हमारे देश में पिछले एक दशक में महिलाओं ने हर क्षेत्र में अच्छी-खासी तरक्की की है, लेकिन इसके बावजूद उन्हें उनकी पॉपुलेशन की तुलना में उतना रिप्रजेंटेशन नहीं मिलता। आज भी देश के कई हिस्सों में महिलाओं और लड़कियों के साथ भेदभाव किया जाता है और उनके साथ हिंसा की कई खबरें सुनने को मिलती हैं। बेंगलुरु में ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जहां लड़कियां लड़कों की तादाद में ज्यादा हैं। यहां लड़कियों के साथ भेदभाव इसलिए किया जा रहा है क्योंकि यहां के कुछ कॉलेजों को ज्यादा लड़कियों का होना एक प्रॉब्लम नजर आता है। बेंगलुरु के कॉलेज प्रशासन ने इस समस्या के निपटाने के लिए जो हल निकाला है, वह भी कम हैरान करने वाला नहीं है। सूत्रों के अनुसार यहां के कॉलेजों में प्री यूनिवर्सिटी कोर्सेस में लड़कियों के लिए कट ऑफ लड़कों की तुलना में ज्यादा रखा गया है। इस फैसले को सही ठहराने के लिए कॉलेज कर्नाटक सरकार के उस दिशानिर्देश का हवाला दे रहे हैं, जिसमें लड़कियों को बेहतर शिक्षा दिए जाने का लक्ष्य रखा गया है।
यहां के सरकारी और सरकारी मदद से चलने वाले संस्थानों में लड़कों और लड़कियों की संख्या में बराबरी लाने के लिए कर्नाटक राज्य सरकार के प्री यूनिवर्सिटी एजुकेशन विभाग ने पीयू कॉलेजेज को दिशानिर्देश जारी किए हैं, जिसमें उन्हें सीट मैट्रिक्स फॉलो करने के लिए कहा गया है। हालांकि पहले इसके जरिए ज्यादा लड़कियों को प्राइवेट और सरकारी कॉलेजों में दाखिला दिलाने का लक्ष्य रखा गया था। हालांकि अब इसका उल्टा असर नजर आने लगा है, क्योंकि अब ये कहा जा रहा है कि लड़कियां लड़कों से अच्छे नंबर ला रही हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार बेंगलुरु के MES PU College में लड़कों के लिए कटऑफ 92 फीसदी रखी गई है, जबकि लड़कियों के लिए कटऑफ 95 फीसदी है।
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इस रिपोर्ट के अनुसार बैंगलुरु क्राइस्ट यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर ने कहा है कि लड़कियों के लिए ज्यादा कटऑफ रखकर क्लास रूम में 'जेंडर बैलेंस' बनाने की कोशिश की जा रही है। यही नहीं, वाइस चांसलर ने यहां तक कहा कि अगर लड़कियों के लिए कट ऑफ ज्यादा नहीं रखा जाए तो पूरा कॉलेज सिर्फ लड़कियों से ही भरा नजर आएगा। इस यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर का नाम फादर अब्राहम है।
लीगल एक्सपर्ट्स ने लड़कियों के लिए ज्यादा कटऑफ सेट किए जाने को अवैध करार दिया है। लॉयर ऋषिकेश यादव का कहना है,
'भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार हर व्यक्ति, चाहें वह पुरुष हो या महिला, कानून की नजर में समान है और उसे कानून की तरफ से समान संरक्षण की गारंटी मिलती है। लड़कियों के लिए कॉलेज में ज्यादा कटऑफ सेट करने का फैसला मनमाना है, अवैध है और संविधान के खिलाफ है।'
जाहिर है लड़कियों और महिलाओं के लिए अलग पैमाने बनाना, जो उन्हें अपने मनपसंद कॉलेज में दाखिला लेने और करियर में आगे बढ़ने से रोकते हों, सरासर गलत हैं और इनकी पुरजोर खिलाफ होनी चाहिए। अच्छी बात ये है कि लड़कियां और महिलाएं अब अपने अधिकारों के लिए पहले से ज्यादा सजग हैं और अन्याय को खामोशी से बर्दाश्त नहीं करतीं।
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