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गणेश और कार्तिकेय के अलावा भगवान शिव पार्वती के बच्चों के बारे में कितना जानती हैं आप ?

आइए इस लेख में जानें शिव और पार्वती की संतानों से जुड़ी कुछ अनसुनी कहानियों के बारे में। 
Editorial
Updated:- 2021-05-31, 16:44 IST

पौराणिक कथाओं की न जाने कितनी ऐसी अनसुनी बाते हैं जिनसे आप सभी अनजान होंगे। ऐसी ही बातों में से एक है भगवान् शिव और पार्वती की संतानों से जुड़े कुछ ऐसे रोचक तथ्य जो आपमें से न जाने कितने ही लोगों से अनसुने होंगे। आमतौर पर जब भी शिव और पार्वती के बच्चों का जिक्र होता है जेहन में दो ही नाम आते हैं भगवान् गणेश और कार्तिकेय। गणेश यानी कि प्रथम पूजनीय गणपति भगवान् और कार्तिकेय जिनकी पूजा दक्षिण भारतीय क्षेत्रों में पूरे श्रद्धा भाव से की जाती है।

लेकिन क्या आप जानते हैं गणेश और कार्तिकेय के अलावा शिव पार्वती के और भी बच्चे थे जिनसे आप भले ही अंजान क्यों न हों लेकिन कई मायनों में उनकी उपस्थिति उल्ल्खनीय है। पौराणिक कथाओं और शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव कुल 8 बच्चों के पिता थे। गणेश और कार्तिकेय के बारे में तो आप सभी जानते ही हैं, लेकिन हम उनके और संतानों के बारे में बताने जा रहे हैं। आइए नई दिल्ली के जाने माने पंडित, एस्ट्रोलॉजी, कर्मकांड,पितृदोष और वास्तु विशेषज्ञ प्रशांत मिश्रा जी से जानें शिव और पार्वती की संतानों से जुड़ी कुछ रोचक बातें।

अशोक सुंदरी

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अशोक सुंदरी का जन्म कार्तिकेय के जन्म के बाद हुआ था। गुजरात और उसके आस-पास के इलाकों की व्रत कथाओं में अशोक सुंदरी की चर्चा होती आई है और शिव पुराण में भी अशोक सुंदरी का व्याख्यान किया गया है। अशोक सुंदरी का जिक्र पद्म पुराण में भी किया गया है। अशोक सुंदरी को माता पार्वती के अकेलेपन की सहेली बताया जाता है। कथाओं के अनुसार पार्वती जी ने अपना अकेलापन दूर करने के लिए कल्प वृक्ष जिसे लोगों की इच्छाओं को पूरा करने वाला पेड़ कहा जाता है से वरदान के रूप में अशोक सुंदरी को प्राप्त किया था।

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ज्योति

दक्षिण में शिव के साथ ज्योति को भी पूजा जाता है। ज्योति के जन्म से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं। पुराणों के अनुसार शिव के तेज से ज्योति का जन्म हुआ था। ज्योती के जन्म को पार्वती से भी जोड़कर देखा जाता है और कहा जाता है कि पार्वती के माथे से निकली एक चिंगारी से ज्योति का जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि ज्योति शिव के तेज को भी सह सकती थीं। खास तौर पर दक्षिण भारत में ज्योति की आज भी पूजा की जाती है और लोग उन्हें देवी स्वरूपा मानते हैं।

मनसा देवी

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शिव पुराण में मनसा देवी को पार्वती की ईर्ष्या से जोड़कर देखा जाता है। मनसा देवी का सबसे प्रसिद्ध मंदिर हरिद्वार में बनाया गया है। ऐसी मान्यता है कि मनसा देवी का जन्म शिव के वीर्य से हुआ था, लेकिन वो पार्वती की बेटी नहीं थी इसलिए पारवती जी उनसे ईर्ष्या रखती थीं। पौराणिक कथाओं में जिक्र है कि काद्रु जो कि सर्पों की मां थीं उन्होंने एक मूर्ति बनाई थी और किसी तरह से शिव का वीर्य उस मूर्ती को छू गया था और उसी से मनसा देवी का जन्म हुआ था। मनसा के बारे में प्रसिद्ध है कि वो सांपों के विश का असर भी बेअसर कर सकती हैं और मंदिरों में उन्हें सांप के काटे और छोटी माता जैसी बीमारियों को ठीक करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है।

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अयप्पा

पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव और विष्णु जी की संतान के रूप में अयप्पा का जन्म हुआ था। विष्णु जी ने जब देवताओं को अमृत बांटने के लिए मोहिनी रूप धारण किया था तब शिव जी और मोहिनी के बेटे के रूप में अयप्पा का जन्म हुआ था। इन्हें केरल और तमिलनाडु में पूजा जाता है। अयप्पा कुछ सबसे बलशाली देवों में से एक हैं। कहा जाता है कि अयप्पा ने परशुराम से लड़ना सीखा था।

जलंधर

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शिवजी का एक पुत्र था जिसका नाम था जलंधर। जलंधर को शिव जी ने ही जन्म दिया लेकिन बाद में वह शिव का सबसे बड़ा दुश्मन बना। श्रीमद्मदेवी भागवत पुराण के अनुसार जलंधर असुर के रूप में शिव का अंश था, लेकिन उसे इसका पता नहीं था। जलंधर बहुत ही शक्तिशाली असुर था। इंद्र को पराजित कर जलंधर तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा। श्रीमद्मदेवी भागवत पुराण के अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपना तेज समुद्र में फेंक दिया इससे जलंधर उत्पन्न हुआ। माना जाता है कि जलंधर में अपार शक्ति थी और उसकी शक्ति का कारण थी उसकी पत्नी वृंदा। वृंदा के पतिव्रत धर्म के कारण सभी देवी-देवता मिलकर भी जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे। परन्तु जालंधर के अभिमान को नष्ट करने के लिए शिव जी ने उसे मार दिया।

सुकेश

सुकेश को भी शिव पुत्र के रूप में जाना जाता है। राक्षसों का प्रतिनिधित्व दोनों लोगों को सौंपा गया- 'हेति' और 'प्रहेति'। ये दोनों भाई थे। ये दोनों भी दैत्यों के प्रतिनिधि मधु और कैटभ के समान ही बलशाली और पराक्रमी थे। प्रहेति धर्मात्मा था तो हेति को राजपाट और राजनीति में ज्यादा रुचि थी। राक्षसराज हेति ने अपने साम्राज्य विस्तार हेतु 'काल' की पुत्री 'भया' से विवाह किया। भया से उसके विद्युत्केश नामक एक पुत्र का जन्म हुआ। विद्युत्केश का विवाह संध्या की पुत्री 'सालकटंकटा' से हुआ। माना जाता है कि 'सालकटंकटा' व्यभिचारिणी थी। इस कारण जब उसका पुत्र जन्मा तो उसे लावारिस छोड़ दिया गया। विद्युत्केश ने भी उस पुत्र की यह जानकर कोई परवाह नहीं की कि यह न मालूम किसका पुत्र है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव और मां पार्वती की उस अनाथ बालक पर नजर पड़ी और उन्होंने उसको सुरक्षा प्रदान ‍की।

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Image Credit: pintrest

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