हिंदू धर्म में देवी-देवताओं के अपने-अपने वाहन होते हैं। हर वाहन के पीछे कोई न कोई पौराणिक कथा या लोक कथा जरूर है। जैसे लक्ष्मी माता का वाहन उल्लू होता है, शिव जी का वाहन नंदी बैल, गणेश जी का वाहन चूहा और माता दुर्गा का वाहन शेर होता है। माता दुर्गा को उनके वाहन की वजह से शेरावाली मां या सिंहवाहिनी भी कहते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर क्यों जंगल का राजा शेर ही माता रानी का वाहन होता है।
इस लेख में हम आपको पौराणिक कथा बताएंगे जिससे आपको पता चलेगा कि मां दुर्गा का वाहन शेर ही क्यों है।
यह तो आप जानते ही होंगे कि माता दुर्गा के नौ रूप होते हैं और हर एक रूप के अलग-अलग वाहन होते हैं। आपको बता दें कि माता के नौ रूप में से माता शैलपुत्री का वाहन बैल होता है जिसे वृषारूढा भी कहते है। माता रानी के दूसरे रूप का नाम ब्रह्मचारिणी है जिनका हिन्दू ग्रंथों में कोई भी वाहन नहीं बताया गया है।
आपको बता दें कि दुर्गा माता के तीसरा रूप चंद्रघंटा, चौथा रूप कुष्मांडा, पांचवा रूप स्कंदमाता और कात्यायनी माता इन सभी का वाहन शेर ही होता है। वहीं माता कालरात्रि का वाहन गर्दभ यानी गधा होता है। इसके बाद माता रानी के आठवें रूप महागौरी का वाहन वृषभ यानी बैल है और मां सिद्धिदात्री का वाहन भी शेर होता है।
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पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है जब शिव भगवान जी कैलाश पर्वत पर अपनी तपस्या में लीन थे। वहीं माता पार्वती काफी समय से भगवान शिव के तप खत्म होने की प्रतीक्षा कर रही थी।
प्रतीक्षा करने के बहुत देर बाद भी जब शिव जी की तपस्या खत्म नहीं हुई तो माता पार्वती कैलाश पर्वत को छोड़कर घने जंगल में तपस्या करने के लिए चली गई।
आपको बता दें कि जब माता पार्वती तपस्या में लीन हुई ही थी की तभी उस घने जंगल में एक भूखा शेर आ गया था। जब उसने एक मनुष्य (यानी माता )को देखा तो उस शेर ने उन्हें अपना शिकार बनाने की सोची और हमला करने के लिए माता की तरफ आगे बढ़ने लगा लेकिन माता के तप की वजह से माता के आस पास एक सुरक्षाचक्र अपने आप उत्पन्न हो गया।
उस सुरक्षाचक्र के घेरे को वह शेर तोड़ कर आगे नहीं जा पाया। फिर वह शेर वहीं पर बैठकर माता के तप खत्म होने का इंतजार करने लगा।
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शेर ने सोचा की जब माता का तपस्या खत्म होगा तो उसके बाद वह शिकार करके अपनी भूख शांत करेगा। वहीं माता दुर्गा की तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हो गए और माता को वापस कैलाश पर्वत पर ले जाने के लिए आ गए।
जब माता पार्वती वहां से वापिस कैलाश पर्वत चलने के लिए उठीं तो उनकी नजर उस भूखे शेर पर पड़ी जो उनका शिकार करने का इंतजार कर रहा था।
अपनी अंतर मन की शक्ति से माता पार्वती को यह पता चल गया कि वह शेर क्या चाहता है। ममता और करुणा के कारण माता पार्वती को उस शेर पर दया आ गई और उन्होंने उसकी प्रतीक्षा को ही तपस्या मान लिया और उसे अपने साथ कैलाश पर्वत पर ले गई और अपने दुर्गा रूप के लिए उस शेर को ही अपना वाहन बना लिया।
आपको बता दें कि मां दुर्गा का वाहन शेर आक्राम स्वभाव और शौर्य का प्रतीक माना जाता है।
तो यह थी जानकारी माता दुर्गा से संबंधित।
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Image credit- pexels/unsplash
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