मैरिटल रेप पर पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा ने अपने ताजा बयान में कहा, 'भारत में मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए, क्योंकि इससे परिवार में अराजकता की स्थिति पैदा हो जाएगी।' जस्टिस मिश्रा ने ये बात ट्रांसफॉर्मेटिव कॉन्स्टीट्यूशनलिज्म इन इंडिया की कॉन्फ्रेंस में कही। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि मैरिटल रेप की अवधारणा पश्चिमी देशों से ली गई है और भारत में इसे अपनाया जाना संभव नहीं है। नेशनल हेल्थ एंड फैमिली सर्वे के साल 2015-16 के आंकड़ों पर गौर करें तो 5.4 फीसदी भारतीय महिलाओं ने सर्वे करने वालों को बताया कि उनके पति ने जोर-जबरदस्ती से उनके साथ संबंध बनाए।
भारत में परिवार और पारिवारिक मूल्यों को सबसे ज्यादा अहमियत दी जाती है। वैवाहिक संबंधों में पति-पत्नी दोनों की ही तरफ के संबंधियों को पूरा सम्मान दिया जाता है। अगर पति या पत्नी में किसी बात पर अनबन होती है या फिर झगड़ा होता है तो उसे भी परिवार के स्तर पर शांतिपूर्वक तरीके से हल करने की कोशिशें की जाती हैं। लेकिन अगर कई प्रयासों के बावजूद संबंधों में कड़वाहट आ जाए या फिर बात तलाक तक पहुंच जाए तो दोनों परिवारों में भी रिश्ते खराब होते हैं। अगर शादी के बाद पति-पत्नी के फिजिकल रिलेशन्स की बात करें तो आदर्श रूप में सहमति से रिलेशन बनाने की बात कही जाती है, लेकिन हमारे देश में पति के पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाने को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है।
इस मामले पर लंबे समय से बहस जारी है। एक तरफ मैरिटल रेप को अपराध घोषित किए जाने से परिवार की संस्था के कमजोर होने की आशंका जताई जाती है तो वहीं दूसरी तरफ पति के जोर-जबरदस्ती से अपनी पत्नी के साथ संबंध बनाने पर उसके संवैधानिक अधिकारों का हनन होता है और उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है।
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आईपीसी की धारा 375 के मुताबिक़ अगर कोई व्यक्ति किसी महिला इन परिस्थितियों में फिजिकल रिलेशन बनाता है तो उसे रेप माना जाएगा
साल 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि शादी का यह मतलब नहीं है कि महिला अपने पति के साथ फिजिकल रिलेशन बनाने के लिए हमेशा तैयार रहे। कोर्ट ने इस दौरान कहा था, 'जरूरी नहीं है कि बलात्कार करने के लिए शारीरिक बल का इस्तेमाल किया ही गया हो।' कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा था कि शादी जैसे रिश्ते में पुरुष और महिला दोनों को शारीरिक संबंध के लिए 'ना' कहने का अधिकार है।
अदालत ने रिट फाउंडेशन और ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेन एसोसिएशन की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की थी, जिसमें मैरिटल रेप को अपराध बनाने की मांग की गई है। पीठ ने कहा, 'शादी का यह मतलब नहीं है कि शारीरिक संबंध बनाने के लिए महिला हर समय तैयार, इंट्रस्टेड और राजी हो। पुरुष को यह साबित करना होगा कि महिला ने यौन संबंध बनाने के लिए सहमति दी है।' अदालत ने एनजीओ 'मेन वेलफेयर ट्रस्ट' की यह दलील खारिज कर दी कि पति-पत्नी के बीच यौन हिंसा में बल का इस्तेमाल या बल की धमकी इस अपराध के होने में महत्वपूर्ण कारक हो। गौरतलब है कि एनजीओ मैरिटल रेप को अपराध बनाने वाली याचिका का विरोध कर रहा था।
कोर्ट ने इस संबंध में कहा था, 'यह जरुरी नहीं है कि बलात्कार में शरीर पर चोटें आई हों। आज के समय में बलात्कार की परिभाषा पूरी तरह अलग है।' एनजीओ की तरफ से पेश हुए अमित लखानी और रित्विक बिसारिया ने दलील दी थी कि पत्नी को मौजूदा कानूनों के तहत शादी में यौन हिंसा से संरक्षण मिला हुआ है। इस पर अदालत ने कहा कि अगर अन्य कानूनों में यह शामिल है तो आईपीसी की धारा 375 में अपवाद क्यों होना चाहिए। इस धारा के अनुसार किसी व्यक्ति का अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं हैं। अदालत ने रेप के बारे में एक और अहम बात कही थी, 'बल का इस्तेमाल बलात्कार की पूर्व शर्त नहीं है। अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को फाइनेंशियली प्रेशर में रखता है और कहता है कि अगर वह उसके साथ फिजिकल रिलेशन नहीं बनाएगी तो वह उसे घर और बच्चों के खर्च नहीं देगा और उसे इस दबाव के कारण ऐसा करना पड़ता है। बाद में अगर पत्नी पति के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज करती है तो क्या होगा?'
इस मामले पर अभी भी चर्चा जारी है। मैरिटल रेप पर महिलाओं के हितों को ध्यान में रखते हुए कानून बनाए जाने में फिलहाल वक्त लगेगा, लेकिन फिजिकल रिलेशन्स में महिलाओं के साथ होने वाली जोर-जबरदस्ती पर चर्चा और उनकी तमाम समस्याओं पर बात करने से महिलाओं को अपना पक्ष रखने में मदद मिलेगी और यह महिला सशक्तीकरण की दिशा में अहम भूमिका निभाएगा।
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