हर व्यक्ति के जीवन में कई सारी चुनौतियां आती हैं लेकिन कुछ लोग ही जिंदगी की चुनौतियों को पीछे करके आगे बढ़ पाते हैं। कई बार यह चुनौतियां हमारे खुद के शरीर से भी जुड़ी हुई होती हैं। वैसे तो ऐसी कई चीज़ें होती हैं जिन्हें देखकर हम नजरअंदाज कर देते हैं। कभी-कभी हम अपनी सेहत के साथ भी ऐसा करते हैं और फिर कुछ समय बाद कोई बड़ी बीमारी हमारे शरीर में घर बना चुकी है। ऐसा अधिकतर महिलाओं के साथ होता है और ब्रेस्ट कैंसर के अधिकतर मामलों में तो यही होता है कि लोगों को इसके बारे में पता नहीं चलता।
ब्रेस्ट कैंसर अवेयरनेस मंथ चल रहा है और इस मौके पर WIN (Women Inspiring Network) की तरफ से एक छोटी सी पहल की गई जिसमें बतौर मीडिया पार्टनर हरजिंदगी की हिस्सेदारी थी। इस इवेंट में कई हस्तियां शामिल हुईं और कई ब्रेस्ट कैंसर विनर्स से मुलाकात भी हुई। उनमें से एक थीं अनुप्रिया सिंह। अनुप्रिया ने अपनी जिंदगी में काफी उतार चढ़ाव देखे और उस दौरान उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
हमसे खास बात-चीत में उन्होंने अपनी जिंदगी से जुड़े उस पहलू के बारे में बताया जिसके बारे में सुनकर शायद आपको भी उनके जज्बे को सलाम करने का मन करेगा।
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शुरुआत में ब्रेस्ट कैंसर इतनी आसानी ने नहीं पता चलता है और अनुप्रिया के साथ भी ऐसा ही हुआ। उन्हें ब्रेस्ट में एक लंप हो रहा था जिसके बारे में उन्हें समझ नहीं आया। पहली बार जब उन्हें लंप महसूस हुआ तब वो 7 महीने प्रेग्नेंट थीं। उस वक्त उन्होंने डॉक्टर से बात की तब उन्हें कहा गया कि ये हार्मोनल बदलाव की वजह से है।
5 महीने की बेटी को संभालते समय उन्हें दूसरी गांठ महसूस हुई। उन्हें ब्रेस्टफीड करवाने में दिक्कत महसूस होती थी और डॉक्टर ने उन्हें सजेस्ट किया कि बेटी को अब बॉटल फीड करवाना चाहिए। उन्हें लगा कि ये शायद कुछ ब्रेस्टफीडिंग का असर है या फिर ये कुछ और है।
उन्होंने अपनी डॉक्टर से इसके बारे में बात की और डॉक्टर ने कहा कि ये सिर्फ कैल्सिफिकेशन है। उनका टेस्ट हुआ और फिर उन्हें कहा गया कि ये गांठ कैंसर नहीं है। धीरे-धीरे समय अपनी गति से बीतता गया और उनकी बेटी को उनकी और जरूरत महसूस हुई। उन्होंने ध्यान नहीं दिया, लेकिन कुछ समय बात एक बार फिर से इस गांठ का पता चला। उस समय वो कोलकता में थीं और उन्हें ब्रेस्ट में कुछ हार्ड महसूस होने लगा। उन्हें शरीर में अन्य बदलाव महसूस होने लगे और उस वक्त तीन मेमोग्राम हो चुके थे और उसके बाद उन्हें सोनोग्राफी के लिए बोला गया।
सोनोग्राफी में एक गांठ का पता चला और सोनोग्राफी के बाद उन्हें बायोप्सी करने को कहा गया। बायोप्सी करने के पहले एक बार फिर ब्रेस्ट मैमोग्राम की बात उठी और उस वक्त भी मेमोग्राम की रिपोर्ट नॉर्मल थी, लेकिन अनुप्रिया ने सोनोग्राफी की रिपोर्ट दिखाकर बायोप्सी की बात कही। तब वो जयपुर अपने माता-पिता के पास पहुंच चुकी थीं। बायोप्सी से पहले एक और सोनोग्राफी की गई जिसमें फिर गांठ की बात सामने आई और उनकी बायोप्सी करने के बाद पता चला कि ये मैलिग्नेंट है यानी इसमें कैंसर मौजूद है।
उस समय उनसे कहा गया कि ये स्टेज 0 ही है, लेकिन असल में कुछ और ही मामला था।
