जमाना कितना भी बदल गया हो लेकिन आज भी महिलाओं को चूल्हा चौका और घर दारी तक ही बेहतर माना जाता है। हमारे समाज में, हमारे घर में ही आज भी कई ऐसे लोग हैं जो महिलाओं को चारदीवारी में कैद कर रखने को ही अपना धर्म, अपनी परंपरा मानते हैं। इतिहास गवाह है, जब-जब महिलाओं को उनकी मंजिल पाने से रोका गया है और हर बार महिलाओं ने दुर्गा का रूप धारण कर दहाड़ मारती हुई नारी सशक्तिकरण का वास्तविक परिचय दिया है। हर बार महिलाओं की ऊंची उड़ान की दुनिया साक्षी बनी है।
हर जिंदगी के शक्ति रूपेण संस्थिता' अभियान के तहत हम आपके लिए ऐसी महिलाओं की कहानी लेकर आए हैं जिन्होंने वीपरित परिस्थितियों में भी अपना मुकाम हासिल किया और आज भारत का नाम रोशन कर रही हैं। आज हम बात कर रहे हैं देश की पहली महिला बाउंसर मेहरून्निसा के बारे में। जानते हैं उनके संघर्ष की दिल छू लेने वाली कहानी।
कौन हैं मेहरून्निसा शौकत अली ?
मेहरून्निसा शौकत अली वो नाम है जिन्होंने ये बता दिया है कि नारी तू अबला नहीं है, न ही तू कमजोर है। मेहरुन्निसा देश की पहली महिला बाउंसर हैं। ये अपने आप में एक बड़ी बात है, क्योंकि इस क्षेत्र में अब तक पुरुषों का वर्चस्व कायम रहा है। हमेशा माना जाता रहा है महिलाएं खुद की सुरक्षा नहीं कर सकती हैं। उन्हें किसी पुरुष की जरूरत होती है। हालांकि इन सभी दकियानूसी सोच को मेहरून्निसा ने तोड़ते हुए ये साबित कर दिया है कि महिलाएं खुद की भी सुरक्षा कर सकती हैं और दूसरों को सुरक्षा प्रदान भी कर सकती हैं। मेहरुन्निसा दिल्ली के हौज खास गांव के एक मशहूर कैफे सोशल में बतौर बाउंसर काम कर रही हैं। इतना ही नहीं वो बॉलीवुड समेत कई मशहूर हस्तियों को सिक्योरिटी देती हैं। मेहरुन्निसा हमेशा से ही फाइटर रही हैं,उन्होंने न सिर्फ समाज से बल्कि अपनों से लड़ाई लड़ कर इस मुकाम को हासिल किया है। उनकी संघर्ष की कहानी महिलाओं को मोटिवेट करने वाली है।
मेहरुन्निसा शौकत अली की संघर्ष की कहानी, जानिए उनकी जुबानी
मेहरुन्निसा शौकत अली उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर सहारनपुर में मुस्लिम परिवार में जन्मी हैं, वो एक ऐसे परिवार में पली-बढ़ी हैं जहां बेटियों का घर से निकलना गुनाह माना जाता था। ना तो किसी से नजरें उठाकर बात करने की इजाज़त थी ना ही पढ़ाई लिखाई का कोई नाम था। पिता का मानना था कि लड़कियां पढ़ लिखकर बिगड़ जाती हैं। मेहरून्निसा को छिपकर पढ़ाई करनी पड़ती थी। मेहरून्निसा अपने गुजरे दिनों को याद करते हुए बताती हैं कि जब उनके पढ़ाई के बारे में उनके पिता को मालूम चला तो उन्होंने बिजली बंद करवा दी और किताबें भी जला दी। तब उन्हें एक मात्र साथ मिला तो उनकी अम्मी शमी परवीन का। हालांकि उनकी अम्मी इस मामले में बहुत कुछ नहीं कर पाईं लेकिन पढ़ाई के लिए उनके पिता को जरूर मना लिया।
प्रोफेशन को लेकर समाज और घर वालों ने किया विरोध
