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Real story behind gadar movie

असल प्रेम कहानी पर आधारित थी Gadar फिल्म, जानिए बूटा सिंह के बारे में

जब पहली बार लोगों ने थिएटर पर 'गदर-एक प्रेम कथा' देखी थी, तब तारा सिंह और सकीना की लव स्टोरी लोगों को बहुत पसंद आई थी। पर जिस असल इंसान पर यह लव स्टोरी बेस्ड है उसके बारे में लोगों को ज्यादा नहीं पता।&nbsp; <div>&nbsp;</div>
Editorial
Updated:- 2023-08-16, 17:44 IST

'गदर-2' की रिलीज के बाद एक बात तो पक्की हो गई कि तारा सिंह का जादू 22 साल बाद भी उतना ही बरकरार है जितना पहले था। 'गदर-2' अब 200 करोड़ क्लब में शामिल हो गई है। बॉक्स ऑफिस पर इस साल की दूसरी सबसे बड़ी फिल्म बनकर 'गदर-2' अब एक बार फिर से 'गदर-एक प्रेम कथा' वाला इतिहास दोहरा रही है। सनी देओल का चार्म अभी भी कम नहीं हुआ है। जब पहली 'गदर' आई थी तब उसकी कहानी की बहुत तारीफ की गई थी। 

पर 'गदर' की कहानी असल जिंदगी से जुड़ी एक कहानी पर आधारित थी। शायद आपको पता ना हो, लेकिन तारा सिंह और सकीना का किरदार बूटा सिंह और जैनब की उस प्रेम कहानी पर आधारित था जिसका नतीजा बहुत ही दुखद रहा। फिल्म में क्रिएटिव लिबर्टी लेकर तारा सिंह और सकीना को मिलवा दिया गया था, लेकिन असल जिंदगी में ऐसा नहीं हुआ था। 

बूटा सिंह एक फौजी थे जिनकी प्रेम कहानी लोककथाओं का हिस्सा भी है और अमर भी।

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कौन थे शहीद बूटा सिंह?

बूटा सिंह को इश्क में शहादत मिली थी। वो ब्रिटिश आर्मी के सदस्य थे जिन्होंने बर्मा में भी लड़ाई लड़ी थी। लॉर्ड माउंटबेटन के लिए वर्ल्ड वॉर 2 में भी हिस्सा लिया था। बंटवारे के दौरान वो वापस अपने गांव आ गए थे।  

gadar and boota singh

सकीना की तरह जैनब भी थी भारत-पाक के बंटवारे की मारी 

अगर आपने पहली फिल्म देखी है, तो आपको पता होगा कि सकीना को उसके माता-पिता के साथ पाकिस्तान जाना था, लेकिन सकीना ट्रेन में नहीं चढ़ पाती है और फिर उसे तारा सिंह मिलता है। जैनब की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी। उसके घर वाले पाकिस्तान चले गए थे, लेकिन किसी कारण से वो वहीं रह गई थी। बूटा सिंह और जैनब रेलवे स्टेशन पर नहीं, बल्कि खेत में मिले थे। बूटा सिंह के पास एक जमीन थी जिस पर वो खेती किया करता था। ये पारिवारिक जमीन उसके घर के पास ही थी।  

जब बूटा सिंह खेत में थे तब जैनब उनके पास पैसे मांगने आई थी क्योंकि उसे कुछ लोग परेशान कर रहे थे। बूटा सिंह ने अपनी जमा पूंजी लगाकर जैनब के लिए पैसे जुटाए थे।  

उस वक्त एक अंजान लड़की के लिए इतना करना बूटा सिंह के लिए फर्ज बन गया था। किसी तरह से बूटा सिंह ने जैनब को मुसीबत से निकाल लिया था।  

