मैं सुषमा स्वराज से राज्यसभा टीवी के शूट के सिलसिले में कई बार मिली थी। It's My Life...इस प्रोग्राम में पॉलिटिकल पर्सनेलिटीज के दूसरे पहलुओं पर फोकस किया जाता था। ज्यादातर लीडर्स इस शो में आना चाहते थे और मेरे पास इसकी लंबी बुकिंग लिस्ट थी। इस शो के तहत आधे घंटे के तीन एपीसोड दिखाए जाते थे, जिनमें मैं लीडर्स के चुनाव क्षेत्र में जाती थी, उनके परिवार के सदस्यों से मिलती थी, खेल, पेट्स, फूड और म्यूजिक के लिए उनके प्रेम को जाहिर करती थी, यह शो का अहम हिस्सा था। इस शूट के लिए तीन-चार दिन के लिए पॉलिटिशियन के साथ बिताने होते थे। इसीलिए सुषमा जी को इस शो पर लाना मेरा सपना था। कहीं ना कहीं मुझे पता था कि मेरे साथ उनका अनुभव वैसा नहीं होगा, लेकिन एक पत्रकार के लिए ये चीजें आसान नहीं होतीं और इसी जोश को कायम रखने हुए मैंने उन्हें फॉलो किया। कभी संसद के गलियारों में, कभी दूसरे कार्यक्रमों में।
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सुषमा जी शालीनता की मिसाल थीं। वह हमेशा लोगों से खुश होकर मिलती थीं। जब भी मैं उनसे It's My Life के अपने शूट के लिए उनके पुराने संसदीय क्षेत्र मध्य प्रदेश के विदिशा चलने की बात कहती, तब वह मां की तरह कह देती हैं, 'क्या नीलू शूट के अलावा भी कोई बात कर लिया करो।' कुछ बार तो उन्होंने परेशान होकर कहा, 'तुम और तुम्हारा It's My Life', 'नीलू मैं इंटरव्यू देने के मूड में नहीं हूं।' एक बार तो उन्होंने यहां तक कहा, 'तुम्हारे प्रोग्राम के लिए मैं तीन-चार दिन कैसे निकालूं।'
जैसे ही उन्होंने ये कहा, मेरे चेहरे पर निराशा के भाव थे। लेकिन उन्होंने अपने मानवीय चेहरे और अपनी वेलकमिंग साइड से इसकी भरपाई की कोशिश की। उन्होंने चाय के साथ चर्चा को बदलने की कोशिश की। इसके बाद उन्होंने महिलाओं की, उनके नजरिए की बात की। एक-दो बार उन्होंने महिला आरक्षण बिल को लेकर बात की और कहा कि उन्हें पुरुषों की यह सोच अच्छी नहीं लगती, जिसमें वे महिला को एक सामान की तरह देखते हैं। वह ऐसे लोगों से नफरत करती थीं, जो ये सोचते हैं कि महिलाओं का काम सिर्फ चूल्हा-चौका और बच्चे पालना होता है। सुषमा जी हमेशा बहुत ग्रेसफुल दिखाई देती थीं। उनकी ब्राइट साड़ियां, बड़ी सी बिंदी, सिंदूर और उनका ट्रेडमार्क वेस्ट कोट। एक बार उन्होंने बताया था कि अपने इस कोट में वह काफी सारी छोटी-छोटी चीजें रखती थीं जैसे कि एक पेन, एक छोटा सा नोट पैड, एक या दो जूड़ा पिन, उन्होंने अपने हाथों को फ्री रखना पसंद था। महिला होने के नाते उनका जो ग्रेस था, वह एक राजनेता के तौर पर उनकी चमक को कम नहीं करता था।
लोगों के बीच उन्हें अच्छा लगता था। जब लोग उन्हें सुनते थे, तब उन्हें अच्छा लगता था। जब वह लोक सभा में या विपक्ष के नेता के तौर पर बोलती थीं, तब उनकी आवाज सदन में गूंजती थी इसी तरह विदेश मंत्री के तौर पर दूसरे देशों में तकलीफ झेल रहे लोगों तक वह जिस तरह मदद पहुंचाती थीं, वह अपने आप में अविश्वसनीय था। ट्विटर पर सुषमा स्वराज बहुत सक्रिय थीं। नई और पुरानी जनरेशन, दोनों के साथ उनका अच्छा कनेक्ट था। दोनों से वह उतनी ही सहृदयता के साथ बात करती थीं।
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पिछले कुछ कुछ समय से सुषमा स्वराज आडवाणी जी के बगल में बैठती थीं। दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी भी उनके साथ बहुत सम्मान और आदर के साथ पेश आते थे। अब जब मैं इस चीज को देखती हूं तो एक साल के भीतर सुषमा जी गुजर गईं। 17 अगस्त, 2018 को देश ने वाजपेयी जी को खो दिया था और एक साल बाद सुषमा जी हमसे दूर हो चुकी हैं। अगस्त का समय अच्छा नहीं रहता। अगस्त में वाजपेयी, करुणानिधि, सुषमा स्वराज जैसे बड़े नेता काल के गाल में समा गए। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे। मुझे अफसोस है कि मैं सुषमा जी के साथ It's My Life शूट नहीं कर सकी। अब यह ऐसा सपना बन गया है, जो कभी पूरा नहीं होगा। आज के समय की गोरिल्ला स्टाइल की राजनीति में मैं आपको और आपके आदर्शों को हमेशा मिस करूंगी। आपने एक बार महिलाओं के बारे में जो कहा था, वहीं मैं आज सबके साथ साझा कर रही हूं, और ये इस प्रकार है-
एक तपती दोपहर है नारियों की जिंदगी
एक पथरीली डर है नारियों की जिंदगी
चाहे हो अग्नि परीक्षा, चाहे तो चौसर की बिसात
हर सदी में दांव पर है नारियों की जिंदगी
जब से मैंने सुषमा जी के जाने की खबर सुनी है, तब से ये शब्द मेरे कानों में गूंज रहे हैं और मैं हैरान होती हूं कि सुषमा स्वराज कितनी बेमिसाल महिला थी, उनके जैसा कोई और नहीं हो सकता।
लेखिका का परिचय: नीलू व्यास थॉमस एक वरिष्ठ पत्रकार, एंकर, मॉडरटेर हैं और राज्यसभा टीवी के साथ काम करती हैं। नीलू व्यास जेंडर इशुज, राजनीति, सेहत और पर्यावरण पर लिखती हैं। नीलू पिछले 20 सालों से टीवी पत्रकार हैं और वह जी न्यूज, आजतक हेडलाइन्स टुडे और सीएनएन-आईबीएन जैसे मीडिया संस्थानों के लिए काम कर चुकी हैं।
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