आजादी तो हर किसी को पसंद होती है मगर, कुछ ही लोग होते हैं जो इसका पूर्ण रूप से अनुभव कर पाते हैं। शहनाज हुसैन भारत की पहली महिला ब्यूटीशियन के रूप में जानी जाती हैं। उन्होंने अपनी राहें खुद बनाई हैं और आजादी का पुरा अनुभव किया है। कुछ कठिनाईयां आईं मगर शहनाज के हौसले कभी नहीं डगमगाए। वह हमेशा आगे बढ़ती गईं और अपनी आजादी को सेलिब्रेट करती गईं।
1.वर्तमान समय में महिलाओं के लिए ‘आजादी’ के मायने क्या हैं, आपके इस पर क्या विचार हैं?
जवाब- मेरे लिए आजादी का मतलब है कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर का दर्जा दिया जाए। महिलाओं को निर्णय लेने का अधिकार मिले। वैसे अब वक्त बदल चुका है और महिलाएं अपने फैसले लेने के लिए फ्री हैं। मगर, अभी भी हमें लंबी लड़ाई लड़नी है। हां हमें ये जरूर पूछना चाहिए, ‘क्या महिलाओं और पुरुषो के लिए आजादी बराबर की है?’, ‘क्या हर महिला आजाद है?’ महिलाओं को अपनी क्षमता और ताकत को समझने की जरूरत है। महिलाओं को पढ़ने और अपने आर्थिक फैसले लेने की आजादी मिलनी चाहिए।
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2.आपके लिए आजादी के मायने क्या है? क्या आपको किसी चीज के लिए आजादी की तलाश है?
एक आजाद देश का नागरिक होना ही मेरे लिए बहुत मायने रखता है। हो सकता है आजादी से अलग-अलग लोग अलग-अलग मतलब निकालते हों मगर मेंरे लिए अपने डिसीजंस खुद लेना अपनी पसंद का काम करना ही आजादी है। मुझे किसी और आजादी की तलाश नहीं है। क्योंकि मुझे किसी ने कोई काम करने के लिए आजतक नहीं रोका।
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3.आपको बचपन से लेकर अब तक किन भावनात्मक बंधनों का सामना करना पड़ा है?
मैंने कभी किसी तरह का बंधन महसूस नहीं किया है, जबकि मैं एक रूढि़वादी परिवार से हूं। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे ब्रॉडमाइंडेड और ऑक्सफोर्ड से पढ़े हुए पिता मिले। उन्होंने मुझे कॉन्वेंट में पढ़ाया। मेंरी शादी 15 की उम्र में कर दी गई थी और 16 वर्ष में मैं मां बन गई थी। जब मैंने अपना करियर शुरू किया था तब मैं पत्नी और मां दोनों ही थी। मगर मेरे पिता और पती दोनों ही बहूत सपोर्टिव थे। मैं भी बहुत हार्डवर्किंग थी। मुझे मेरे हार्डवर्क और पिता और पति के सपोर्ट ने सफलता दिलाई।अपनी लाइफ के फैसले खुद लेने से मिलेगी सच्ची खुशी- नियाजमीन दहिया
4.एक महिला के तौर पर आपको किन स्टीरियोटाइप बातों को फेस करना पड़ा है?
महिलाओं को पुरुषों के सामान वेतन नहीं मिलता, न ही उनकी क्षमता को पुरुषों जैसा आंका जाता है। यह मेरे उापर एप्लाई नहीं होता क्योंकि मेरा खुद का व्यवसाय है। मेरी आत्मा स्वतंत्र है और मैं अपने विचारों को वास्तविक्ता में बदलने का हौसला रखती हूं।
5.हम जब महिलाओं को सशक्त बनाने की बात करते हैं तो क्या आप उस पर काम भी करते हैं? या सिर्फ बातें ही करते हैं?
वक्त बदल चुका है और लगातार बदलता जा रहा है। महिलाएं हम हर श्रेत्र में नजर आ रही हैं। मगर, अभी उन्हें और आगे बढ़नता है। खासतौर पर एजुकेशन और आर्थिक आजादी के लिए महिलाओं को अभी भी ठोस कदम उठाने होंगे। अब बात जब इक्वालिटी की करते हैं तो या बात सुप्रियोरिटी की नहीं हो रही है। महिलाओं को अपनी स्किल्स को डेवलप करना है और नई ट्रेनिंग लेनी है जो उनके लिए ढेर सारी करियर के अवसर लेकर आए।भारत की पहली Woman Flair Bartender, अमी श्रॉफ बनीं #BandhanNahiAzadi मुहिम का हिस्सा
6.क्या आपको इस बात का कभी भी एहसास हुआ कि आप ‘महिला’ हैं इसलिए चीजें आपके लिए आसासन हैं? अगर हां, तो आपको ऐसा कब लगा और कैसे लगा?
