फरवरी का महीना आते ही लोग बसंत पंचमी का इंतजार करने लगते हैं। यह त्योहार हिंदू धर्म में मानाए जाने वाले बड़े त्योहारों में से एक है। इस दिन बुद्धि और विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। इतना ही नहीं इस दिन से एक नए मौसम की शुरुआत होती है जिसे अंगेजी में स्प्रिंग सीजन कहा जाता है। इस दिन से ठंड कम होने लग जाती है और हर तरफ हरियाली ही नज़र आती है।
वहीं, गांवों में सरसों, चना, जौ, ज्वार और गेंहू की बालियां खिलने लग जाती हैं। वैसे, हिंदू धर्म में इस मौसम के वेलकम के लिए बसंत पंचमी का त्योहार मानाया जाता है और इस दिन मां सरस्वती की पूजा करने का रिवाज है। कुछ लोग इस त्योहार को सरस्वती पंचमी भी कहते हैं। आइए हम आपको बताते हैं बसंत पंचमी क्यों मनाई जाती है, इसका शुभ मुहूर्त क्या है और सरस्वती पूजन करने की विधि क्या है।
हिंदू धर्म में हर मौसम के आने से पहले एक त्योहार मनाया जाता है। जैसे ठंड से पहले शरद पूर्णिमा, गर्मियों के आने से पहले होली, बरसात से पहले सावन और बसंत आने से पहले बसंत पंचमी मनाई जाती है। आपको बता दें कि बसंत पंचमी को बसंत पंचमी को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। इस दिन से ठंड का मौसम खत्म होने लगता है और मौसम सुहावना हो जाता है।
इस दिन मां सरस्वती का जन्म भी हुआ था इसलिए इस दिन को सरस्वती पंचमी भी कहा जाता है। लोग इस दिन मां सरस्वती की पूजा करते हैं। हिंदू धर्म में मां सरस्वती को ज्ञान और कला की देवी कहा गया है। इसलिए इस दिन स्कूलों में भी देवी सरस्वती की पूजा की जाती है और प्रसाद बांटा जाता है।
इस दिन उनकी विशेष पूजा होती है और पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। साल 2019 की बसंत पंचमी और भी खास है, क्योंकि इस दिन प्रयागराज में चल रहे कुंभ में शाही स्नान होगा। बसंत पंचमी के दिन होने वाले इस स्नान में करोड़ों लोग त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने आएंगे। इतना ही नहीं, उत्तर भारत की कई जगहों पर बंसत मेला भी लगता है।
उज्जैन के आचार्य मनीष से जानें, बसंत पंचमी का शुभ मुहूर्त।
बसंत पंचमी पूजा मुहूर्त: सुबह 6.40 बजे से दोपहर 12.12 बजे तक
बसंत पंचमी शुरू - 12:25, 9 फरवरी 2019
बसंत पंचमी समाप्त - 02:08, 10 फरवरी 2019
हिंदु पौराणिक कथाओं में एक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार इस दुनिया को बनाने वाले देवता ब्रह्मा ने जब इस दुनिया की रचना कर ली। तब उन्हें लगा कि इतनी खूबसूरत दुनिया में भी कुछ कमी है। तब उन्होंने अपने कमंडल से पानी छिड़का। इससे एक बेहद खूबसूरत चार हाथों वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई. उस स्त्री के एक हाथ में वीणा, दूसरे में पुस्तक, तीसरे में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में था। ब्रह्मा जी ने इस सुंदर देवी से वीणा बजाने को कहा। जैसे वीणा बजा ब्रह्मा जी की बनाई हर चीज़ में स्वर आ गया। बहते पानी की धारा से भी आवाज आने लगी। पक्षी चहकने लगे और पेड़ पौधों में भी सरसराहट आ गई। तभी ब्रह्मा जी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती नाम दिया। वह दिन बसंत पंचमी का था। इसी वजह से हर साल बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती का जन्मदिन मनाया जाने लगा।
इस दिन घरों और स्कूलों में मां सरस्वती की पूजा की जाती है और प्रसाद बांटा जाता है। इस दिन पूजा करने का सही तरीका आचार्य मनीष बताते हैं।
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