आपने अक्सर लोगों को मंदिर के भीतर या बाहर परिक्रमा लगाते हुए देखा होगा। यह परिक्रमा पूजा का ही एक चरण माना जाता है। ज्योतिष की मानें तो परिक्रमा लगाने से आपको पूजा का पूर्ण फल और ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है।
परिक्रमा करने के कुछ नियम बताए जाते हैं और उनका पालन जरूरी माना जाता है। यदि हम नियमों की मानें तो परिक्रमा हमेशा घड़ी की सुई की दिशा में की जाती है। आपको कभी भी परिक्रमा उल्टी दिशा में नहीं करनी चाहिए। ऐसे ही अगर आप किसी भी देवी-देवता की परिक्रमा करें तो उसके भी कुछ विशेष नियम बनाए गए हैं।
वहीं शिवलिंग की पूरी परिक्रमा न करने की सलाह दी जाती है। आइए ज्योतिर्विद पं रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें मंदिर में हर एक भगवान की परिक्रमा करने के सही नियमों के बारे में।
भगवान गणेश की मूर्ति की परिक्रमा तीन बार करने की सलाह दी जाती है और ऐसा माना जाता है कि यदि आप इस नियम से ही परिक्रमा करते हैं तो सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होने के साथ आपको गणपति का आशीर्वाद भी मिलता है।
यदि आप भगवान शिव और माता पार्वती या फिर शिव परिवार की परिक्रमा करती हैं तो आपके लिए तीन परिक्रमाएं करना शुभ माना जाता है। दरअसल ऐसा माना जाता है कि परिक्रमा हमेशा विषम संख्या में ही करनी चाहिए जिससे आपको इसका पूर्ण फल मिलता है। भक्तों के लिए भगवान शिव और देवी पार्वती की मूर्ति के चारों ओर तीन बार परिक्रमा करना उचित माना जाता है।
जब आप विष्णु मंदिर में परिक्रमा कर रहे हों तो आपको हमेशा गर्भगृह के चारों ओर चार बार परिक्रमा करें। ऐसा माना जाता है कि विष्णु जी की परिक्रमा यदि आप चार बार करते हैं तो उनकी पूजा का पूर्ण फल मिलता है। ऐसे ही अन्य कई देवताओं की परिक्रमा भी चार बार करने की सलाह दी जाती है।
यदि हम हनुमान मंदिर में परिक्रमा करने जा रहे हैं तो आपको तो सामान्यतः हमें तीन परिक्रमाएं करने का सुझाव दिया जाता है। इससे आपको पूजा का फल भी मिलता है और मनोकामनाओं की पूर्ति भी होती है। वहीं यदि आप शनि देव की परिक्रमा कर रहे हैं तो आपको सात परिक्रमा करने की सलाह दी जाती है।
इस अनुष्ठान से हनुमान भक्तों को आत्मिक समृद्धि और आध्यात्मिक लाभ मिलता है। हनुमान जी के मंदिर में परिक्रमा करना एक आध्यात्मिक यात्रा की भावना को बढ़ावा देता है और भक्तों को उनके आराध्य देवता के साथ संबंध स्थापित करने का अवसर प्रदान करता है। वहीं जब आप शनि देव की परिक्रमा करते हैं तो इससे आपको संतुलित जीवन, आर्थिक समृद्धि और कर्मशीलता का आशीर्वाद मिलता है।
जब हम किसी पेड़ की परिक्रमा की बात करते हैं, तो आमतौर पर पीपल और बरगद के पेड़ों की सात परिक्रमाएं करने की प्रथा है। यदि आप शनिवार को पीपल के पेड़ की परिक्रमा करें तो यह बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन आप पीपल की सात परिक्रमाएं करें और शनि देव का आशीर्वाद पाएं।
यह परंपरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ जुड़ी हुई है और लोग इसे अपनी आध्यात्मिक साधना का हिस्सा मानते हैं। पीपल के पेड़ की परिक्रमा का आयोजन विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक अवसरों पर किया जा सकता है। वहीं बरगद की परिक्रमा विशेष रूप से वट सावित्री व्रत के दौरान करने का विधान है।
यदि हम किसी भी देवी जैसे माता दुर्गा की परिक्रमा कर रहे हैं तो चार परिक्रमा करने की सलाह दी जाती है। आप किसी भी देवी की चार परिक्रमाएं कर सकते हैं। माता दुर्गा की पूजा में चार परिक्रमाएं करना एक शुभ है। यदि हम माता दुर्गा जी की परिक्रमा कर रहे हैं, तो इस परिक्रमा में, चारों दिशाओं में माता की पूजा के लिए चरणों को छूकर पुष्प समर्पित करने की सलाह दी जाती है। यह अनुष्ठान सामंजस्यपूर्ण रूप से आत्मा की शुद्धि और दुर्गा माता के साकार रूप के साथ संबंध को बढ़ाने में मदद करता है।
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