‘आपके पास तो मेरे लिए टाइम ही नहीं है’, अगर आप भी वर्किंग पैरेंट हैं, तो अपने बच्चे से कभी न कभी ऐसा जरूर सुना होगा। असल में यह हर वर्किंग पैरेंट के साथ होना आम बात है। उनके लिए अपनी पेशेवर जिंदगी और बच्चे के लालन-पालन के बीच संतुलन बनाना बहुत मुश्किल हो जाता है। कभी-कभी कुछ माता-पिता इस बात को लेकर मायूस भी हो जाते हैं कि वे अपने बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पा रहे हैं। हालांकि आपको इतना नहीं सोचना चाहिए। अगर आप काम कर रहे हैं, तो निसंदेह वह जरूरी होगा। ऐसे में कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर आप सब कुछ संतुलित रख सकते हैं। यह कैसे संभव है, आइए आर्टेमिस अस्पताल के मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार विज्ञान के प्रमुख मनोचिकित्सक व सलाहकार डॉ. राहुल चंडोक से जानते हैं।
धैर्य रखना सीखें
एक बात गांठ बांध लीजिए, इस जीवन में सबसे बड़ी पूंजी है धैर्य। अगर धैर्य हो तो जीवन की कई मुश्किलों का हल आसानी से निकल आता है। बच्चों के लालन-पालन में भी इसकी बड़ी भूमिका है। कई बार ऑफिस की किसी बात से हम उलझन में होते हैं और उसके बदले में गुस्से का सामना करता है हमारा बच्चा। ऐसा बिल्कुल न होने दें। बच्चे के सामने हमेशा धैर्य बनाए रखें। खासतौर पर उसकी पढ़ाई के मामले में बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है। हो सकता है कि पर्याप्त ध्यान न दे पाने से उसका रिजल्ट आपकी उम्मीदों के अनुरूप न रहे, लेकिन इस बात पर झुंझलाहट न दिखाएं।
बच्चे की बात सुनें
अगर काम के चक्कर में आपके पास बच्चे के लिए बहुत समय नहीं रह पाता है, तो आपको प्रयास करना चाहिए कि जब भी समय मिले उसकी बातों को ध्यान से सुनें। पढ़ाई के बारे में जब उससे बात हो तो वह रिजल्ट पर केंद्रित न हो। उसे ऐसा नहीं लगना चाहिए आप उसे बस रिजल्ट मशीन और स्टेटस सिंबल की तरह मानते हैं। आपकी बात स्कूल के परिवेश, अध्यापकों और उसके दोस्तों पर केंद्रित होनी चाहिए। आपको समझना चाहिए कि उसे कौन से विषय अच्छे लगते हैं और किन विषयों में उसे परेशानी का सामना करना पड़ता है।
ले सकते हैं ट्यूटर की सहायता
अगर बच्चा किसी विषय में कमजोर लगता है तो आप ट्यूटर की सहायता ले सकते हैं। हालांकि इसमें उसकी सहमति अवश्य लें। ट्यूशन उसे किसी बोझ जैसा नहीं लगना चाहिए। आप उससे खुलकर बात करें और उसके मन की जानें, तभी ट्यूशन का फैसला लें। ट्यूशन को स्टेटस दिखाने का माध्यम नहीं बनाना चाहिए। अगर बच्चा कहे कि वह स्वयं कर सकता है, तो उसकी बात पर विश्वास करें और उसका उत्साहवर्धन करें, जिससे वह सही परिणाम ला सके।
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खुद भी समय देना जरूरी
यह ध्यान रखें कि आपके बच्चे के लिए आपसे बेहतर कोई नहीं हो सकता है। ट्यूशन बस एक माध्यम हो सकता है, लेकिन आपको बच्चे को समय देना जरूरी है। काम का शेड्यूल तय कीजिए और ऑफिस के टाइम के बाद ऑफिस का काम मत कीजिए। इस बात की स्पष्ट लकीर रखिए कि कौन सा समय परिवार और बच्चे के लिए है। टेक्नोलॉजी ने जीवन को आसान बनाया है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि दिनभर लैपटॉप और मोबाइल पर काम ही करते रहें। कोशिश करें कि जब बच्चे के साथ हों तो इन सबसे दूर रहें। पढ़ाई में बच्चा कैसे प्रगति कर रहा है, इसके लिए हफ्ते में एक या दो दिन टेस्ट के लिए तय कर लीजिए। इस टेस्ट की प्रक्रिया को रोचक बनाइए। इसमें गलती करने पर सजा नहीं, लेकिन अच्छा करने पर इनाम जरूर मिलना चाहिए। इससे बच्चा उत्साहित होगा और उसका यह उत्साह उसके परिणाम में भी दिखेगा।
अगर आप भी बच्चे को इसी तरह समय देंगे, तो निसंदेह उसकी पढ़ाई पर अच्छा असर पड़ेगा। इसके बावजूद अगर आपको लगता है कि आप संतुलन नहीं बना पा रहे हैं तो किसी पेशेवर पैरेंटिंग गाइड से मिलकर भी सलाह ले सकते हैं।
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Image credit- Herzindagi
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