पिछले कुछ समय में देश में मॉब लिचिंग की घटनाएं बढ़ी हैं, जिन्हें लेकर देश के बड़े-बड़े सेलेब्रिटीज ने चिंता जताई है। इस समय में अयोध्या में राम मंदिर बनाए जाने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी चल रही है। लेकिन हिंदू-मुस्लिम के नाम पर होने वाले विवादों के बीच ऐसे उदाहरणों की भी कमी नहीं है, जिनमें मानवीयता सबसे ऊपर होती है। वाराणसी का एक ऐसा ही मामला इस समय में चर्चित हो रहा है, जिसमें एक 19 वर्षीय हिंदू लड़की का अंतिम संस्कार पड़ोस के मुस्लिम लोगों ने किया। मलेरिया की शिकार होने के बाद इस लड़की की मौत हो गई थी।
मलेरिया के तेज बुखार से हुई बेटी की मौत
आईएएनएस की रिपोर्ट के अनुसार वाराणसी के हरहुआ डीह इलाके में यह घटना हुई। सोनी नाम की लड़की मलेरिया बुखार से लड़ रही थी और रविवार रात (11 अगस्त) को उसकी मौत हो गई। आईएएनएस की रिपोर्ट के अनुसार इस लड़की के पिता होरीलाल विश्वकर्मा कुछ साल पहले पैरालाइज हो गए थे और उनकी मां दिल की मरीज हैं। सोनी का भाई घर का अकेला कमाने वाला सदस्य है।
जब सोनी की मौत हुई तो उनके मुस्लिम पड़ोसियों ने मानवता के नाते एक अनूठी पहल की। इन लोगों ने इस लड़की के अंतिम संस्कार का जिम्मा उठाया और पिता से कहा कि वे अंतिम संस्कार की चिंता ना करें।
काशी ( पुराना नाम) में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अपने असहाय पड़ोसियों की मदद कर देश को सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखने का ऐसा उदाहरण पेश किया है, जिससे देश का हर नागरिक सबक ले सकता है। काशी की साझी संस्कृति ऐसी है, जिसमें इंसानियत को सबसे ऊपर रखा गया।
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मुस्लिम भाइयों ने दिया अर्थी को कंधा
हरहुआ डीह में मुस्लिमों की आबादी ज्यादा है, इसी कारण जब लड़की की अर्थी को कंधा देने वाले हाथ कम पड़ गए तो मुस्लिम समुदाय ने इसके लिए मदद के हाथ आगे बढ़ाएं। गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करते हुए इन मुस्लिमों ने हिन्दू बेटे के साथ अर्थी को कंधा दिया और उसे मणिकर्णिका घाट ले तक ले गए।
हिंदू बहन की अर्थी को कंधा देने वालों में बब्बू हाश्मी, अकबाल खां, सोनू खां, महबूब शाह, छेदी शाह, असलम शाह, अनवर हाशमी, अफरोज, भोला जायसवाल, राजेश विश्वकर्मा, भरत सिंह अनवर उर्फ़ अन्नू शामिल रहे। इस दौरान इन मुस्लिम्स ने हिंदुओं की परंपरा के अनुसार रास्ते भर 'राम नाम सत्य है' बोला और इसके बाद अंतिम संस्कार में भी शामिल हुए।
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हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक
होरीलाल विश्वकर्मा पिछले 25 सालों से इस इलाके में रह रहे थे। उनके परिवार में उनकी पत्नी जड़ावती एक बेटा और तीन बेटियों थीं। वे रोजी-रोटी चलाने के लिए फर्नीचर का काम करते थे, लेकिन पिछले कुछ सालों में उन्हें लकवा मार गया, जिससे उनका चलना-फिरना बंद हो गया। इसी दौरान पत्नी को भी गंभीर हार्ट डिजीज हो गई। परिवार की जिम्मेदारी बड़े पुत्र राजू पर है और वह किसी तरह घर का गुजारा चला रहा था। इसी दौरान बेटी सोनी की मलेरिया बुखार से तबियत बिगड़ गई और उसे अस्पताल ले जाया गया। लेकिन इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। सोनी की मौत के बाद उसके पिता और इकलौते भाई की दयनीय दशा देखकर मुस्लिम पड़ोसियों ने उनकी आर्थिक मदद भी की। यही नहीं वहां रहने वाले अन्य हिंदू परिवार भी इस दौरान आर्थिक सहायता करने के लिए इस परिवार के पास पहुंच गए। हिंदू-मुस्लिमों के बीच ऐसी एकजुटता की मिसाल मिलना देश के लिए गर्व की बात है और यह जाहिर करता है कि देश के लोग जरूरत पड़ने पर मजहब की बनाई दीवारों को गिराकर इंसान होने का फर्ज निभाने में सबसे आगे हैं।
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