही हिंदू धर्म की 16 संस्कार जो मनुश्य के गर्भ में प्रवेश करने से लेकर उसके मृत्यु तक होती है। हमे उम्मीद है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा। ऐसे ही धर्म से जुड़े लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी के साथ और यह आर्टिकल आपको कैसा लगा हमें कमेंट कर जरूर बताएं, साथ ही इसे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ भी शेयर करें।
Image Credit: Freepik
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