जैनब को अपने घर में शरण दी थी बूटा सिंह ने 

जैनब के पास जाने को ठिकाना नहीं था, तो बूटा सिंह ने उसे अपने घर ही रख लिया। हालांकि, जैनब को घर पर रखने के लिए उनके गांव वालों ने बहुत ज्यादा आपत्ति जताई थी। गांव वालों ने कहा था कि जैनब को शरणार्थी शिविर में भेज दिया जाए या फिर उसकी शादी करवा दी जाए। बूटा सिंह और जैनब की उम्र में बहुत अंतर था और इसलिए बूटा सिंह ने जैनब की शादी करवा कर उसे पाकिस्तान भेजने का सोचा। किसी व्यक्ति को भी ढूंढ लिया जो जैनब को पाकिस्तान ले जाता।  

जैनब को बूटा सिंह पसंद आने लगा था और जब उसे यह पता चला कि बूटा ने अपनी जमा पूंजी उसके लिए लगा दी तब उसने बूटा से शादी करने की इच्छा जाहिर की। बूटा सिंह ने फिर भी अपनी उम्र का वास्ता दिया, लेकिन जैनब को उससे कोई आपत्ति नहीं थी।  

जैनब और बूटा सिंह की प्रेम कहानी का हुआ था दुखद अंत 

बूटा सिंह और जैनब को शादी के बाद एक बेटी हुई जिसका नाम तनवीर था। कुछ रिपोर्ट्स मानती हैं कि बूटा और जैनब को दो बेटियां थीं। हालांकि, उनकी बेटी तनवीर का वर्णन ही ज्यादा मिलता है। जब भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने बंटवारे के समय बेघर हुई महिलाओं को वापस भेजने का निर्णय लिया तब बूटा सिंह के एक रिश्तेदार ने जैनब का नाम भी पुलिस को दे दिया। दरअसल, बूटा सिंह की जमीन पारिवारिक थी और अगर बूटा के बीवी-बच्चे ना होते, तो यह जमीन उसी रिश्तेदार को मिलती।  

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पुलिस जैनब को बूटा के घर से ही ले गई थी। 

 जिस तरह 'गदर' में तारा सिंह अपने बेटे को लेकर गैरकानूनी तरीके से पाकिस्तान जाता है उसी तरह बूटा सिंह भी अपनी उसी जमीन को बेचकर पाकिस्तान चला गया। जैनब का गांव था नूरपुर जहां जाकर उसने जैनब को मनाने की बहुत कोशिश की। जैनब पहले तो मान गई, लेकिन बाद में घर वालों के दबाव में आ गई। बूटा सिंह पर पाकिस्तान में गैरकानूनी तरीके से घुसने के आरोप पर मुकदमा चला। बूटा सिंह ने अपने उस मुकदमे के नतीजे में अगर जैनब आकर बूटा सिंह को पहचान लेती, तो मुकदमा खारिज हो जाता, लेकिन जैनब ने ऐसा नहीं किया।  

gadar movie tara singh

जैनब घर वालों के दबाव में आकर बूटा सिंह को छोड़ गई। बूटा सिंह ये बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने जैनब की बेवफाई का दर्द सहा और ट्रेन के आगे कूदकर अपनी जान ले ली। उन्होंने अपनी बेटी के साथ मरने का फैसला किया था, लेकिन किसी तरह उनकी बेटी बच गई। बूटा सिंह की मौत 1957 में हुई थी और उन्हें मरने के बाद शहीद-ए-मोहब्बत कहा गया।  

बूटा सिंह की इच्छा थी कि उन्हें जैनब के गांव नूरपुर में दफनाया जाए, लेकिन गांव वालों ने ऐसा करने से मना कर दिया। इसके बाद उन्हें मियानी साहिब में दफनाया गया और आज भी उनकी कब्र आशिकों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है।  

अगर बूटा सिंह की कहानी पर बनी फिल्मों की बात करें, तो गुरदास मान और दिव्या दत्ता की 'शहीद-ए-मोहब्बत-बूटा सिंह' सबसे ज्यादा सही मानी जाएगी। यह फिल्म अपने आप में क्लासिक है और बूटा सिंह की असली ट्रैजडे को दिखाती है।  

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