मुझे न कभी ऐसा महसूस हुआ और न ही मैं इस बात पर यकीन करती हूं। मैं ने first-generation entrepreneur हूं। मुझे मेरी क्रिएटिविटी और अविष्कारों ने बिजनेस में सफलता दिलाई। मैंने बहुत छोटे से शुरुआत की मगर मेरा बिजनेस यूनीक था और मार्केटिंग स्ट्रैटेजीस बहुत ज्यादा यूनीक थी। मैंने हमेशा खुद पर भरोसा रखा और अपने काम को आगे बढ़ाया। मेरे उपर हर्वर्ड वलों ने केस स्टडी की। यह सब आसान नहीं था खासतौर पर जब मैंने इंटरनैशनल मार्केट में कदम रखा। मगर यह मेरा सपना था और मैंने इसे पूरा किया। मुझे महिला होने की वजह से कोई कामयाबी नहीं मिली बल्कि मेरे अच्छे काम ने मुझे सफलता दिलाई।
7.क्या आपको अभी भी लगता है कि महिलाओं को किसी तरह के बंधन का सामना करना पड़ रहा है?
21 वीं सदी में, जब महिलाओं ने सभी सीमाओं को पार कर लिया है और स्पेस तक में अपनी जगह बना ली है, तब भी भारत और दुनिया के कई हिस्सों में आज भी महिलाओं को कुछ बाउंड्रीज का सामना करना पड़ रहा है। 10 साल पहले जब महिलाओं ने अपने कदम घर की चार दीवारी से बाहर रखे और अपना करियर बनाने के लिए वे आगे बढ़ीं तो उन्हें अपने परिवार और अपनी वर्कप्लेस दोनों ही जगह कुछ बंधनों का सामना करना पड़ा। सबसे बड़ी बात तो यह है कि महिलाओं के परिवार और उनके पति इस बात को एक्सेप्ट करें कि वे भी अपना करियर बना सकती हैं। उनका परिवार उन्हें फाइनेंशियल फैसले लेने की आजादी दे। सह बंधन आज भी हैं। आज महिलाओं को घर और ऑफिस की दोहरी जिम्मेदारी उठानी पड़ रही है और वह जब कभी घर की जिम्मेदारी को ठीक से नहीं निभा पाती हैं तो वह गिल्टी फील करती हैं। कुछ महिलाएं मेरे जैसी भी होती हैं जो घर और फैमिली दोनों को सफलतापूर्वक डील कर रही हैं। ऐसी महिलाओं को मैं सुपरवुमन कहती हूं।
यहां तक कि महिलाओं के खिलाफ बाहरी स्थान, पूर्वाग्रह और पूर्वाग्रहों को अपना रास्ता बना लिया है, भारत में और दुनिया के कई हिस्सों में अभी भी मौजूद हैं। कुछ दशक पहले, भारतीय महिलाओं ने अपने घरों से कैरियर की दुनिया में कदम रखना शुरू किया। उन्हें जो बाधाएं उठानी पड़ीं, वे घर और कार्यस्थल दोनों में थीं। व्यक्तिगत स्तर पर, मुख्य मुद्दे पति और परिवारों को उसके कैरियर की महत्वाकांक्षाओं को स्वीकार करने और वित्तीय स्वतंत्रता की इच्छा रखने की कोशिश में थे।ये प्रतिबंध अभी भी मौजूद हैं। घर और कैरियर के प्रबंधन जैसे मुद्दे समस्याओं के मूल में थे और वे अभी भी हैं। वास्तव में, एक कैरियर महिला का जीवन बहुत ही मांग वाला हो सकता है, जो घर और परिवार की उपेक्षा की भावनाओं से खराब हो जाता है। मेरे लिए, जो महिला घर और परिवार का प्रबंधन करती है और एक सफल कैरियर महिला भी है, वह किसी घटना से कम नहीं है। वास्तव में, वह एक सुपरवुमन है।
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