अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। जी हां राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का फैसला आ गया है, फैसले में विवादित जमीन रामजन्मभूमि न्यास को देने का फैसला किया है। जबकि मुस्लिम पक्ष को अलग जगह देने के लिए कहा गया है। यानि सुन्नी वफ्फ बोर्ड को अलग जमीन देने का आदेश कोर्ट ने दिया है।
दशकों पुराना, अयोध्या का मामला लंबे समय तक देश के सामाजिक-धार्मिक प्रवचन का हिस्सा रहा है। वर्ष 1528 में, बाबर द्वारा अयोध्या के विवादित स्थल पर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था और हिंदुओं का दावा है कि यह भगवान राम की जन्मभूमि है और यहां पहले एक मंदिर था। हालांकि, मुसलमानों का दावा है कि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि यहां कभी मंदिर बना था। इससे हिंदू और मुसलमानों के बीच हिंसक संघर्ष हुआ। विवाद देश के राजनीतिक प्रवचन पर हावी है और आज के फैसले का देश की राजनीति पर बड़ा असर पड़ेगा। इस फैसले से हिंदुओं और मुसलमानों के बीच भविष्य के संबंधों पर असर पड़ने की संभावना है। आइए इस बारे में विस्तार से जानें की लोगों को अयोध्या यानि भगवान की राम की जन्मभूमि से इतना लगाव क्यों हैं?
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लोगों को क्यों है अयोध्या से जुड़ाव
अयोध्या भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक बहुत ही पुराना धार्मिक नगर है, जो पवित्र सरयू नदी के तट पर बसा है। जी हां अयोध्या बौद्ध और हिंदु धर्म के पवित्र और प्राचीन तीर्थ स्थलों में से एक है और जैन धर्म का तीर्थस्थल है जो सप्त पुरियों में से एक है। हिंदुओं की मान्यता है कि श्री राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और उनके जन्मस्थान पर एक भव्य मन्दिर विराजमान था जिसे मुगल आक्रमणकारी बाबर ने तोड़कर वहां एक मस्जिद बना दी।
वेद में अयोध्या को भगवान की नगरी बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। रामायण के अनुसार, ''अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। कई शताब्दी तक यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा। लोगों का इससे जुड़ाव इसलिए है क्योंकि अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर है। यहां आज भी हिंदु, बौद्ध एवं विशेषकर जैन धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं।'' जैन मत के अनुसार, अयोध्या में 24 तीर्थंकरों में से 5 तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। इसमें पहले ऋषभनाथ जी, दूसरे अजितनाथ जी, चौथे अभिनंदननाथ जी, पांचवे सुमतिनाथ जी और चौदहवें अनंतनाथ जी शामिल हैं।
जबकि जैन और वैदिक दोनों मतों के अनुसार भगवान रामचन्द्र जी का जन्म भी इसी भूमि पर हुआ। सारे सभी तीर्थंकर और भगवान रामचंद्र जी सभी इक्ष्वाकु वंश से थे। इसका महत्व इसके प्राचीन इतिहास में निहित है क्योंकि भारत के फेमस एवं प्रतापी क्षत्रियों (सूर्यवंशी) की राजधानी यही नगर रहा है और सभी क्षत्रियों में दाशरथी रामचन्द्र अवतार के रूप में पूजे जाते हैं। रामकोट शहर के पश्चिमी हिस्से में स्थित रामकोट अयोध्या में पूजा का प्रमुख स्थान है। यहां भारत और विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं का साल भर आना जाना लगा रहता है। मार्च-अप्रैल में मनाया जाने वाला रामनवमी पर्व यहां बड़े जोश और धूमधाम से मनाया जाता है।
भगवान श्रीराम की लीला के अलावा अयोध्या में श्रीहरि के अन्य सात रुप भी प्रकट हुए हैं जो अलग-अलग समय देवताओं और मुनियों की तपस्या से प्रकट हुये। जिन्हें सप्तहरि के नाम से जाना जाता है। इनके नाम भगवान चन्द्रहरि, गुप्तहरि, विष्णुहरि, चक्रहरि, बिल्वहरि, धर्महरि और पुण्यहरि हैं।
राम जन्मभूमि विवाद से जुड़ी कुछ बातें
- 1524 में रामजन्म भूमि पर मस्जिद बनाई गई थी। जबकि रामायण और रामचरित मानस हिंदुओं के पौराणिक ग्रंथ के अनुसार यह भगवान राम की जन्मभूमि है।
- 1853 में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ।
- 1859 में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अंदर का हिस्सा और हिंदुओं को बाहर का हिस्सा इस्तेमाल करने के लिए कहा।
- 1986 में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया। मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की। सन 1989 में विश्व हिंदु परिषद ने विवादित स्थल से सटी जमीन पर राम मंदिर की मुहिम शुरू की।
- 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई। परिणामस्वरूप देशव्यापी दंगों में करीब 2 हजार लोगों की जानें गईं।
- 2001: बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर तनाव बढ़ गया और विश्व हिंदू परिषद ने विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण करने के अपना संकल्प दोहराया।
- 2002 में जब गैर-विवादित जमीन पर कुछ गतिविधियां हुई तो असलम भूरे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई।
- 2003 में इस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता।
- 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया। न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे राम जन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि वहां से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा। दो न्यायधीधों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए। लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
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