हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद मास या भादों महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को महालक्ष्मी व्रत का आयोजन किया जाता है। इस बार यह व्रत 25 अगस्त यानी कि आज दोपहर 12 बजकर 21 मिनट पर प्रारम्भ हो गया है । मान्यतानुसार यह व्रत अष्टमी तिथि से शुरू होकर सोलह दिनों तक चलता है। अतः आज से प्रारम्भ हो कर यह सोलह दिनों तक चलेगा और आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को इसका समापन किया जाएगा।
जाने माने वास्तु विशेषज्ञ और ज्योतिषी आचार्य मनोज श्रीवास्तव जी का मानना है कि महालक्ष्मी व्रत का प्रारम्भ संकल्प से करना चाहिए। इसके लिए कोई मंत्रोच्चारण की ज़रूरत नहीं है लेकिन आप मन ही मन हिन्दी, अंग्रेजी या अपनी मातृभाषा में संकल्प ले सकते हैं। पानी को अपनी अंजुली में लेकर पहले अपना नाम, पिता या पति का नाम, गोत्र कहकर संकल्प लें कि आप इस व्रत को किस प्रकार से करेंगे और इस व्रत के करने से आप जिस मनोकामना की पूर्ति करना चाहते हैं उसके बारे में स्मरण करें।
क्या है इसका महत्त्व
जिस दिन महालक्ष्मी व्रत आरम्भ होता है, वह दिन अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस दिन दूर्वा अष्टमी व्रत भी होता है। दूर्वा अष्टमी पर दूर्वा घास की पूजा की जाती है। इस दिन को ज्येष्ठ देवी पूजा के रूप में भी मनाया जाता है, जिसके अन्तर्गत निरन्तर त्रिदिवसीय देवी पूजन किया जाता है। महालक्ष्मी व्रत धन, ऐश्वर्य, समृद्धि और संपदा की प्रात्ति के लिए किया जाता है।
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इस दिन लोग धन-संपदा की देवी माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। महालक्ष्मी का व्रत करने से व्यक्ति को सुख, संपन्नता, ऐश्वर्य औरसमृद्धि की प्राप्ति होती है। मान्यता यह भी है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसलिए इस व्रत के पूजन का अपना अलग ही महत्त्व है।
कैसे करते हैं पूजन
आज के दिन स्नान आदि दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर माता लक्ष्मी की मिट्टी की मूर्ति पूजा स्थान पर स्थापित की जाती है। मां लक्ष्मी को लाल, गुलाबी या फिर पीले रंग का रेशमी वस्त्रों से सुसज्जित किया जाता है। फिर उनको चन्दन, लाल सूत, सुपारी, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, नारियल, फल मिठाई आदि अर्पित किया जाता है।
पूजा में महालक्ष्मी को सफेद कमल या कोई भी कमल का पुष्प, दूर्वा और कमलगट्टा भी चढ़ाते हैं। इसके बाद माता लक्ष्मी को किशमिश या सफेद बर्फी का भोग लगाया जाता है। इसके बाद सपरिवार महालक्ष्मी की आरती (भगवान की आरती करने का सही तरीका) की जाती है। पूजा के दौरान आपको महालक्ष्मी मंत्र या बीज मंत्र का उच्चारण करना श्रेयस्कर होता है।
व्रत के उद्यापन की विधि
व्रत के उद्यापन हेतु व्रत के आखिरी दिन यानी सोलहवें दिन की पूजा के बाद माता की मूर्ति को विसर्जित किया जाता है। उद्यापन वाले दिन यानी कि सोलहवें दिन महालक्ष्मी व्रत का समापन होता है। मान्यतानुसार उस दिन पूजा में माता लक्ष्मी की प्रिय वस्तुएं रखी जाती हैं।
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उद्यापन के समय 16 वस्तुओं का दान शुभ माना जाता है। माता को श्रृंगार सामग्री सहित सोलह वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं। जिसमें चूड़ी, बिंदी, सिन्दूर, बिछिया, मिठाई, रुमाल, मेवा, लौंग, इलायची मिठाई आदि शामिल होता है। पूजा के बाद माता महालक्ष्मी की आरती की जाती है। इस प्रकार यह व्रत संपन्न हो जाता है।
आप भी महालक्ष्मी की कृपा दृष्टि पाना चाहती हैं तो इस व्रत का विधि विधान से आरम्भ करके इसका पालन करें। माता की कृपा आपके घर में अवश्य बरसेगी।
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