नाम- स्वाति बेडेकर
काम- 'वात्सल्य फाउंडेशन' एवं 'सखी पैड्स' की फाउंडर
बदलाव- स्वाति बेडेकर सबसे सस्ते 'सखी सेनेटरी पैड्स' बनाती हैं और इस पैड को तैयार करने के लिए उनके साथ 10000 से भी ज्यादा गांव की महिलाएं जुड़ी हैं, जिनकी मदद से एक दिन में लगभग 50 हजार सेनेटरी नैपकिन तैयार किए जाते हैं।
'महिलाएं पीरियड्स पर बात करने से डरे नहीं। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, इसे धर्म से जोड़ना गलत है।' यह कहना है 'वात्सल्य फाउंडेशन' एवं 'सखी पैड्स' की फाउंडर स्वाति बेडेकर का, जो गांव बीहड़ में रहने वाली महिलाओं को पीरियड्स से जुड़ी जानकारी देने और उनके लिए सबसे सस्ते सेनेटरी पैड्स बनाने का काम करती हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि स्वाति ने पीरियड्स को लेकर महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों की मानसिकता को बदलने का भी काम किया है। गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को उन्होंने न केवल सेनेटरी पैड्स के महत्व के बारे में बताया है बल्कि उन्हें जॉब भी दी है।
कौन हैं स्वाति बेडेकर?
आपने 'पैडमैन' मूवी तो देखी ही होगी। इसमें एक ऐसे पुरुष की कहानी बताई गई है, जिसने सस्ते और ईको फ्रेंडली सेनेटरी पैड्स को बनाने का फार्मूला तैयार किया था। मगर इस फॉर्मूले पर अमल करते हुए गुजरात के बड़ौदा शहर की स्वाति बेडेकर ने ग्रामीण इलाकों में रहने वाली गरीब और कम पढ़ी लिखी महिलाओं के लिए सस्ते और अच्छे 'सखी पैड्स' बनाएं और उन्हें पीरियड्स के महत्व और सेनेटरी पैड्स के इस्तेमाल के बारे में बताया। पेशे से सांइस टीचर रहीं, स्वाति बेडेकर बीते 13 वर्षों से पीरियड्स और सस्ते सेनेटरी पैड्स बनाने के क्षेत्र में काम कर रही हैं। इतना ही नहीं, स्वाति ने अपनी संस्था 'वात्सल्य फाउंडेशन' से कई ऐसी महिलाओं को जोड़ा है जिन्हें रोजगार की जरूरत थी। बेस्ट बात तो यह है कि स्वाति बायोडिगरेबल सेनेटरी पैड्स बनाती हैं ताकि महिलाओं की सेहत के साथ-साथ पर्यावरण का ख्याल भी रखा जा सके।
क्या रहा संघर्ष?
कहते हैं न किसी भी काम को करने के दो रास्ते होते हैं। एक आसान और एक संघर्ष भरा। आसान राह पर चल कर बेशक आपका काम हो जाए मगर नाम नहीं होता है, मगर संघर्ष भरे रास्ते पर चल कर काम और नाम दोनों ही कमाया जा सकता है। स्वाति जी ने भी वो रास्ता चुना जो कठिन था, मगर उनके एक कदम ने लोगों की सोच बदल दी और आंखें खुल दी।
बात लगभग 13 साल पुरानी है। स्वाति गुजरात के एक ग्रामीण इलाके में किसी सरकारी प्रोजेक्ट को अंजाम देने गई थीं। तब उन्हें पता चला कि इस गांव की महिलाओं में सेनेटरी पैड्स को लेकर कोई जानकारी ही नहीं है और तो और गांव के सभी लोग पीरियड्स को भगवान का श्राप मानते हैं। इस अंधविश्वास को देख कर स्वाति के होश ही उड़ गए थे और उन्हें लगा कि 21वीं सदी में वो स्वतंत्र भारत की गुलाम महिलाओं के बीच खड़ी हैं।
उस गांव की महिलाएं पीरियड्स में होने वाली ब्लीडिंग को रोकने के लिए राख, मिट्टी और घास आदि का प्रयोग करती थीं, ये चीजें उन्हें केवल संक्रमित ही नहीं करती बल्कि उनकी जान तक ले सकती थीं। इस बात का आभास होते ही स्वाति बेडेकर ने तय कर लिया कि वो इस गांव की महिलाओं को न केवल पीरियड्स से जुड़े भ्रम से दूर करेंगी बल्कि उन्हें सेनेटरी पैड्स का इस्तेमाल करना और उसे बनाना भी सिखाएंगी।
हालांकि, शुरुआत में गांव के लोगों को स्वाति जी का पहल करना पसंद नहीं आया था और नाराज होकर उन्हें लोगों ने जान से मारने तक की धमकी दे डाली थी। मगर स्वाति ने डरकर अपने कदमों को पीछे नहीं खींचा, बल्कि निडर होकर आगे बढ़ी और वो किया जो उन्होंने सोचा था।
अचीवमेंट
वर्ष 2010 में स्वाति जी ने गुजरात के देवगढ़ बारिया गांव में 'सखी पैड्स' की पहली यूनिट खोली थी। अब देश के कई गांव और शहरों में स्वाति जी की 150 से ऊपर यूनिट हैं, जहां सेनेटरी पैड्स बनाए जाते हैं। 'सखी पैड्स' दो साइज में आता है। छोटे साइज का पैड 3 रुपए और बड़े साइज का पैड 5 रुपए का मिलता है।
स्वाति बेडेकर की इस सोच और हौसले को हरजिंदगी सलाम करता है। उम्मीद है कि आपको भी स्वाति बेडेकर की इस इंस्पिरेशनल स्टोरी को पढ़कर कुछ प्रेरणा मिली होगी। इस आर्टिकल को शेयर और लाइक जरुर करें, साथ ही ऐसे और भी आर्टिकल्स पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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