घर से बाहर निकलना महिलाओं के लिए आसान नहीं होता। बाहरी माहौल में किसी भी असामान्य स्थिति का सामना करने करते हुए सेफ रहना एक बड़ी चुनौती होती है, साथ ही दूर-दराज के इलाकों में टॉयलेट की अवेलेबिलिटी का भी उन्हें ध्यान रखना पड़ता है। खासतौर पर ऐसी जगहों, जहां टॉयलेट्स की कमी हो या फिर जहां पब्लिक टॉयलेट्स की हालत खस्ता हो, में और भी ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है। गांव-देहात और छोटे कस्बों में साफ-सुथरे यूज करने लायक पब्लिक टॉयलेट खोजना और भी मुश्किल काम है।
टॉयलेट्स का ना होना, गंदे टॉयलेट्स की समस्या से महिलाओं को काफी परेशानी होती है। खासतौर पर अगर पीरियड्स हो रहे हों, तो महिलां के लिए मुश्किल और भी ज्यादा बढ़ जाती है। कई महिलाएं गंदे टॉयलेट्स को अवॉइड करने के लिए घर से बाहर निकलना ही पसंद नहीं करतीं। इस परेशानी को बखूबी समझा एंट्रेप्रिन्योर उल्का सदलकर ने और उन्होंने इस हालात को बदलने की ठानी। उल्का ने राजीव खेर के साथ मिलकर महिलाओं के लिए टॉयलेट्स की उपलब्धता के लिए एक अनोखा आइडिया निकाला।
पुरानी बसों को बना दिया मॉडर्न टॉयलेट
अक्सर पुरानी बसों से कबाड़ इकट्ठा होता रहता है और इन्हें स्क्रैप में बेचा जाता है। इन्हीं बसों को इंटेलिजेंटली यूज करते हुए उल्का सदलकर और राजीव खेर ने मिलकर इन्हें पब्लिक टॉयलेट की शक्ल दे दी। उल्का सदलकर ने HerZindagi से बताया, 'हमने पुरानी बसों को रेस्टरूम बनाने और बेसहारा लोगों के लिए आशियाना बनाने के बारे में पढ़ा था और हम इसी आइडिया को पुणे की महिलाओं के लिए रेप्लिकेट करना चाहते थे। पुणे की जनसंख्या ज्यादा है। यहां ज्यादा टॉयलेट बनाने के लिए भी स्पेस नहीं है। बसों के लिए बहुत स्पेस की जरूरत नहीं है और इन्हें आसानी से नया लुक दिया जा सकता है। साथ ही साफ-सुथरे टॉयलेट स्वच्छ भारत अभियान का भी अहम हिस्सा हैं।
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टॉयलेट में है कई सुविधाएं
हर बस में वॉशबेसिन, वेस्टर्न और इंडियन टॉयलेट हैं, साथ ही छोटे बच्चों के लिए डायपर बदलने के लिए भी जगह दी गई है। पीरियड्स के दौरान महिलाओं को पैड्स उपलब्ध कराए जा सकें, इसके लिए यहां पैड्स भी सेल किए जाते हैं। अच्छी बात ये है कि ये टॉयलेट्स एक्स्टा बिजली भी कंज्यूम नहीं करते। ऐसा इसलिए क्योंकि ये सोलर पावर से चलते हैं। उल्का सदलकर के ये टॉयलेट्स जब से शुरू हुए हैं, तब से इनमें किसी तरह की समस्या नहीं आई और इनके लिए इन्हें काफी तारीफें मिली हैं। अब तक उल्का ऐसे 11 'हेल्थ सेंटर' (उल्का की तरफ से दिया हुआ नाम) शुरू किए गए हैं, जो महिलाओं के बाहर निकलने के दौरान उनके टॉयलेट जाने, पीरियड्स के लिए पैड्स खरीदने और बच्चे की नैपी चेंज करने की सहूलियत देत हैं। उल्का कहते हैं, 'पुणे में काफी भीड़-भाड़ है और यहां महिलाओं के लिए रेस्टरूम बनाने के लिए जगह भी कम है। स्पेस ना होने की वजह से गरीब तबके से आने वाली महिलाओं को सबसे ज्यादा समस्या होती है और हम ऐसी ही महिलाओं की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
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हर दिन 150 महिलाएं करती हैं विजिट
उल्का सदलकर की ये नायाब खोज कितनी सफल है, ये इसी बात से समझा जा सकता है कि यहां आने के लिए महिलाओं का तांता लगा रहता है। आमतौर पर यहां रोजाना 150 महिलाएं विजिट करती हैं, वहीं संख्या बढ़ने पर 300 तक भी पहुंच जाती है। यहां सफाई के बारे में जागरूक करने के लिए वीडियो भी चलते रहते हैं, जो महिलाओं को टॉयलेट जाने के बाद हाथ धोने के लिए याद दिलाते हैं। आमतौर पर ऐसे टॉयलेट देखने को नहीं मिलते, इसीलिए जो महिलाएं यहां पहली बार आती हैं, वाह-वाह कह उठती हैं। इन टॉयलेट्स की मेंटेनेंस का भी खास खयाल रखा जाता है, इसीलिए यहां नियमित रूप से आने वाली महिलाओं की तादाद काफी ज्यादा है। इन टॉयलेट को इस्तेमाल करने के लिए सिर्फ 5 रुपये की फीस लगती है और यह भी सुविधा का इस्तेमाल करने के लिहाज से अच्छा है।
भारतीय महिलाओं के लिए बड़ी इंस्पिरेशन हैं उल्का सदलकर, जो महिलाओं को होने वाली समस्याओं के बारे में गहराई से सोचती हैं और अपनी अनूठी पहल से उनकी जिंदगी बनाने का प्रयास कर रही हैं। उल्का सदलकर का यह प्रयास बदलते भारत की नींव है और महिला सशक्तीकरण की दिशा में सकारात्मक कदम है, जिससे आगे चलकर बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
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