इन तीन शर्तों के टूटने की वजह से अप्‍सरा उर्वशी और राजा पुरूरवा की प्रेम कहानी रह गई थी अधूरी

हम कितना ही आधुनिकता से घिर जाएं पौराणिक कहानियां पीढ़ी दर पीढ़ी लोग एक दूसरे को पास करते जाते हैं। आज हम एक ऐसी ही अप्‍सरा और राज की प्रेम कहानी की बात करेंगे जिसमें, रोचकता, रहस्‍य और दुख का मिला जुला मिश्रण मिलता है। 

apsara urvashi and king pururava love story in hindu mythology ()

चाहे टीवी सीरियल हो, बॉलीवुड की फिल्‍में हों या फिर नॉवल्‍स हों। लव स्‍टोरी एक ऐसा विषय है जो हर जगह हिट है। वैसे लव स्‍टोरी की बात की जाए तो भारत के कई प्रमुख ग्रंथों में भी अलग-अलग प्रेम कथाएं पढ़ने को मिलती हैं। खासतौर पर हिंदुओं के पौराणिक ग्रंथों जैसे महाभारत और रामायण में ऐसी कहानियों की भरमार है। इन ग्रंथों में ज्‍यादातर राजा-रानियों की प्रेम कहानी, राजकुमारी और योद्धाओं की प्रेम कहानी और अप्‍सराओं की कहानियां मिलती हैं, जो लोगों को काफी लुभाती हैं। मजेदार बात तो यह है कि हम कितना ही आधुनिकता से घिर जाएं ये कहानियां पीढ़ी दर पीढ़ी लोग एक दूसरे को पास करते जाते हैं। आज हम एक ऐसी ही अप्‍सरा और राज की प्रेम कहानी की बात करेंगे जिसमें, रोचकता, रहस्‍य और दुख का मिला जुला मिश्रण मिलता है।

हम बात कर रहे हैं उर्वशी और पुरूरवा के प्यार की कहानी की। यह कहानी प्यार, जुनून, ईर्ष्या और जुदाई की कहानी है। तो चहिलए जानते हैं उर्वशी और पुरूरवा की लव स्‍टोरी के बारे में।

कौन था पुरूरवा

पुरूरवा चंद्र वंश के पहला राजा था। उसकी गिनती बेहद बुद्धीमान और शक्तिशाली राजाओं में होती थी। पुरूवा बुद्ध और इला का पुत्र था। पुरूरवा की वीरता के चर्चे इंद्र लोक तक थे। कई बार देव लोक में असुरों से लड़ने के लिए पुरूरवा को बुलाया जाता था। पुरूरवा भी अपनी शक्ति और चतुरता से असुरों पर विजय हासिल कर लेता था। पुरूरवा के जीवन में सुख ही सुख था। मगर पुरूरवा की पत्‍नी उसे संतान का सुख नहीं दे पा रही थी। जिस वजह से वह परेशान रहता था।

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कौन थी उर्वशी

उर्वशी देवी इंद्र की दरबार में एक अप्‍सरा थी। कहते हैं, देव राज इंद्र के दरबार में वैसे तो बहुत सी अप्‍सराएं थीं मगर उर्वशी सारी अप्‍सराओं में सबसे सुंदर थी। उसकी सुंदरता के चर्चे पृथ्‍वी लोक तक थे। उर्वशी को भी देव लोक के जीवन से ज्‍यादा पृथ्‍वी में रहने वाले साधारण मनुष्‍यों का जीवन ज्‍यादा अच्‍छा लगता था। वह देव राज इंद्र के दरबार में बोर हो जाती थी। एक दिन उसने निर्णय लिया कि वह पृथ्‍वी पर भ्रमण करने जाएगी। उर्वशी ने ऐसा ही किया। पृथ्‍वी पर घूम फिर कर जब वह वापिस देव लोक लौटने लगती तो रास्‍ते में एक राक्षस ने उसे पकड़ लिया। उर्वशी को राक्षस के चंगुल से बचाने के लिए राजा पुरूरवा वहां आए और उर्वशी को बचा लिया। उर्वशी राजा की वीरता को देख बेहद आकर्षित हुई वहीं राजा भी उर्वशी की सुंदरता पर मोहित हो गया। मगर उर्वशी को वापिस देव लोक लौटना था सो वह लौट गई। मगर दोनों के ही मन एक दूसरे के लिए प्रेम पनपने लगा था।

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उर्वशी को मिला था श्राप

देव लोक पहुंच कर एक नाटक के दौरान उर्वशी को देवी लक्ष्‍मी की भूमिका निभानी थी और एक दृश्‍य में उसे पुरुषेतम नाम पुकारना था मगर वह पुरुषोत्‍म की जगह पुरूरवा नाम लेने लगी। नाटक को खराब करने के दंड स्‍वरूप ऋषि भरत ने उर्वशी को श्राप दिया कि वो पृथ्‍वी लोक जाएगी और एक साधारण राज के प्रेम में पड़ कर उसके बच्‍चों को जन्‍म देगी। उर्वशी ने ऋषि का श्राप खुशी-खुशी स्‍वीकार कर लिया और पृथ्‍वी पर पहुंच गई। मगर श्राप के साथ उवर्श इस तीन शर्तों में भी बंधी थी, जिनके टूटने पर उसे पृथ्‍वी से वापिस लौटना पड़ता। पृथ्‍वी पर आकर उर्वशी राजा पुरूरवा से मिली और दोनों ने पूरी जिंदगी साथ गुजारने का एक दूसरे वादा किया मगर उर्वशीने राजा को पहले ही सचेत किया कि तीन शर्ते माननी होंगी। पहली शर्त थी कि उर्वशी जा बकरियां देव लोक से लाई थी उसकी रक्षा राजा को करनी होगी। उवर्श देव लोक में केवल घी का ही सेवन कर सकती थी और तीसरी संभोग के वक्‍त दोनों एक दूसरे को नग्‍न अवस्‍था में नहीं देख सकते ।

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कैसे टूटी शर्त

उर्वशी और राजा पुरूरवा एक दूसरे के साथ अच्‍छे से दिन गुजार रहे थे मगर दोनों के बीच प्रेम देख कर देवताओं को जलन होने लगी। देव लोक भी उर्वशी के जाने के बाद सूना हो गया था। देवताओं ने उर्वशी को देवलोक बुलाने की साजिश रची और देव लोक से कुछ बहरूपियों को भेज कर उवर्शी की बकरियां चोरी करवा दीं। जब बकरियां चोरी हुई तब उर्वशी और पुरूरवा संभोग की अवस्‍था में थे। उर्वशी ने राजा को बकरियों को बचाने के लिए कहा तो राजा उसी अवस्‍था में बाहर निकल गए उसी वक्‍त देवताओं ने बिजली चमकाई और दोनों ने एक दूसरे को नग्‍न अवस्‍था में दे लिया। इसके बाद उर्वशी को देवलोक वापिस लौटना पड़ा। जिस वक्‍त उर्वशी देव लोक लौट रही थी उस वक्‍त वह राजा के बच्‍चे की मां बनने वाली थी। एक वर्ष बाद उर्वशी ने बच्‍चे को राजा को सौंप दिया था और खुद देवलोक में रहने लगी थी।

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