अगर आपसे पूछा जाए कि आपके हिसाब से फेमिनिज्म पर आधारित कुछ बेहतर फिल्में कौन सी हैं, तो आपका जवाब क्या होगा? कुछ पुरानी फिल्मों के साथ कुछ नई, लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि फेमिनिज्म के नाम पर महिमा मंडन बहुत ज्यादा हो जाता है। इस फिल्म में छोटे-छोटे सीन्स इतनी बखूबी दिखाए गए हैं जो बताते हैं कि किस तरह से दूर-दराज के कस्बे में आज भी महिलाओं के साथ ऐसी समस्याएं होती हैं। उदाहरण के तौर पर एक सीन में जया (बदली हुई दुल्हन) से फूल (ओरिजनल दुल्हन) की जेठानी कहती है "बबलू के पापा यहां नहीं है, बात किस्से करेंगे हम"? यहां बात हो रही थी उस महिला के पति की जो घर से दूर रहता है।
महिलाएं अधिकतर उनके घरेलू कामों में ही बिजी रहती हैं और उनसे यही उम्मीद भी की जाती है। पर एक साधारण सी कहानी के जरिए किरण राव ने उन्हीं महिलाओं की जिंदगी को दिखाने की कोशिश की है।
इस फिल्म के डायलॉग्स सोशल मीडिया पर बहुत फेमस हो रहे हैं। हम आपको उन्हीं कुछ डायलॉग्स के बारे में बताने जा रहे हैं।
1. पति का नाम लेना आज भी महिलाओं के लिए बड़ी बात माना जाता है
फिल्म के एक सीन में दीपक (दूल्हा) की मां कहती हैं कि औरतें पति का नाम नहीं लेतीं और उसी के एक सेकंड बाद जया सबके सामने पंकज बोल देती है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि पति का नाम लेना भी महिलाओं के लिए कितनी बड़ी बात है और बदलाव की शुरुआत वहीं से होती है। महिलाओं को अपने पति का नाम नहीं लेने दिया जाता है जो यह दर्शाता है कि पति हमेशा उनसे ऊंची उपाधि पर ही रहेगा।
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2. महिलाओं को नहीं सिखाई जाती बेसिक बातें
फिल्म में यह दिखाया गया है कि फूल को यह भी नहीं पता होता है कि अपने घर कैसे जाना है। उसका ससुराल जिस गांव में है उसका नाम क्या है। ऐसे में फूल मंजू माई (टी-स्टॉल चलाने वाली दादी जो फूल को शरण देती हैं) से कहती है कि वह बुड़बक नहीं है, उसे घर का सारा काम आता है। इसपर मंजू बस एक सवाल पूछती है कि क्या उसे घर जाना आता है।
इस सवाल के बाद का सन्नाटा साफ कहता है कि फूल की शिक्षा में ही कमी रह गई। मंजू माई तब कहती हैं कि बुड़बक होना शर्म की बात नहीं, उसपर गर्व करना शर्म की बात है।
हममें से कई लोग अपनी कमी को मानते नहीं और यह बात उन सभी पर लागू होती है।
3. महिलाओं की पसंद का कोई मोल नहीं
फिल्म के एक सीन में फूल की सास जया (बदली हुई दुल्हन) से बात कर रही होती है। खाने की तारीफ करने पर सास कहती है कि खाने की भी कोई तारीफ करता है क्या? इसी बात पर यह भी सामने आता है कि उस महिला ने अपनी पसंद का खाना खाया ही नहीं। क्योंकि महिलाओं की पसंद का खाना तो बनता ही नहीं घर में और महिलाएं साल दर साल यह भी भूल जाती हैं कि उन्हें पसंद क्या है।
4. घूंघट की आड़ में खो जाती है महिलाओं की पहचान
दीपक को पुलिस स्टेशन में फूल को ढूंढने में दिक्कत होती है क्योंकि उसके पास जो फोटो है उसमें फूल ने घूंघट ओढ़ रखा है। घूंघट के कारण ही फूल और जया की अदला बदली हो जाती है। फिल्म में घूंघट और पर्दा सिस्टम को बहुत बारीकी से दिखाया गया है और इसका ही एक डायलॉग है, "मुंह ढक देना, मतलब पहचान ढक देना।"
5. महिलाओं का जानकारी देना मजाक में लिया जाता है
इस डायलॉग में फेमिनिज्म ना सही, लेकिन इस सीन में जरूर था। फसल में कीड़े लगने के कारण कीटनाशक डालने की बात हो रही थी तभी जया अपनी समझ से कीड़ों को मारने का एक तरीका सुझाती है। इस सीन में सभी भौंचक्के हो जाते हैं कि आखिर किसी महिला को यह सब कैसे पता। यह सीन अपने आप में खास है।
6. दुखी रहने से अच्छा है अकेले रहना
मंजू माई के पति और बेटे उन्हें टॉर्चर करते थे, तो मंजू माई आत्मनिर्भर बनीं। फिल्म के कई सीन्स में उन्होंने दिखाया है कि एक आत्मनिर्भर महिला को किसी और की जरूरत नहीं होती है। ऐसे ही एक सीन में मंजू माई फूल को समझा रही होती हैं कि अकेले रहना भी एक कला है जो खुशी का कारण बन सकता है।
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7. पति का नाम लेने से ही शुरू होती है बराबरी
जो सबक जया फिल्म की शुरुआत में देती है वही सबक मंजू माई फूल को सिखाती हैं। फूल स्टेशन मास्टर के सामने भी अपने पति का नाम नहीं लेती और रिपोर्ट लिखने के लिए अपनी मेहंदी दिखाती है क्योंकि भले घर की लड़कियां पति का नाम नहीं लेतीं, लेकिन मंजू माई फूल को सबक सिखाती हैं कि पति का हाथ तब बटा पाओगी जब पति का नाम लेने से शुरुआत करोगी।
फिल्म के अंत में फूल अपने पति का नाम ले ही लेती है। तभी दोनों मिल पाते हैं।
8. प्यार के नाम पर औरत पर हाथ उठाना सही नहीं
इस डायलॉग को इंटरनेट पर बहुत वायरल किया जा रहा है। लोग कह रहे हैं कि यह संदीप रेड्डी वांगा की फिल्म पर कटाक्ष है जिसमें लव लैंग्वेज टॉक्सिक होती है और किरदारों का एक दूसरे पर हाथ उठाना भी कॉमन होता है।
मंजू माई इसी सीन में फूल से कहती हैं कि अगर प्यार में मारना हक होता है, तो उन्होंने भी अपने पति पर हक जमा लिया जिससे वह अलग हो गए। ऐसे ही मंजू एक टॉक्सिक रिलेशनशिप से बाहर आ पाईं।
9. 'भले घर की लड़की' के नाम पर होता है फ्रॉड
इस डायलॉग के बारे में कुछ भी कहना इसकी तौहीन ही होगा। एक लाइन जो ना जाने कितनी महिलाओं के लिए सच है।
10. महिलाओं को नहीं होती पुरुषों की जरूरत
आत्मनिर्भर महिला पुरुषों की दुनिया में नहीं जीती। पर महिलाओं को सशक्त बनाने से कहीं ना कहीं हमारा समाज डरता है। जब फूल मंजू माई से सवाल करती है कि हम लड़कियों को अपने पैरों पर खड़े होना क्यों नहीं सिखाते तब मंजू माई यही जवाब देती हैं।
कुल मिलाकर फिल्म में छोटे-छोटे किरदार भी बहुत असरदार बातें कह गए हैं।
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