दर्द, लाचारी, क्रोध, तेज, निश्छल हंसी और भोलापन, ये सारे भाव अलग-अलग हैं, लेकिन ये सारे भाव अगर किसी एक चेहरे में सजीव हो उठते हैं तो वो है स्मिता पाटिल। भांति-भांति के किरदारों में पूरी तरह डूब जाना और किरदार निभाते हुए उसे पूरी तरह सजीव कर देने के लिए स्मिता पाटिल मशहूर थीं। अपने समय की सबसे प्रतिभावान एक्ट्रेसेस में शुमार रहीं स्मिता पाटिल ने बॉलीवुड पर लगभग दो दशकों तक राज किया। इस दौरान उन्होंने पैरेलल सिनेमा में अपनी अमिट छाप छोड़ी।
आज से करीब चार दशक पहले बॉलीवुड अपने दो चेहरों के लिए जाना जाता है, एक समानातंर सिनेमा (पैरेलल सिनेमा ) , जिसमें चुनौतियां संघर्ष, छोटी-छोटी खुशियां और समाज की हकीकतें पूरी बेबाकी से दर्शकों के सामने रख दी जाती हैं और दूसरा कमर्शियल सिनेमा, जिसमें प्यार, बदला और हिंसा किसी कहानी में निर्विवाद रूप से जुड़े होते हैं। इस समय में कहानियां पुरुष प्रधान हुआ करती थीं, महिलाएं केंद्र में नहीं थीं, लेकिन स्मिता पाटिल एक ऐसी अदाकारा के तौर पर उभरीं, जिसका जादू सिनेमा से जुड़े हर शख्स से महसूस किया। जिस दौर में महिलाओं की भूमिका महज शो-पीस के तौर पर हुआ करती थी, एक ऐसी पीड़िता के तौर पर हुआ करती थी, जिसका बदला पुरुष किरदार ले थे, या फिर एक ऐसी मां, जो अपने लाडले बेटे के लिए हर त्याग किया करती थी, स्मिता पाटिल ने उस दौर में इसके बिल्कुल उलट किरदार निभाएं
स्मिता पाटिल ने सशक्त महिला किरदार निभाए और उन सभी में इतनी उम्दा परफॉर्मेंस दी कि उससे समाज में उस समय में प्रचलित रूढ़ियों को पूरी तरह से महसूस किया जा सकता था। समानातंर सिनेमा में निर्विवाद रूप से वह सबसे टैलेंटेड एक्ट्रेसेस में शुमार थीं। उनकी फिल्मों पर चर्चा करते हुए आइए जानते हैं कि महिलाएं उनके क्या सीख ले सकती हैं-
हर मुश्किल का डटकर करें सामना
फिल्म 'मंथन' ने अपने समय की नेशनल अवॉर्ड विनिंग फिल्म रही है। श्याम बेनेगल निर्देशित यह फिल्म श्वेत क्रांति ( अमूल के इतिहास) पर थी। इस फिल्म में स्मिता पाटिल ने एक ऐसी महिला का किरदार निभाया था, जिसके साथ शादी के बाद दुर्व्यवहार होता है। इस फिल्म में संबंध शादी की परंपरागत सीमाओं को लांघ जाते हैं। राजकोट की दलित पॉलिटिक्स पर आधारित इस फिल्म दिहाड़ी मजदूरों के संघर्ष, जाति प्रथा और इस तबके से आने वाली महिलाओं के यौन शोषण को प्रमुखता से दिखाया गया है। बिंदु का किरदार निभाते हुए स्मिता पाटिल ने उसमें जान डाल दी है और अपनी भूमिका के साथ पूरी तरह से न्याय किया है।
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अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं महिलाएं
भूमिका फिल्म का निर्देशन भी श्याम बेनेगल ने किया था। 1977 में आई इस फिल्म में एक ऐसी महिला की बात की गई है, जो प्यार की तलाश में कई रिलेशनशिप्स से गुजरती है, लेकिन आखिर में एक मायाजाल में फंसकर वह कैदी बन जाती है। इस नेशनल अवॉर्ड विनिंग फिल्म में स्मिता पाटिल ने ऊषा का किरदार निभाया है, जो खुद को बंधन में रखे जाने के खिलाफ है। बड़े सपने देखने वाली इस शादीशुदा महिला का किरदार स्मिता पाटिल ने पूरी परिपक्वता के साथ निभाया है।
