मिलिए जयपुर की रॉयल फैमिली से, 20 हज़ार करोड़ की संपत्ती के हैं मालिक

भारत में राजघराने से ताल्लुक रखने वाले लोगों की कमी नहीं है, लेकिन जयपुर की रॉयल फैमिली कुछ खास है। चलिए आज जानते हैं इनके बारे में। 

royal family of jaipur

राजा और महाराजा की बातें सुनकर अक्सर लोगों को उत्सुक्ता जागती है। भारत की बात करें तो यहां लगभग हर राज्य और शहर में एक अलग राजा हुआ करता था। अभी भी कई शहरों में राज घराने मौजूद हैं। महलों में शाही परिवार रहता है और साथ ही साथ वो शादी अंदाज़ में अपनी जिंदगी जीता है। भले ही भारत में अब राजा-रानी को आधिकारिक मान्यता नहीं प्राप्त है, लेकिन फिर भी ये शादी परिवार वैसे ही जीते हैं, वैसे ही रहते हैं जैसे सालों पहले रहा करते थे। अपनी खास सीरीज में हम भारत के अलग-अलग हिस्सों की रॉयल फैमिली के बारे में बात करेंगे।

राजस्थान के अलग-अलग हिस्सों में अभी भी रॉयल फैमिली रहती हैं और सिटी पैलेस जयपुर, जोधपुर, बीकानेर आदि जगहों पर राज परिवार के लोग अभी भी उसी शान और शौकत के साथ रहते हैं जैसे पहले के जमाने में उनके पूर्वज रहा करते थे।

दुनिया में सबसे प्रसिद्ध राजघराना तो ब्रिटिश रॉयल फैमिली है, लेकिन भारत के शाही परिवार भी कुछ कम नहीं हैं। इसके पहले हम ग्वालियर के सिंधिया परिवार के बारे में बता चुके हैं और आज बात करते हैं जयपुर की रॉयल फैमिली के बारे में।

22 साल के राजा की अनोखी लाइफस्टाइल-

जयपुर के राजा पद्मनाभ सिंह जिनका पूरा नाम और टाइटल है महाराजा सवाई पद्मनाभ सिंह असल में जयपुर की हिस्ट्री के सबसे छोटे राजा हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार जयपुर रॉयल फैमिली की दौलत लगभग 2.8 बिलियन डॉलर (2,03,06,24,40,000 या 20 हज़ार करोड़) के आस-पास है।

padmanabh singh jaipur

ये न्यूयॉर्क और रोम में पढ़ते हैं और पोलो खेलने का बहुत शौख रखते हैं। इन्हें फैशन शो में भी देखा जाता है और पूरी दुनिया घूमने का शौख रखते हैं।

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13 साल की उम्र में ही बन गए थे राजा-

आपको जानकर अचंभा होगा कि पद्मनाभ सिंह 13 साल की उम्र में ही राजा बन गए थे। उनके नाना सवाई मान सिंहजी बहादुर के देहांत के बाद। सवाई मान सिंह को जयपुर का आखिरी महाराजा कहा जाता है क्योंकि जब उन्हें राज गद्दी मिली थी तब भारत में राजाओं का अलग रुतबा था और उन्हें सारे सम्मान दिए जाते थे।

maharaja padmanabhsingh of jaipur

प्रिंसेज दिया कुमारी की अनोखी कहानी-

भारत की सबसे प्रसिद्ध राजकुमारियों में से एक हैं प्रिंसेज दिया कुमारी जो अपनी खूबसूरती, सूझ-बूझ और अपने काम के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने बाकायदा दिया कुमारी फाउंडेशन खोल रखा है जो कई लोगों की मदद करता है।

प्रिंसेज दिया कुमारी भाजपा पार्टी से विधायक भी हैं। दिया कुमारी जयगढ़ किला, सिटी पैलेस जयपुर, अमबर फोर्ट और दो ट्रस्ट, महाराज सवाई मान सिंह म्यूजियम ट्रस्ट और जयपुर जयगढ़ पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट, दो स्कूल और तीन होटल चलाती हैं। सिटी पैलेस जयपुर का एक हिस्सा पब्लिक के लिए म्यूजियम बना दिया गया है और एक हिस्सा Airbnb को दे दिया गया है। बचे हुए हिस्से में शाही परिवार रहता है। अब तो आप समझ ही गई होंगी कि प्रिंसेज दिया कुमारी कितनी इंस्पाइरिंग महिला हैं।

princess diya kumari of jaipur

दिया कुमारी की लव स्टोरी है बहुत अनोखी-

प्रिंसेज दिया कुमारी ने किसी राज घराने में शादी नहीं की। उन्होंने नरेंद्र सिंह से शादी की थी जो जयपुर के राजा और दिया कुमारी के पिता भवानी सिंह के यहां काम करने वाले एक स्टाफ मेंबर के बेटे थे। उस समय इस शादी को लेकर बहुत विवाद हुआ था और जयपुर राजघराने में टकराव भी।

इसके कुछ समय बाद भवानी सिंह ने इस शादी को स्वीकार कर लिया और दिया कुमारी साथ रहने लगीं। 2002 में भवानी सिंह ने दिया कुमारी के सबसे बड़े बेटे पद्मनाभ सिंह को अपना उत्तराधिकारी चुन लिया। दिया कुमारी और उनके पति 2018 में अलग हो गए थे।

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राजमाता पद्मिनी देवी-

राजमाता पद्मिनी देवी हमेशा से ही शाही खानदान में रहीं। वो सिरमौर (हिमाचल प्रदेश) की राजकुमारी थीं और 1966 में महाराजा सवाई भवानी सिंह से शादी कर जयपुर आई थीं। राजमाता पद्मिनी देवी भी महाराजा सवाई मान सिंह 2 म्यूजियम ट्रस्ट की देखरेख में मदद करती हैं और साथ ही साथ जयपुर और राजस्थान के कई सामाजिक कार्यों में हिस्सा लेती हैं।

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जयपुर के राजकुमार और राजकुमारी-

शाही परिवार के अभी दो और सदस्यों का लेखा-जोखा बाकी है। ये हैं प्रिंसेज गौरवी कुमारी जो न्यू यॉर्क में पढ़ाई करती हैं और पिछले साल डेब्यूटांट बॉल (le ball paris) में हिस्सा ले चुकी हैं।

उनकी मां प्रिंसेज दिया कुमारी ने इस मौके पर कई तस्वीरें भी शेयर की थीं। गौरवी कुमारी इस इवेंट में पिंक शेड का गाउन पहन कर गई थीं।

सिरमौर के महाराजा हैं लक्ष्यराज सिंह-

भले ही पद्मनाभ सिंह जयपुर के महाराजा हों, लेकिन उनके छोटे भाई लक्ष्यराज सिंह को सिरमौर के महाराजा की गद्दी सिर्फ 9 साल की उम्र में ही मिल गई थी। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर में बाकायदा उनका राजाभिषेक हुआ था। सिरमौर राजमाता पद्मिनी देवी का मायका है और वहां पर लक्ष्यराज सिंह को उत्तराधिकारी चुना गया था।

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