भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का प्रतीक महाकुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी 2025 से प्रयागराज में हो चुकी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 13 जनवरी से लेकर 16 जनवरी तक देश-विदेश से आए करीब 6.35 करोड़ श्रद्धालु संगम में स्नान कर चुके हैं। वहीं, हिंदी फिल्मों और कुंभ मेले का पुराना नाता रहा है। कुंभ में बिछड़ने वाले भाई–बहन, भाई-भाई और परिवार की कहानियों को बॉलीवुड फिल्मों में बहुत बार दिखाया गया है। आज हम इस आर्टिकल में उन फिल्मों के बारे में बात करने वाले हैं, जिनमें कुंभ मेले के बारे में बताया गया है।
तकदीर (1943)
साल 1943 में बॉलीवुड डायरेक्टर महबूब खान ने फिल्म तकदीर का डायरेक्शन किया था, जो एक क्लासिक हिंदी फिल्म है। इस फिल्म की कहानी को कुंभ मेले के इर्द-गिर्द पिरोया गया है, जिसमें बद्रीप्रसाद के बेटे पप्पू और जज जमुना प्रसाद की बेटी श्यामा कुंभ के मेले में खो जाते हैं। फिल्म की कहानी इन दोनों किरदारों के चारों तरफ ही घूमती है। पहले दोनों खो जाते हैं, फिर एक-दूसरे को ढूंढते हैं और फिल्म के आखिर में दोनों एक-दूसरे से मिल जाते हैं।
कुंभ की कसम (1991)
तुकाराम काटे द्वारा निर्देशित फिल्म कुंभ की कसम की कहानी को कुंभ मेले की अराजकता और भावनात्मकता से जोड़ा गया है। फिल्म की कहानी, कुंभ मेले के दौरान अलग हुए भाई-बहनों की है, जिसमें एक्शन, इमोशन और मजेदार ट्विस्ट भी आते हैं। अलग हुए भाई-बहन अपनी लाइफ में आगे बढ़ जाते हैं और फिल्म के आखिरी में फिर से मिल जाते हैं। हालांकि, यह फिल्म हिट नहीं थी, लेकिन इसमें कुंभ मेले में भाग्य और दैवीय हस्तक्षेप को दिखाने की कोशिश की गई है।
अमर अकबर एंथनी (1977)
मनमोहन देसाई द्वारा डायरेक्टेड क्लासिक बॉलीवुड फिल्म 1977 में रिलीज हुई थी। यह फिल्म तीन भाइयों अमर, अकबर और एंथनी के इर्द-गिर्द घूमती है। तीनों भाई बचपन में अलग हो जाते हैं, क्योंकि उनकी मां उन्हें छोड़ देती है। तीनों भाई एक भव्य धार्मिक मेले के दौरान बिछड़ते हैं, जो कुंभ मेले की याद दिलाता है। बॉलीवुड फिल्मों में अक्सर भाई-बहन या भाई-भाई बिछड़ जाते हैं और फिल्म के आखिर में दोनों का मिलन हो जाता है।
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अधिकार (1954)
एस.एम.यूसुफ द्वारा निर्देशित फिल्म अधिकार एक ऐसी फिल्म है, जो कुंभ मेले को फिल्म की कहानी का अहम हिस्सा बनाती है। फिल्म की कहानी रघुनाथ के किरदार के इर्द-गिर्द घूमती है, जो परिवार, कर्तव्य और न्याय के बीच संघर्ष करता है, जिसमें कुंभ मेले के बैकड्रॉप में उसकी आंतरिक लड़ाई चलती रहती है।
मेला (1971)
ए.एच.रिजवी द्वारा डायेरक्टेड फिल्म मेला 1971 को रिलीज हुई थी। इस फिल्म में कुंभ मेले को कहानी के मुख्य हिस्से के रूप में दिखाया गया है। फिल्म की कहानी दो दोस्तों रघुनाथ और शंकर के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है, जो कुंभ मेले की भीड़ में खो जाते हैं। मेले के दौरान कई और किरदारों से मिलते हैं, जो उन्हें अपनी बातों से बहलाते-फुसलाते हैं। लेकिन फिल्म के आखिर में दोनों वापस से मिल जाते हैं। यह फिल्म एक सोशल ड्रामा है, जो कुंभ मेले के बैकड्रॉप में आस्था, भाग्यय मानवीय संबंध और आध्यात्मिकता के विषयों की खोज करती है।
कुंभ के मेले (1950)
1950 की यह बॉलीवुड फिल्म, जो सीधे कुंभ मेले की कहानी पर आधारित है। यह फिल्म उन लोगों की कहानी को बताती है, जो मोक्ष, आध्यात्म, शांति और व्यक्तिगत समस्या के समाधान की तलाश में मेले में आते हैं। फिल्म के किरदार कुंभ मेले में आकर मुक्ति और शुद्धि की तलाश करते हैं। मेले में आकर उनका जीवन ही बदल जाता है और उन्हें शांति पाने और खुद पर दोबारा भरोसा करने का मौका मिलता है।
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धर्मात्मा (1975)
फिरोज खान द्वारा निर्देशित फिल्म धर्मात्मा में कुंभ मेले का एक सीन दिखाई देता है। फिल्म में रेखा और हेमा मालिनी हैं, जिनका परिवार कुंभ मेले में बिछड़ जाता है। फिल्म में एक डायलॉग है कि यह मेला तो बस नाम है, यहां हर कोई अपनी किस्मत का सौदा करने आया है। यह ऑडियंस को सोचने पर मजबूर कर देता है कि कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि किस्मत का सौदा करने यहां लोग आते हैं।
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Image Credit - Herzindagi, IMDb
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