Couple Sold Their 28 Day Old Baby Girl For 20 Thousand Rupees: 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' ये नारा तो शायद आपने हर चौक-चोराहे पर लिखा हुआ देखा होगा, लेकिन क्या सच में बेटी बचाई जा रही है? आप भी यही सवाल पूछेंगे, जब आप देश में बेटियों के साथ हो रहे क्राइम और उनसे जुड़े आंकड़ों के बारे में सुनेंगे। इतिहास का एक काला दौर था, जब पैसों के लिए बेटियों को बेचा जाता था। ओडिशा से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसे सुनने के बाद लगता है कि वो काला दौर फिर लौट आया है। हाल ही में ओडिशा के बोलनगीर जिले के एक गांव में नीला और कनक राणा नाम के एक गरीब दंपति ने अपनी महज 28 दिन की जन्मी बेटी को बेच दिया। मासूम की कीमत लगाई गई 20 हजार रुपये। वजह बताई गई गरीबी और पैसों की तंगी। क्या अपनी गरीबी को दूर करने के लिए बेटी कोई हथियार या सामान थी, जिसे बेच दिया गया? हालांकि, ये कोई पहला ऐसा मामला नहीं है। देशभर में बेटी को बोझ और बेकार समझकर सड़कों पर फेंक देने और कत्ल कर देने जैसे अनेको मामले हमारे पास हैं।
शी द पीपल ने अपनी एक रिपोर्ट में बिहार सरकार के आंकड़ों का हवाला देते हुए खुलासा किया कि बिहार में लगातार महिला लिंगानुपात (एसआरबी) में गिरावट आ रही है। ये बढ़ते कन्या भ्रूण हत्या की ओर एक इशारा है। स्वास्थ्य मंत्रालय की 2023-24 की स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023-24 में 1000 पुरुषों पर केवल 882 लड़कियों ने जन्म लिया। ये आंकड़ां साल 2021 के बाद से महिलाओं के मामले में गिरता ही नजर आ रहा है। ओडिशा की महिला एवं बाल विकास मंत्री सावित्री ठाकुर ने राज्यसभा को संबोधित करते हुए बताया था कि ओडिशा में 2014-15 में बालिकाओं की जन्म दर 948 थी, जो 2023-24 में घटकर 926 हो गई।
आंकड़े और भी हैरान करने वाले हैं। अल जजीरा की साल 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तरकाशी जिला प्रशासन ने 132 गांवों को रेड जोन के तौर पर चिन्हित किया था क्योंकि इन गांवों में उस दौरान तीन महीने में एक भी लड़की पैदा नहीं हुई थी। इससे साफ था कि कई इलाकों में अब भी अवैध रूप से लिंग निर्धारण किया जाता है और फिर गर्भपात को अंजाम दिया जाता है।
आज भी देश के कई राज्यों में बेटियों को बोझ समझा जाता है। कोई बेटी को पैदा होने से पहले मार देता है, तो कोई उन्हें पैदा करके मार रहा है। साल 2024 में बीबीसी की एक डॉक्यूमेंट्री, द मिडवाइफ्स कन्फेशन ने बिहार में हो रही बेटियों की हत्या का काला सच उजागर किया था। इस डॉक्युमेंट्री में महिलाओं ने खुद कबूल किया था कि बेटी होने पर कैसे वो अपनी ही नन्ही जान को नमक चटाकर, तो कभी गर्भनाल से गला घोंटकर मार देती थीं। इस डॉक्यूमेंट्री में कई दाईयों ने अपने द्वारा 15-20 बच्चियों को पैदा होते ही मारने की बात कबूल की थी।
तस्वीर आज भी वही है। हालात कुछ खास नहीं बदले हैं। आज भी लड़कियों के साथ वही सब हो रहा है। बेटी को बेचना, मार डालना, उसे बोझ समझना कुछ भी नया नहीं है। वक्त बदल चुका है, पर सोच नहीं। सोच आज भी वही है, 'वंश तो बेटा ही बढ़ाएगा। बेटी पैदा करके बोझ थोड़ी बढ़ाना है।' ‘बेटी होगी, तो शादी का खर्चा कैसे निकालेंगे’...और ना जाने क्या-क्या? जरूरत है सोच बदलने की। बेटी को आजाद करने की और उसे भी बेटे की तरह ही कीमती और इंसान समझने की।
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Image Credit: her zindagi
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