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क्योंकि AIIMS में अनुप्रिया के दोस्त थे इसलिए उनकी बात पहले से हो रखी थी, लेकिन 10 महीने की वेटिंग और कई लोगों की उम्मीदों के ऊपर पैर रखकर अनुप्रिया आगे नहीं बढ़ना चाहती थीं। वहां उन्हें पता चला कि स्टेज 0 नहीं है और इसकी सर्जरी के लिए इंतज़ार नहीं करना चाहिए।
इसके बाद अनुप्रिया के पति विक्रम सिंह ने टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल मुंबई में बात की जहां पर उनकी रिपोर्ट्स देखकर कहा गया कि सर्जरी में देर नहीं करनी चाहिए। उसके बाद उनकी सर्जरी हुई और उन्हें ये पता चला कि वो काफी एडवांस स्टेज 3 में थीं।
2009 में जब ब्रेस्ट कैंसर को लेकर इतनी बात नहीं होती थी तब अनुप्रिया के लिए इसके बारे में सोचना बहुत मुश्किल था।
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अनुप्रिया को बहुत डर था क्योंकि उन्हें लगभग 1 साल से ये कैंसर था और उनकी बेटी भी 1 साल की ही थी। वो उसे ब्रेस्टफीड भी करवाती थीं। अनुप्रिया की सर्जरी के बाद उन्हें डॉक्टर ने कहा कि वो अगर खुद ये भरोसा नहीं करेंगी कि वो ठीक हो जाएंगी तो कोई नहीं कर पाएगा। अनुप्रिया की स्थिति बहुत ही गंभीर हो गई थी और उस समय उनकी बेटी और उनके परिवार का साथ ही उनके लिए सब कुछ था।
अनुप्रिया की कीमोथेरेपी की बात शुरू हुई और 17 कीमो साइकिल उन्हें लेनी थी। इसका खर्च बेहद भारी था और दर्द की कल्पना करना आसान नहीं था। पहली बार इस ट्रीटमेंट के लिए जब अनुप्रिया ने यात्रा की तब उनका ब्रेस्ट रिमूव हो चुका था और उनके शरीर पर 45 टांके लगे हुए थे।
अनुप्रिया को ये तकलीफ झेलनी ही थी क्योंकि उनकी बेटी उनके सामने थी। उन्हें ठीक होना ही था क्योंकि उनका परिवार उनके लिए आस लगाए बैठा था।
जब एक ब्रेस्ट की जांच की गई उसके बाद दूसरे ब्रेस्ट के टिशूज को भी परखा गया और उसमें भी कुछ खतरा समझ आया और इंडियन मेडिकल असोसिएशन के हिसाब से दोनों ब्रेस्ट नहीं रिमूव करवाए जा सकते इसलिए उनके दूसरे ब्रेस्ट का कुछ हिस्सा रिमूव किया गया।
अनुप्रिया के परिवार ने उनका साथ बिल्कुल नहीं छोड़ा और उनका साथ ही उनकी सबसे बड़ी ताकत बना। अनुप्रिया का मानना है कि अगर मरीज ही जीने की आस छोड़ दे तो उसके लिए, उसको ट्रीट कर रहे डॉक्टर के लिए और उसके परिवार वालों के लिए बहुत ही मुश्किल स्थिति पैदा हो जाती है।
अनुप्रिया ने अपने लिए और अपने परिवार के लिए जीने की आस जगाए रखी और धीरे-धीरे इस बीमारी से निजाद पाई। वो पहले से ही एक्टिव थीं और इसलिए उनके शरीर ने उनका साथ दिया, लेकिन इसका दर्द बहुत साल रहा।
कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट्स की वजह से उनके हाथ में स्वेलिंग होने लगी थी और उनका शरीर कमजोर पड़ गया था, लेकिन हिम्मत कमजोर नहीं पड़ी। अनुप्रिया ने अपनी जंग लड़ते-लड़ते कई साल गुजार दिए और आखिर उसे जीतकर ही बाहर आईं। अब ये माना जा सकता है कि अनुप्रिया ब्रेस्ट कैंसर विनर हैं।
अनुप्रिया की कहानी कई लोगों को प्रेरित कर सकती है और ये बता सकती है कि अगर आपको अपने शरीर को लेकर कुछ भी डाउट हो रहा है तो बैठिए मत बल्कि डॉक्टर के पास जाइए। अपनी जिंदगी की हीरो खुद बनिए।
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