मेहरुन्निसा बताती हैं कि अभी उनकी और उनकी बहनों की पढ़ाई चल ही रही थी कि उनके पिता ने बड़ी बहन की शादी कर दी और अब बारी मेहरुन्निसा की थी, उधर मेहरून्निसा के पिता उनके लिए लड़का देख रहे थे तो इधर मेहरुन्निसा ने अपने सपने बुनने शुरू कर दिए थे। वहीं किस्मत ने भी खूब मेहरून्निसा का साथ दिया। अचानक से उन्हें टाइफाइड हो गया और कुछ समय उन्हें बिस्तर पर ही रहना पड़ा। वैसे तो मेहरून्निसा ने पुलिस में भर्ती होने का सपना देखा था लेकिन पिता के विरोध के कारण वो इस फील्ड में कुछ ना कर सकीं, हालांकि खुद को बेहतर करने के लिए उन्होंने एनसीसी कैडेट के तौर पर दाखिला लिया, कराटे सीखा और पहुंच गईं दिल्ली। यहां उन्होंने महिला बाउंसर की ओपनिंग के बारे में सुना और इसके लिए अप्लाई किया। इस बात को लेकर भी घर पर विरोध हुआ लेकिन इस बार भी वो डटी रहीं। उन्होंने अपने पिता को भरोसा दिलाया कि वो कोई भी ऐसा काम नहीं करेंगी जिससे उनका नाम खराब हो।
वर्कप्लेस पर भी होता था भेदभाव
मेहरुन्निसा का संघर्ष एक बार फिर शुरू हुआ, जब उन्हें वर्कप्लेस पर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। वह बताती हैं कि उस वक्त पर महिला बाउंसर को बाउंसर नहीं बल्कि सिक्योरिटी गार्ड कहा जाता था। पुरुष बाउंसर के साथ सम्मान और महिला बाउंसर के साथ भेदभाव का व्यवहार किया जाता था। मेहरुन्निसा को भद्दे कमेंट,बदतमीजी सब कुछ झेलना पड़ा। धीरे-धीरे उन्होंने अपने पंच से ही इन दकियानूसी सोच को ठिकाने लगाया।
ऐसे लहराया जीत का परचम
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साल 2004 में इंडियन आइडियल की टीम की सुरक्षा का जिम्मा उठाने के बाद मेहरुन्निसा की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई। मेहरुन्निसा अब मर्दानी बाउंसर और डॉल्फिन सिक्योरिटी सर्विस प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी चला रही हैं। वह अमिताभ बच्चन, रणबीर कपूर, प्रियंका चोपड़ा, रानी मुखर्जी ,दीपिका पादुकोण जैसी कई बड़ी हस्तियों को सुरक्षा दे चुकी हैं। जल्द ही उनपर एक किताब भी लिखी जाने वाली है। परिवार की सोच भी बदल गई है और समाज भी उन्हें इज्जत भरी नजरों से देखता है। इतना ही नहीं आस-पड़ोस, रिश्तेदार तो यहां तक ये भी कहते हैं कि बेटी हो तो मेहरुन्निसा जैसी। ऊपर वाला हर किसी को मेहरुन्निसा जैसी बेटी बख्शे।
मेहरुन्निसा की कहानी हमें यह दिखाती है कि महिलाएं किसी भी कठिनाई का सामना कर सकती हैं।
नारी शक्ति है सम्मान है
नारी गौरव है अभिमान है
नारी ने ही रचा ये विधान है
हमारा नतमस्तक, इसको प्रणाम है
हरजिंदगी के 'शक्ति रूपेण संस्थिता' अभियान के तहत हम आपके लिए ऐसी ही महिलाओं की कहानी लेकर आएंगे, जो पितृसत्तामक सोच के खिलाफ लड़ रही हैं।
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