भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान ( आईआईटी ) के 20 पूर्व और वर्तमान छात्रों ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को चुनौती देते हुये उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की है। इस धारा के अंतर्गत दो समलैंगिक वयस्कों का परस्पर सहमति से अप्राकृतिक यौनाचार अपराध है।
याचिका दाखिल करने वाले आईआईटी के इन 20 पूर्व और वर्तमान छात्रों में विभिन्न आयु वर्ग के साइंटिस्ट, टीचर्स , एंट्रेप्रिन्योर और रिसर्चर्स शामिल हैं। यह ग्रुप एक इन्फॉर्मल एलजीबीटी ग्रुप प्रवृत्ति का हिस्सा है, जो इस समुदाय के इंटरेक्शन, कनेक्टिविटी और नेटवर्क के लिए सुरक्षित जगह मानी जाती है। याचिका में कहा गया है कि धारा 377 संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों का हनन करते हैं, जिनमें आर्टिकल 14, 15, 16, 19 और 21 आते हैं।
उनका दावा है कि सेक्शुअल इंट्रस्ट को अपराध की श्रेणी में रखने का नतीजा इस समुदाय में शर्म की भावना, सेल्फ एनर्जी लॉस और कलंक के रूप में देखने को मिला है। याचिका में कहा गया, 'हम याचिकाकर्ता उम्र और लिंग के हिसाब से अलग-अलग बैकग्राउंड से आते हैं। हम भारत के अलग-अलग हिस्सों से आते हैं। जिसमें आंध्रप्रदेश के काकीनाडा से लेकर उड़ीसा का संभलपुर, छत्तीसगढ़ का कोरबा और दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर जैसे महानगर भी शामिल है। हम वैज्ञानिक हैं, एंट्रेप्रिन्योर हैं, टीचर हैं, रिसर्चर हैं, बिजनेस ओनर हैं और अलग-अलग कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारी हैं। हम किसानों के बच्चे हैं, होममेकर हैं और सरकारी मुलाजिम हैं।'
गैर सरकारी संगठन नाज फाउंडेशन और अनेक प्रमुख नागरिकों ने शीर्ष अदालत के 2013 के फैसले को चुनौती दे रखी है, जिसमें सहमति से दो व्यस्कों के बीच समलैंगिक यौनाचार को अपराध की श्रेणी में शामिल कर दिया था। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं को वृहद पीठ के पास भेजते हुये विधि एवं न्याय मंत्रालय, गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय से इस बारे में जवाब मांगा था।
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