दुनिया भर में ‘अप्रैल फूल डे’ मनाया जाता है। वैसे इंडिया में 1 अप्रैल के दिन से न्यू फाइनैंशियल ईयर शुरू होता है। वहीं गर्मी के मौसम में भी तेजी आ जाती है। मगर, इन सब के बावजूद भारत में लोग इस दिन किसी को मूर्ख बनाने के मौके को खाली नहीं जाने देते। इस दिन की खासियत है कि चाहे जितना भी सीरियल जोक कर लिया जाए या कितना भी भयानक प्रैंक हो सामने वाले को केवल इतना कह दो कि ‘अप्रैल फूल’ मनाया है। बस, फिर क्या उसका गुस्सा उड़न छू हो जाता है। इस दिन कई लोग तो गिफ्ट के खाली डिब्बे तक देकर हंसी मजाक कर लेते हैं।
वहीं एक दूसरे को डराना या फिर बेवकूफ मनाने की प्रथा इस दिन बेहद खुशी-खुशी निभाई जाती है। मगर, अच्छी बात यह है कि इतना कुछ होने के बावजूद कोई इस दिन किए हंसी मजाक का बुरा नहीं मानता। मगर, ऐसा क्या है, जो 1 अप्रैल के दिन ‘अप्रैल फूल डे’ न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में मनाया जाता है। आइए हम आपको इन दिन के बारे में बताते हैं।
कब हुई शुरुआत
आपको बता दें कि ‘अप्रैल फुल डे’ मनाए जाने की प्रथा सदियों पुरानी और इसे दुनिया भर के देशों में मनाया जाता है। मगर, पहली बार अप्रैल फूल डे कब मनाया गया इसके बारे में कोई खास जानकारी अब तक नहीं मिल पाई है। कुछ लोगों का मानना है कि फ्रेंच कैलेंडर में होने वाला बदलाव अप्रैल फूल डे मनाने का सही कारण हो सकता है।
लेकिन, इस बात के कोई ठोस सबूत नहीं मिलते हैं। वहीं कुछ लोग यही भी मानते हैं कि इंग्लैंड के राजा रिचर्ड द्वितीय की रानी एनी से सगाई के कारण अप्रैल फूल डे मनाया जाता है। मगर, सवाल यह उठता है कि किसी के सगाई के दिन को ‘मूर्ख दिवस’ के रूप में क्यों मनाया जाएगा। कुछ लोग इसे हिलारिया त्यौहार से भी जोड़ कर देखते हैं।
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किंग रिचर्ड द्वितीय और एनी की सगाई की कहानी
अंग्रेजी के लेखक ज्यॉफ्री सॉसर्स ने पहली बार ‘अप्रैल फुल डे’ का जिक्र साल 1392 में अपनी किताब ‘केंटरबरी टेल्स’ में किया था। इस किताब में लिखा था कि इंग्लैंड के राजा रिचर्ड द्वितीय और बोहेमिया की रानी एनी की सगाई की तारीख 32 मार्च, 1381 को होने की घोषणा की गई थी जिसे वहां के लोग सही मान बैठे। मगर सगाई की तारीख कुछ और ही थी। वहां के लोग इस तरह मूर्ख बन गए, तभी से एक अप्रैल को मूर्ख दिवस मनाया जाता है।
फ्रेंच कैलेंडर में बदलाव की कहानी
‘अप्रैल फुल डे’ को सेलिब्रेट करने की कड़ी में एक और कहानी प्रचलित है। दूसरी कहानी के अनुसार सन् 1582 में पोप ग्रेगोरी XIII ने 1 जनवरी से नए कैलेंडर की शुरुआत की थी। इसके साथ मार्च के आखिर में मनाए जाने वाले न्यू ईयर के सेलिब्रेशन की तारीख में बदलाव हो गया। कैलेंडर की यह तारीख पहले फ्रांस में अपनाई गई।
हालांकि, यूरोप में रह रहे बहुत से लोगों ने जूलियन कैलेंडर को ही अपनाया था। इसके एवज में जिन्होंने नए कैलेंडर को अपनाया उन्होंने उन लोगों को फूल कहना शुरू कर दिया जो पुराने कैलेंडर के मुताबिक ही चल रहे थे। इस तरह हर साल की 1 अप्रैल को तारीख को ‘अप्रैल फुल डे’ मनाया जाने लगा।
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हिलारिया फेस्टिवल की कहानी
‘अप्रैल फुल डे’ से जुड़ी एक और कहानी है। यह कहानी है हिलारिया की। यह एक त्यौहार है, जो प्राचीन काल में रोम में मनाया जाता था। इस त्यौहार में देवता अत्तिस की पूजा होती थी। हिलारिया त्यौहार में बहुत बड़े उत्सव का भी आयोजन किया जाता था। इस उत्सव के दौरान लोग अजीब-अजीब कपड़े पहनते थे। साथ ही फनी-फनी मास्क लगाकर तरह-तरह के एक दूसरे से मजाक करते थे। उत्सव में होने वाली इस एक्टिविटीज के कारण ही इतिहासकारों ने इसे अप्रैल फूल डे से जोड़ दिया।
अलग-अलग देशों में ऐसे मनाया जाता है ‘अप्रैल फुल डे’
वैसे ‘अप्रैल फुल डे’ को अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। भारत में जहां इस दिन लोग एक दूसरे के साथ पूरे दिन प्रैंक और हंसी मजाक करते हैं वहीं आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, साउथ अफ्रीका और ब्रिटेन में ये दोपहर के समय तक ही मनाया जाता है। जिसके पीछे वजह है कि यहां सबुह और शाम का अलग न्यूजपेपर होता है और केवल सुबह के अंक के मुख्य पेज पर अप्रैल फूल डे से जुड़े विचार रखते हैं। जबकि कुछ देशों- जापान, रूस, आयरलैंड, इटली और ब्राजील में पूरे दिन अप्रैल फूल डे मनाया जाता है।कितना जानती हैं आप मोबाइल फोन के बारे में? दीजिए इन 10 सवालों के जवाब और जानिए...
वैसे आपको बता दें कि दुनिया में कई ऐसे देश भी हैं जहां अप्रैल फूल डे तो मनाया ही जाता है। साथ ही एक दूसरा दिन भी मूर्ख दिवस के रूप में होता है। डेनमार्क में 1 मई माज-काट के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भी बिलकुल ‘अप्रैल फुल डे’ की तरह ही होता है। पोलैंड में अप्रैल फूल डे प्राइमा एप्रिलिस के नाम से जाना जाता है। पोलैंड में इस दिन मीडिया और सरकारी संस्थान हाक्स तैयार करते हैं।
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