स्कूल टाइम हर बच्चे के लिए खास होता है। यहां मिली शिक्षा से जहां बच्चों का भविष्य बनता है वहीं यहां की गई मौजमस्ती बच्चों के जीवने में सुनहरी यादें बन कर रहती हैं। मगर यह जब हम आगनवाड़ी स्कूलों के बारे में सोचते हैं तो जहन में कुछ अलग ही तस्वीर बनती हैं। टूटी सीटें, उखड़ा ब्लैक्बोर्ड, गिरती हुई दीवारें और क्लारूम में बैठे गिनती के बच्चे। मगर झारखंड के हजारीबाद जिले में आईएएस, गरिमा सिंह ने अपने जिले के एक आगनवाड़ी स्कूल की तस्वीर इस कदर बदल दी कि देश भर के सरकारी स्कूलों के लिए वह एक मॉडल बन गया।
स्कूल को लिया था गोद
गरिमा सिंह बलिया जिले के गांव कथौली की रहने वाली हैं। वर्ष 2015 में यूपीएससी की एग्जाम में पूरे भारतवर्ष में 55वां स्थावन प्राप्त करने वाली गरिमा आइएएस ऑफिसर से पहले एक आइपीएस ऑफिर थी। आइएएस बनने के बाद गरिमा की पोस्टिंग झांरखंड के हजारीबागर जिले में हुई। जिले के दौरे के दौरान गरिमा ने कई आंगनवाड़ी स्कूल देखें जिनकी हालत ऐसी थी ही नहीं कि बच्चों को वहां पढ़ाया जा सके। यह देख गरिमा को बच्चों भविष्य की चिंता होने लगी। अपनी चिंता दूर करने के लिए गरिमा ने किसी तरह की सरकारी कारवाई करने की जगह इस समस्या को पर्सनली लिया और इसके समाधान के लिए मटवारी के स्कूल का गोद ले लिया। स्कूल में ढेरों कमियां थी। मगर गरिमा ने हार नहीं मानी । वह इस स्कूल दूसरे स्कूलों के लिए मॉडल के रूप में पेश करना चाहती थीं। वह बताती हैं, स्कू्ल ही बच्चों का भविष्य बनाते हैं मगर आगनवाड़ी स्कूलों की दशा इतनी खराब होती है कि बच्चे वहां आना ही नहीं चाहते। मैं चाहती थी बच्चे स्कूल आएं और आगे बढ़े। मगर इसके लिए पहले स्कूल को इस काबिल बनाना था कि बच्चे वहां आ सके।
खुद के पैसे लगाए
इसके लिए गरिमा ने बिना किसी की मदद लिए स्कू ल का स्ट्रक्चर सुधारने का फैसला लिया। इसके लिए उन्होंने खुद के पास से 50 हजार रुपए स्कूल के रेनोवेशन पर लगाए। गरिमा ने स्कूेल की मरम्मत करवाई, दीवारों में रंग पुतवाया और फिर उन पर बच्चों को पढ़ाई की ओर आकर्षित करने के लिए कार्टून बनवाए। इसके साथ ही गरिमा ने बच्चों के लिए मेजकुर्सियां बनवाई ताकि बच्चों को जमीन पर न बैठना पड़। गरिमा की इस कोशिश की वजह से यह आगनवाड़ी स्कूल पूरे देश के लिए एक मिसाल बन गया है। अब तो मटवारी गांव के लोगों को भी लगने लगा है कि बच्चा स्कूल ही जा रहा है और पढ़ कर उसका अच्छा भविष्य बनेगा। वैसे गरिमा ने पहले बार कोई ऐसा काम नहीं किया जो मिसाल के तौर पर याद रख जाए। पहले भी गरिमा काफी कुछ कर चुकी हैं। महिलाओं की सुरक्षा के लिए भी गरिमा ने काफी कुछ किया है। वूमेन हेल्प लाइन नंबर 1090 की शुरूआत भी गरिमा ने ही कराई थी।
पापा का सपना पूरा किया
गरिमा डॉक्टर बनना चाहती थीं और गरीबों का इलाज करके समाज सेवा करना चाहती थीं, मगर गरिमा के पिता ओमकार, जो कि पेशे से इंजीनियर हैं, चाहते थे कि बेटी सिवल सर्विसेस में जाए। अपने पापा का सपना पूरा करने के लिए ही गरिमा ने वर्ष 2012 में सिविल सर्विसेज का एग्जाम दिया और पास भी कर लिया। आईपीएस बन कर गरिमा ने अपने पापा का सपना तो पूरा कर ही दिया था मगर अभी उनके मन में समाज सेवा वाली ख्वाहिश रह गई थी। क्योंकि अब गरिमा सिवल सर्विसेज में आही चुकीं थी इस लिए उन्होंने इसी में और आगे बढ़ने की कोशिश की और साल 2015 में यूपीएससी फाइनल के एग्जाम दिए। इस बार उनकी 55 रैंक आई और वह आईएएस ऑफिसर बन गईं।
आसान नहीं था सफर
गरिमा का सफर आसान नहीं था। उन्हें ड्यूटी के साथ ही पढ़ाई भी करनी होती थी। वह बताती हैं, मैं लंच के टाइम पढ़ती थी। ड्यूटी के बाद जब घर जाती थी तब भी पढ़ती थी। मैंने इसी तरह फाइनल्स की तैयारी की थी। मगर मैं पूरी तरह कॉनफीडेंट थी कि मेरी रैंक आजाएगी।HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
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