अपनी पूरी जिंदगी घर और गुरु दत्त पर न्यौछावर की थी, आखिर में गीता दत्त को मिला तो बस अफसोस!

हमने जब भी बात की गुरु दत्त और गीता दत्त की ही की। आज बात सिर्फ और सिर्फ गीता दत्त के बारे में। आइए जानें उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें।

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गुरु दत्त कितने महान कलाकार, निर्देशक और लेखक थे, ये हम सभी जानते हैं। उनकी फिल्में आज क्लासिक और कल्ट की सूची में आती हैं। गुरु दत्त और गीता दत्त का प्यार, शादी और वहीदा रहमान के साथ अफेयर के चर्चे भी बहुत सुने और सुनाए गए मगर आज हम बात करेंगे गीता घोष रॉय चौधरी की, जिन्हें लोगों ने जाना तो गुरु दत्त की पत्नी गीता दत्त के रूप में।

गीता एक महान गायिका थीं, उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को 'वक्त ने किया क्या हसीं सितम', 'मेरा नाम चिन चिन चू', 'न जाओ सइयां छुड़ा के बैयां', 'ये है बम्बई मेरी जान' जैसे कई खूबसूरत गाने दिए। वह अगर ऐसे ही गाती रहती, तो उन्हें वह पहचान जरूर मिलती जिसके वह काबिल थीं, मगर 'गुरु दत्त' में उलझी गीता दत्त इतना टूट चुकी थीं कि उन्होंने अपने सपने को ही पीछे छोड़ दिया। आज उनके जन्मदिन पर चलिए गीता दत्त को थोड़ा और जानें।

शुरू से ही संगीत की ओर था झुकाव

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23 नवंबर 1930 को एक जमींदार परिवार में जन्मीं, जो अब बांग्लादेश है, गीता घोष रॉय चौधरी को हमेशा संगीत की ओर झुकाव था। उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए, उनके परिवार ने उनके लिए संगीत सीखने की व्यवस्था की। 1942 में परिवार के बम्बई चले जाने के बाद भी, उन्होंने संगीत को नहीं छोड़ा और अपने दम पर अभ्यास करना जारी रखा।

एक रोज संगीतकार और निर्देशक के. हनुमान प्रसाद दादर में गीता के घर से गुजर रहे थे, जब उन्होंने अपने घर में अभ्यास करती गीता को सुना। प्रसाद, उनकी आवाज से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने गीता को फिल्म 'भक्त प्रह्लाद (1946)' में गाने का मौका दिया। उसके बाद, गीता ने प्रसाद की दो और फिल्मों 'रसीली' और 'नई मां' के लिए गाना गाया।

बड़ा ब्रेक और जबरदस्त हिट

एस.डी. बर्मन, जिन्होंने 'भक्त प्रह्लाद' में उनका गाना सुना था, ने उन्हें अपनी फिल्म 'दो भाई (1947)' के लिए गाने के लिए साइन किया। इस फिल्म का गाना 'मेरा सुंदर सपना बीत गया' गीता ने अपनी मधुर आवाज में गया था। फिल्म रिलीज हुई और गाना हिट हो गया। इस तरह हिंदी सिनेमा में उनके करियर की शुरुआत हुई।

स्टार सिंगर के रूप में मिली पहचान और लता मंगेशकर के साथ रहा तगड़ा कॉम्पिटिशन

geeta dutt and lata mangeshkar

साल 1947-1949 में गीता रॉय को मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में नंबर एक पार्श्व गायिका के रूप में देखा। इसकी वजह थी उनकी मधुर आवाज और उनमें गाए हुए हिट गाने। इसके साथ गीता अन्य भाषाओं में भी गाने गाती रहीं और जल्द ही एक स्टार सिंगर बन चुकी थीं। इसी बीच 1949-50 में चार फिल्में रिलीज हुईं। ये फिल्में थीं- 'बरसात', 'अंदाज', 'दुलारी' और 'महल' और चारों की चार हिट फिल्मों में, नायिका के गीतों को एक युवा महिला ने गाया था, जिन्होंने पार्श्व गायन में भी अपनी शुरुआत की थी, लेकिन तब तक उन्होंने अपने करियर में कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं की थी। हालांकि 'महल' के एक गाने 'आएगा आने वाला'ने एकदम से लोकप्रियता हासिल की और ऐसी लोकप्रियता, जो अलग ही ऊंचाइयों पर पहुंची। वह गायिका थीं, लता मंगेशकर, जिन्होंने धीरे-धीरे प्लेबैक सिंगिंग में अपना सिक्का जमा लिया था।

