28 अक्टूबर को करवा चौथ फेस्टिवल है। यह त्योहार खासतौर पर उत्तरभारत की महिलाएं मनाती हैं। यह त्योहार इस त्योहरा का महिलाएं साल भर इंतजार करती हैं। इस दिन अपने पति की लंबी उम्र के लिए महिलाएं पूरे दिन फास्ट रखती हैं और रात में जब चांद निकलता है तो उसे देख कर अपना व्रत खोलती है। ऐसी मान्यता है कि यह व्रत महिलाओं के पतियों की उम्र को बढ़ाता है और उनको रोगों से मुक्त करता है। इस व्रत की शुरूआत वैसे तो सुबह से ही हो जाती है मगर, यह व्रत तब तक अधूरा है जब तक इस व्रत की कथा को पढ़ा या सुना न जाए। इस व्रत से जुड़ी कई कहानियां हैं मगर, सबसे ज्यादा प्रचलित कथा सावित्री-सत्यवान और द्रोपदी की है। चलिए आज हम आपको करवा चौथ से जुड़ी इन रोचक कहानियों के बारे में बताते हैं।
एक नगर में एक साहुकार रहता था। उसके सात बेटे एक बेटी थी। बहन को सातों भाई बहुत प्रेम करते थे। बहन की शादी करा दी गई। शादी के बाद पहले करवा चौथ पर साहुकार ने बेटी को मायके बुलाया। करवा चौथ के दिन साहुकार की बेटी ने निर्जला व्रत रखा। व्रत के दिन शाम तक लड़की की हाल बिगड़ गई। भाइयों से बहन की यह हालत देखी नहीं गई और उन्होनें बहन को जल ग्रहण करने के लिए कहा। मगर बहन ने चंद्रमा को देख कर व्रत खोलने की बात कहीं। तब भी भाइयों से रहा नहीं गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया. एक भाई पीपल के पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी. तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो.बहन ने चांद का अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण कर लिया. भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु की खबर आ गई और इस बात को सुनकर वह दुखी हो गई। तभी वहां रानी इंद्राणी प्रकट हुई और उन्हों पति की मृत्यु का कारण बताया और साथ पति को दोबारा जीवित करने का तरीका भी बताया। रानी इंद्राणी ने लड़की के पति के शरीर में बहुत सारी सुईयां चुभो दीं। और लड़की को कहा कि इस पूरे वर्ष जितने चौथ के व्रत होंगे उसे तुम रखोगी तो तुम्हारा पति जीवित हो जाएगा। उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई. इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए।
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महाभारत काल में युद्ध में सफलता हासिल करने के लिए द्रौपदी के पति अर्जुन अस्त्र-शस्त्र इकट्ठा करने के लिए नीलगिरी पर्वत पर गए थे। काफी समय बीत गया मगर, जब अर्जुन नहीं आए तो द्रौपदी को अर्जुन की चिंता सताने लगी। तब द्रौपदी ने अपने भाई व सखा भगवान श्री कृष्ण से अर्जुन को वापिस लाने की तरकीब पूछी। श्री कृष्ण ने अपनी बहन के सुहाग को वापिस लाने के लिए करवाचाथ व्रत करने की सलाह दी और व्रत की विधि बताई। द्रौपदी ने श्री कृष्ण द्वारा बताई गई व्रत विधि के अनुसार ही व्रत किया और उसके बाद ही द्रौपदी अर्जुन से मिल पाई। भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवा चौथ व्रत रखने से पहले बताए थे कुछ खास नियम। उन्होंने बताया था कि सूर्योदय से पहले उठकर स्नना करके पति सौभाग्य की कामना की इच्छा का संकल्प लेकर निर्जलाा व्रत रखे। इस दिन मां पार्वति, भगवान शिव और गणेश जी का ध्यान पूरे दिन करने के लिए बताया। श्री कृष्ण ने इस व्रत को रखने से पहले बहन द्रौपदी को बताया कि आठ पूरियां अठावरी के लिए बनाई जाती है। सभी चीजें जैसे साल को देने वाला बाना भी करवा मां को चढ़ाया जाता है। कृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने पहले पीली मिट्टी से मां गौरी और गणेश जी बनाएं और मां गौरी का श्रृंगार कर उनसे सुहाग लिया और इसके बाद कहानी सुनी । भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को इस दिन चंद्रमा की पूजा करने के लिए भी कहा था। चंद्रमा की पूजा करके पति की लंबी उम्र मांगनी की विधि बताई थी। द्रौपदी ने ऐसा ही किया और उन्हें उनके पति अर्जुन मिल गए। तब से यह व्रत सभी महिलाएं रखने लगीं।
करवाचौथ के व्रत को सत्यवान और सावित्री की कथा से भी जोड़ा जाता है. इस कथा के अनुसार जब यमराज सत्यवान की आत्मा को लेने आए, तो सावित्री ने खाना-पीना सब त्याग दिया और यमराज के पीछे-पीछे चल दी। यह देख कर यमराज ने सावित्री से कहा ‘हे पतिव्रता नारी! पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। अब तुम वापस लौट जाओ।’ उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा, ‘जहां मेरे पति रहेंगे मुझे उनके साथ रहना है। यही मेरा पत्नी धर्म है।’ सावित्री के मुख से यह सुन कर यमराज बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सावित्री को वर मांगने को कहा और बोले- मैं तुम्हें तीन वर देता हूं। बोलो तुम कौन-कौन से तीन वर लोगी। तब सावित्री ने वर में सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी, ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा एवं अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वर मांगा। सावित्री के तीनों वर सुन कर यमराज चौंक गए। मगर उन्हें सावित्री की जिद के आग्र झुकना पड़ा। इस तरह सत्यवान की शरीर में जान वापिस आ गई। करवा चौथ के दिन महिलाएं सावित्री और सत्यवान की यह कथा इसलिए सुनती हैं ताकि वह भी पति के लिए यम तक से लड़ने की जिद ठान सकें।
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