मां के लिए अनुशासन प्रिय, स्पष्टवादी और न्याय प्रिय यह उपमाएं सुनने में तो बहुत अच्छी लगती हैं, लेकिन जब हम ऐसी मांओं को असल जिंदगी में देखते हैं, तो उन्हें ‘हिटलर’, ‘गब्बर सिंह’ या फिर अन्य किसी क्रूर किरदार से जोड़कर देखने लगते हैं। एंटरटेनमेंट जगत में भी स्टीरियोटाइम भूमिका से हटकर जब किसी कलाकार ने सशक्त मां का किरदार निभाया, तो उसकी आलोचना की गई, सोशल मीडिया में उसे ट्रोल किया गया और तो और घरों में ऐसे सीरियल्स को देखने की मनाही भी होने लगी।
टीवी सीरियल ‘साथ निभाना साथिया’ में कुछ ऐसा ही किरदार निभाया था एक्ट्रेस रूपल पटेल ने। आप बेशक उन्हें उनके असल नाम से न पहचान पाएं मगर कोकिला मोदी को किसी भी परिचय की जरूरत नहीं है। इस सीरियल में एक सशक्त महिलाएं का किरदार निभाने वाली रूपल पटेल को पहले तो बहुत सारी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा मगर बाद लोगों ने उन्हें उतना ही प्रेम दिया।
दरअसल, जब तक हम एक सशक्त मां की छवि की कल्पना नहीं करेंगे तब तक हम उसे बेचारी अबला नारी ही समझेंगे। लोगों की इस विचारधारा को तोड़ने के लिए ही कोकिला मोदी को सीरियल अनुशासन प्रिय, स्पष्टवादी और न्याय प्रिय दिखाया गया। इस किरदार को निभाने वाली रूपल पटेल ने असल जिंदगी में भी इन सभी बातों का अनुसरण किया है और इसलिए वह खुद को एक स्टीरियोटाइप मां नहीं मानती हैं।
हरजिंदगी के साथ हुए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में रूपल पटेल ने बताया कि वो असल जिंदगी में एक कैसी मां हैं-
असल जिंदगी में भी ‘कोकिला मोदी’ बनने की कोशिश की
आपने अगर यह सीरियल नहीं भी देखा है तो भी यशराज मोखाटे का वो वायरल वीडियो जरूर देखा होगा, जिसमें कोकिला मोदी अपनी बहू गोपी से पूछ रही थी कि ‘रसोड़े में कौन था…’ वैसे तो इस मीम को देखकर कोई भी हंस पड़ेगा, मगर सास कोकिला के हाव भाव देख कर और गोपी बहू का सहमा हुआ चेहरा देख कर यह भी समझ में आ जाएगा कि सास बहुत तेज है। लेकिन रूपल इस बात को नहीं मानती हैं। वह कहती हैं, “कोकिला बहुत स्पष्टवादी महिला है। बेशक सीरियल में सभी किरदारों को कोकिला के किरदार से डरता हुआ दिखा गया है। मगर कोकिला को बड़ों का सम्मान और छोटो को स्नेह करते हुए भी दिखाया गया है। वह सही को सही और गलत को गलत कहते नहीं डरती है। असल जिंदगी में ऐसा कहा होता है। कई घरों में तो मां पर बच्चों की जिम्मेदारी तो सारी डाल दी जाती है, मगर जब बच्चों के भविष्य के लिए निर्णय लेने की बारी आती है, तो यह हक उससे छीन लिया जाता है। कोकिला मोदी ऐसा नहीं है। उसे सशक्त दिखाया गया है। शुरुआत में पुरुष प्रधान समाज को मेरे इस किरदार से दिक्कत हुई थी। मगर कोकिला मोदी के किरदार ने बहुत सारे लोगों की सोच बदल डाली है। मैं खुद असल जिंदगी में कोकिला की तरह स्पष्टवादी होने का प्रयास करती हूं। ”
बेटे की मां और बेटी की मां में फर्क होता है क्या है?
यह सवाल तो आपके जहन में भी उठता होगा कि बेटे की मां और बेटी के मां होने में क्या अंतर है? यही सवाल हमने रूपल से पूछा जो असल जिंदगी में एक बेटे की मां हैं। वह कहती है, “मां का एक बच्चा हो या दो बच्चे हों या उससे भी ज्यादा। मां का दिल सबके लिए एक ही तरह से धड़कता है। सभी उसका अंश होते हैं। लड़के को पैदा करते वक्त को जो पीड़ा होती है वहीं बेटी को जन्म देते वक्त भी होती है। बेटा और बेटी में संस्कार भी एक समान ही मां डालती है। हां समाज ने जरूर बेटी और बेटा में फर्क कर रखा है, मगर एक मां ही धारणा को बदल सकती हैं। जिस दिन मांओं के अंदर यह समझ आ गई कि बेटी बेटा सब एक बराबर ही होते हैं, उस दिन इस समाज को भी बदलना हेागा। बेटी मां कई बार यह सोच कर दब जाती है कि बेटी की परवरिश पर असर पड़ेगा, वहीं बेटे की मां यह सोच कर थोड़ा दबंग हो सकती है, कि मेरा तो बेटा मुझे किसी से डरने की जरूरत नहीं है। मगर सच तो यह है बेटों की मां की यहां जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाती है कि वह बेटे को ऐसी शिक्षा दें कि वो भी औरतों की इज्जत करना सीखे।”
मां एक रिश्ता है या अहसास?
मां शब्द की कोई परिभाषा नहीं हो सकती है, यह एक अहसास है। मां जैसा प्रेम करने वाला हर शख्स मां जैसा ही लगता है। इस बात से रूपल भी सहमत नजर आईं। वह कहती हैं, “मां और पिता देवतुल्य ही होते हैं। हम समझ नहीं पाते हैं मगर पिता भी मां जैसी ही ममता रखते हैं, बस दिखते नहीं हैं। मां या मां जैसा प्यार करना आसान भी नहीं है। बहुत ज्यादा भावनाओं और संवेदनाओं का समंदर खुद में समाना पड़ता है।”
रूपल पटेल यदि कोकिला मोदी होतीं, तो अपने बेटे के साथ कैसा होता उनका बर्ताव?
रूपल कहती हैं, “ मां का बर्ताव कैसा हो सकता है बच्चे के साथ? बच्चे के लिए तो मां के मन में निस्वार्थ प्रेम की भावना होती है। कोकिला का दिल भी ऐसा था मेरा भी ऐसा है। हां, मैं कोकिला की तरह स्पष्टवादी हूं तो सही को सही और गलत को गलत कहने से पीछे नहीं हटती हूं। बेटा गलत है तो उसे उसकी गलती का अहसास करना ही मुझे उचित लगेगा। कोकिला भी बेटे को उसकी गलती पर छोड़ती नहीं थीं। ”
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