ऐसा कहते हैं कि उस समय लता के आगे कोई नहीं टिक पाया था, मगर गीता घोष की बात ही अलग थी और वह अब तक अपनी जगह बनाए रखने में कामयाब हुई थी। 1950 के दशक में सिर्फ दो ही महान गायिका थीं, जिन्होंने इंडस्ट्री में प्लैबैक सिंगर के रूप में जाना गया। वे गीता घोष और लता मंगेशकर ही थीं। इतना ही नहीं, गीता और लता मंगेशकर अपने जमाने के अच्छे दोस्तों में से भी एक थे।

गुरु दत्त से पहली मुलाकात

बतौर डायरेक्टर गुरु दत्त की पहली फिल्म 'बाजी (1951)' थी। फिल्म का एक गाना 'तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना दे' की रिकॉर्डिंग बम्बई के महालक्ष्मी स्टूडियो में हो रही थी। इसे गाने वाली कोई और सिंगर नहीं, बल्कि 20-21 साल की गीता ही थीं। गीता का ओहदा तब वह था, जहां तक गुरु दत्त का पहुंचना बाकी था। गीता एक स्टार सिंगर थीं और तब तक कई भाषाओं में कई सारे गाने गा चुकी थीं।

प्यार, तीन साल का रिश्ता और फिर शादी

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गुरु दत्त उनके हंसमुख व्यक्तित्व और मधुर आवाज से मुग्ध थे, तो गीता भी उनके निर्देशन की प्रतिभा से चकित थी। स्टार सिंगर गीता को डेब्यू कर रहे गुरु दत्त के बैकग्राउंड से कोई फर्क नहीं पड़ा और दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया। गीता का परिवार कभी भी इस रिश्ते से खुश नहीं था। गीता के परिवार वाले गीता और गुरु दत्त की शादी के बहुत खिलाफ थे। मगर प्यार में पड़े गुरु दत्त और गीता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। तीन साल तक एक-दूसरे के साथ समय बिताने के बाद दोनों ने बंगाली रस्मों से साल 1953 में शादी कर ली।

गीता घोष अब गीता दत्त बन चुकी थीं और बेहद खुश थीं। शादी के शुरुआती साल बहुत अच्छे गुजरे। गीता ने अपने आप को घर-परिवार में व्यस्त कर लिया और गुरु दत्त पूरी तरह से अपनी ही दुनिया में खो गए। धीरे-धीरे, उन्होंने दूसरों के लिए गाना छोड़ दिया और गुरु दत्त की फिल्मों पर ध्यान केंद्रित किया। साथ में उन्होंने 'बाजी', 'आर-पार', 'मिस्टर एंड मिसेज 55', 'सीआईडी', 'प्यासा' और 'कागज के फूल', 'साहिब बीबी और गुलाम' और 'बहारें फिर भी आएंगी' में बेहतरीन गाने दिए।

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टूटती शादी और गुरु दत्त के साथ खराब होते रिश्ते

शादी के शुरुआती दिन दोनों के लिए बहुत अच्छे बीते। शादी के कुछ सालों में ही दोनों की तीन बच्चे हुए, जिनके साथ दोनों काफी वक्त बिताते थे। मगर कुछ समय बाद दोनों के संबंध खराब हो गए। इसकी कई वजहें थीं, कौन-सी कितनी सच थीं किसी को नहीं पता।

बॉलीवुड शादी में छपे गुरु दत्त की बहन ललिता लाजमी के एक इंटरव्यू के मुताबिक, 'दोनों में ईगो का टकराव था। वहीं, शायद गीता किसी बात से आहत भी थीं। उनकी शादी 11 साल चली, लेकिन वह एक दुखद शादी थी। ये दोनों कलाकार के रूप में शानदार थे, लेकिन एक जोड़े के रूप में लगातार दरार बढ़ती रही। गीता, गुरु दत्त को लेकर पजेसिव थीं और उन्हें हर उस एक्ट्रेस पर शक था, जिसके साथ उन्होंने काम किया था। झगड़े के बाद गीता बच्चों को लेकर अपने घर चले जाया करती थीं और गुरु उनसे यही कहते कि लौट आओ। दोनों एक-दूसरे से बेहद प्यार करते थे, मगर एक-दूसरे के साथ रहना दुश्वार हो गया था।'

