इन चीजों के मामले में बच्चे को दें पूरी आजादी, सख्त पैरेंटिंग से बिगड़ सकता है भविष्य

बच्चे के साथ हर समय सख्ती से पेश आना विपरीत परिणाम दे सकता है। इसका असर बच्चों के भविष्य पर पड़ सकता है, जिससे बाद में आपको भी परेशानी हो सकती है। आइए एक्सपर्ट से जानते हैं कि बच्चे को किन मामलों में आजादी देना जरूरी होता है।

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बच्चों को समझना और समझाना कतई बच्चों का खेल नहीं है। हर कदम पर सतर्कता बरतने की जरूरत होती है। हालांकि इसी सतर्कता के चक्कर में कई बार माता-पिता बहुत ज्यादा सख्त हो जाते हैं। यह बच्चों के विकास के लिए घातक है। बच्चों को आगे बढ़ने और सफल होने के लिए नियम-अनुशासन के साथ-साथ थोड़ी आजादी की भी जरूरत होती है। आजादी और सतर्कता के बीच संतुलन से आप बच्चों का विकास एवं उनकी सुरक्षा दोनों सुनिश्चित कर सकते हैं। आइए इस बारे मेंआर्टेमिस अस्पताल के मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार विज्ञान के प्रमुख सलाहकार और मनोचिकित्सक डॉ. राहुल चंडोक से जानते हैं।

निर्धारित करें सीमा

स्कूल से आने के बाद बच्चों का थोड़ा खेलने-कूदने का मन कर सकता है। अगर उन्हें सख्त पैरेंटिंग के चक्कर में आप घर से भी बाहर नहीं निकलने देंगे, तो उनका विकास अवरुद्ध होगा। आप बच्चे के साथ सहमति के आधार पर कुछ सीमाएं बना सकते हैं। जैसे बच्चे को बताइए कि वह किस गली तक या किसके घर तक और कितने बजे तक अकेले खेलने जा सकता है। साथ ही उसे प्यार से यह भी समझाइए कि यह सीमा उसकी सुरक्षा के लिए तय की गई है और जब भी उसे इससे आगे जाना हो तो वह घर पर पूछकर ऐसा करे।

खुद से कुछ करने का मौका दें

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किशोर होते बच्चे अकेले कुछ काम करना चाहते हैं। उन्हें इसका मौका दें। उनकी जरूरत की और स्टेशनरी की हर चीज उन्हें खरीदकर मत दें। अगर आसपास कोई दुकान है, तो उन्हें वहां जाकर खुद अपनी जरूरत की चीज खरीदने को कहें। इससे उनमें आत्मविश्वास भी आएगा और वे हिसाब-किताब भी समझेंगे। ऐसा करना उन्हें लोगों से संवाद करने में भी सहज बनाएगा।

बच्चों से कुछ काम करवाएं

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किशोर होते बच्चों में जिम्मेदारी और समयबद्धता की भावना जगाने के लिए उनसे कुछ काम भी करवाना चाहिए। जैसे अगर घर में कोई अन्य छोटा बच्चा है, तो उसे घुमाने की जिम्मेदारी घर के बड़े बच्चे को दे सकते हैं। बच्चे को घर के कामों में भी थोड़ा-बहुत योगदान देने के लिए प्रेरित करें। इससे वह स्वयं का महत्व समझता है और उसमें जिम्मेदारी की भावना आती है।

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हस्तक्षेप न करें

पैरेंटिंग का सबसे मुश्किल पहलू है हस्तक्षेप न करना। एक बार जब बच्चे के साथ आप किसी सीमा को तय कर लें, तो उसे उस सीमा तक आजादी से रहने दें। इसमें बहुत धैर्य की जरूरत होती है। कभी लगे कि बच्चा कोई काम बिगाड़ देगा, तब भी अगर बहुत बड़ा नुकसान नहीं होने जा रहा है, तो उसे मत टोकें। उसे अपनी समझ और आजादी के साथ काम करने दें। गलती का स्वयं आभास होने दें। बाद में भी उसे डांटने के बजाय सिखाने का प्रयास करें, जिससे भविष्य में गलती न हो।

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स्कूल के मामले में भी आजादी जरूरी

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स्कूल से जुड़े मामलों में भी बच्चों को आजादी की जरूरत होती है। स्कूल में कोई प्रोग्राम होना है, तो बच्चे को उसमें हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करें, लेकिन किस प्रतियोगिता में भाग लेना है, इसका निर्णय उसे स्वयं करने दें। हर बात में अपनी राय न थोपें। हो सकता है कि आप उसे मैथ्स के ओलंपियाड में हिस्सा दिलाना चाहते हों, लेकिन उसकी रुचि हिंदी में हो। उसे अपने निर्णय लेने दें। इससे उसका आत्मविश्वास बढ़ेगा और वह बेहतर निर्णय लेने में भी सक्षम बनेगा।

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Image credit- Herzindagi, Freepik

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