भूमिका के किरदार की खूबसूरती यह है कि इसे कई स्तरों पर देखा जा सकता है, मसलन महिलाएं अपना जीवनसाथी चुनने के लिए स्वतंत्र हैं। पूरी फिल्म में इमोशनल इंटेलिजेंस और मनुष्य के जीवन के एकाकीपन को प्रमुखता से दिखाया गया है। साथ ही इस फिल्म में यह भी देखने को मिलता है कि महिलाएं किस तरह अपनी सेक्शुअलिटी को अपनी कमजोरी या ताकत के रूप में देख सकती हैं और किस तरह से वे अपनी खुशियां हासिल करने के लिए अपने जीवन में फैसले ले सकती हैं। इस फिल्म के साथ स्मिता हर सिनेप्रेमी के दिल में उतर गई थीं। उस समय समानातंर सिनेमा का हर निर्देशक स्मिता पाटिल के साथ काम करने की इच्छा रखता था। महिलाएं आज के समय में भी अपने फैसलों के लिए सामाजिक परंपराओं की तरफ देखती हैं, फिर चाहें वह जीवनसाथी का चुनाव हो या करियर चुनने की बात, फैमिली प्लानिंग हो या दोबारा जॉब में लौटने की बात, लेकिन भूमिका जैसा किरदार देखकर महिलाएं एक फिक्शन में अपना रोल मॉडल जरूर देख सकती हैं।
हर किरदार में नजर आया परफेक्शन
अपने समय के एड फिल्म मेकर रबिन्द्र धरमराज ने उपभोक्तावाद को करीब से देखा था और इसी के मद्देनजर उन्होंने 1981 में फिल्म चक्र का निर्देशन किया। इस फिल्म में उन्होंने आपराधिक छवि वाले, शराब में धुत्त रहने वाले युवाओं पर बात की, जो हर जगह होने के बावजूद अनजान से नजर आते हैं। इस फिल्म में स्मिता ने अम्मा का किरदार निभाते हुए शहरी भारत के समाज का चित्रण किया। इस फिल्म में स्मिता ने एक टीनेज लड़के की मां का किरदार निभाया। फिल्म में मां के संघर्ष और पति के लिए इंतजार का फिल्मांकन इतनी खूबसूरती के साथ किया गया है कि हर महिला इसके साहस की प्रशंसा करेगी। सामाजिक रूढ़ियो को तोड़ने से लेकर अपने शरीर पर अपना हक होने की स्वतंत्रता का उपभोग करने के सभी चरणों को दर्शाती इस फिल्म को हर महिला को जरूर देखना चाहिए।
आप जहां भी जाएं, वहां राज करें
फिल्म 'मंडी' की टैगलाइन है-पूरी दुनिया ही एक मंडी है और हर किसी की एक कीमत है। इस फिल्म में फीमेल सेक्शुअलिटी, पुरुष प्रधान समाज और छोटे शहर की राजनीति को दर्शाया गया है। इसमें जीनत के किरदार में स्मिता पाटिल एक प्रतिष्ठित गायिका बनी हैं, एक ऐसी महिला जो उड़ान भरने के लिए बेताब है और देखना चाहती है कि पुरुषों पर उसका कितना दबदबा है। वैश्यालय में वह हर पल बदलते मूड वाले किरदार और अपनी स्वाभाविक आत्मीयता के बीच संतुलन स्थापित करती नजर आती हैं। अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करती जीनत का पूरा सफर 'सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट' (सबसे योग्य ही जीवित रहता है) और दूसरों से अपना फायदा निकालने में बीतता है।
आज भी स्मिता पाटिल को एक ऐसी शख्सीयत के तौर पर याद किया जाता है, जिसने अपने किरदारों से महिलाओं में आत्मविश्वास भरा। उनकी असमय मौत ने सिने जगह की एक बेहतरीन प्रतिभा को हमसे छीन लिया, लेकिन उनकी यादें ताउम्र उनके सजीव किरदारों के साथ हमारे जेहन में ताजा रहेंगी। उनकी आत्मीयता और उनकी सहृदयता हमेशा ही महिलाओं को प्रेरित करती रहेगी।
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