वहीं कुछ रिपोर्ट्स यह भी कहती हैं कि गुरु दत्त चाहते थे कि गीता सिर्फ उनके लिए गाने गाए। मगर गीता एक महत्वकांक्षी महिला थीं और वह सिंगिंग के साथ-साथ एक्टिंग भी करना चाहती थीं। गुरु दत्त ने इसके लिए, फिल्म 'गौरी' बनाई, जिसमें गीता मुख्य भूमिका में होती, लेकिन फिल्म को यह कहकर बंद कर दिया गया कि गीता का बर्ताव ठीक नहीं था।

गीता घर पर बैठकर डिप्रेशन में जाती रहीं और उसी दौरान गुरु दत्त और वहीदा रहमान की कई फिल्में साथ में आने लगीं। उन दिनों वहीदा रहमान के साथ गुरु दत्त के अफेयर की अफवाह भी खूब उड़ने लगी थी। इन बातों में कितनी सच्चाई थी, यह किसी को नहीं पता मगर अंदर ही अंदर दो लोग टूट रहे थे। एक शादी खत्म हो रही थी और गीता दत्त और गुरु दत्त की छोटी सी दुनिया तबाह हो चुकी थी।

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एक रोज जब गुरु चले गए...

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अक्सर होते झगड़ों के बीच एक दिन ऐसा आया जिसकी कल्पना शायद किसी ने भी नहीं की थी। गीता दत्त अपने बच्चों के साथ गुरु दत्त से खफा होकर चली गई थीं। गुरु दत्त शराब में डूब चुके थे। उनके साथ उनके सबसे अच्छे दोस्त अबरार अल्वी थे। दोनों साथ में खाना खाते थे, मगर उस रोज अबरार बिना खाना खाए चले गए। गुरु ने भी खाना नहीं खाया। नशे में धुत गुरु दत्त ने गीता को फोन किया और कहा वो बच्चों से मिलना चाहते हैं। मगर रूठी हुई गीता ने इनकार कर दिया। गुरु दत्त ने नींद की गोलियां खाईं और सो गए...सोए भी तो ऐसे कि फिर कभी नहीं उठे।

हालांकि उनकी बहन ने एक इंटरव्यू में बताया था, 'अबरार ने उन्हें सलाह दी कि वे कभी भी नींद की गोलियों के साथ शराब न मिलाएं, गुरु दत्त को नींद की समस्या थी। शायद, यह खाली पेट नींद की गोलियों और शराब का एक घातक संयोजन बन गया, जिससे उनकी जान चली गई। इसे जानबूझकर आत्महत्या जैसा नहीं माना जा सकता।'

पहली वाली गीता गुरु दत्त के जाने से कहीं गुम हो गई थी

geet dutt died of liver cirrohsis

गुरु दत्त के जाने से गीता दत्त पूरी तरह से टूट चुकी थी। घर के कलेश में पहले ही उन्होंने गाना बंद कर दिया था। धीरे-धीरे उनको मिलने वाले गाने आशा भोसले को मिलने लगे और गुरु दत्त की याद में गीता उन्हीं की तरह शराब में डूबने लगीं। घर चलाने के लिए वह छोटे-मोटे शोज में परफॉर्म करने लगीं। बॉलीवुड शादी में छपे गुरु दत्त की बहन ललिता लाजमी के एक इंटरव्यू के मुताबिक,'गीता उनकी मृत्यु से तबाह हो गई थी। बंगाली परंपरा के अनुसार उसने एक साल तक सफेद कपड़े पहने। बाद के वर्षों में, मैं उससे अक्सर मिलती थी, लेकिन ज्यादातर समय वह नशे में रहती थी। वह शराब की छोटी बोतलें बुक शेल्फ में, बाथरूम में छिपाकर रखती थी।'

साल 1971 में गीता ने फिल्म 'अनुभव' में गाने गाए थे। उनके जीवन में इतना दुख था, मगर फिल्म के गानों में कहीं यह नहीं दिखा। अगले साल लिवर की बीमारी से पीड़ित गीता दत्त दुनिया को अलविदा कह गईं।

यह थीं महान गायिका गीता घोष, जो बाद में स्टार सिंगर गीता दत्त के नाम से जानी गईं। गीता दत्त को भुला पाना इतना आसान नहीं है। उनके गानों की बदौलत हम उन्हें आज भी महसूस कर पाते हैं।

गीता दत्त की जिंदगी से जुड़े यह किस्से पढ़कर आपको कैसा लगा हमें जरूर बताएं। उनका कौन-सा गाना आप सबसे ज्यादा पसंद करते हैं यह भी बताएं। इस लेख को लाइक और शेयर करें और बॉलीवुड के ऐसे ही किस्से जानने के लिए पढ़ते रहें हरजिंदगी।

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