इंडिया ही नहीं पूरी दुनिया में अपने छोटे से गांव को पहचान दिलाने वाली हिमा दास की कहानी

अपने खेल के दम पर इंडिया ही नहीं बल्कि पूरे वर्ल्ड में अपने गांव का नाम कर दिया 18 साल की हिमा दास ने। 

hima das story

असम के पांचवें सबसे बड़े शहर नगांव के जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर स्थित ढींग नाम के कस्बे करीब स्थित छोटे से गांव कंधुलिमारी से गुरुवार तक इस देश के लोग वाकिफ नहीं थे लेकिन इसी गांव की 18 साल की बेटी हिमा दास ने आईएएएफ अंडर-20 विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर ना सिर्फ इतिहास रच दिया बल्कि भारत के नक्शे में अपने गांव को एक खास पहचान दिला दी।

हिमा ने पिछले सप्ताह फिनलैंड में आयोजित इस चैम्पियनशिप में महिलाओं की 400 मीटर स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने का गौरव हासिल कर ना केवल अपने गांव बल्कि पूरे देश को गौरवांन्वित किया है।

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हिमा दास पर है गर्व

हिमा से पहले असम के भोगेश्वर बरुआ ने बैंकॉक में साल 1966 में आयोजित एशियाई खेलों में पुरुषों की 800 मीटर स्पर्धा का सोना अपने नाम करने का गौरव हासिल किया था।

भोगेश्वर ने एक समय पर इस बात का दुख जताया था कि क्या वह किसी अन्य भोगेश्वर को इस उपलब्धि को हासिल करते हुए देखने के लिए जीवित रहेंगे लेकिन हिमा ने उनकी इस निराशा को अपनी जीत से दूर कर दिया।

असम के 77 वर्षीय भोगेश्वर का कहना है, “ मुझे खुशी है कि हमारे पास और भी बेहतर कोई है।“

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हिमा का घर और परिवार

कंधुलिमारी गांव का तीसरा नम्बर घर हिमा का है। हिमा के घर के अंदर और बाहर सैकड़ों लोग मौजूद थे। हिमा संयुक्त परिवार का हिस्सा हैं और उनके परिवार में कुल 18 सदस्य हैं।

जिस दिन हिमा ने फिनलैंड में इतिहास रचा था उस दिन उनके घर बिजली नहीं थी और इस कारण उनके परिजन उनकी जीत के पल को नहीं देख सके।

हिमा की चाची पुष्पलता ने आईएएनएस से कहा, हिमा ने अपनी मां को गुरुवार रात को नौ बजे फोन किया और कहा कि उसकी स्पर्धा कुछ घंटों में शुरू होने वाली है। हम सब उसकी स्पर्धा को टेलीविजन पर देखने के लिए उत्सुक थे लेकिन बिजली न होने के कारण हम इस सुखद पल से वंचित रह गए। करीब चार घंटे तक बिजली नहीं आई।

पुष्पलता ने कहा, “हम हिमा के स्वर्ण पदक जीतने की खबर सुनकर उठे और भावुकता में निकले खुशी के आंसू परिजनों की आंखों से नहीं रुक रहे थे। पूरे गांव में जश्न का माहौल बन गया। राष्ट्रमंडल खेलों में उसकी असफलता के कारण हम दुखी थे लेकिन हिमा का कभी न हार मानने वाला हौसला उसे सफलता की ओर ले गया। यह तो अभी शुरुआत है।

इस खुशी के मौके पर हिमा के बचपन को याद करते हुए उनकी मां जोनाली ने कहा कि एथलीट का हमेशा प्रतिस्पर्धी रहने का रवैया होता है और वह कभी हार नहीं मानता।

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हिमा के बचपन की एक घटना

हिमा के बचपन को याद करते हुए उनकी मां जोनाली ने कहा, “एक बार एक गाड़ी चालक ने हिमा के स्कूल से घर ले जाने के आग्रह से इनकार कर दिया था और उसने उस चालक को चुनौती दी और उसे हराकर घर पहुंची। उसका स्कूल यहां से दो किलोमीटर दूर है।“

साथ ही जोनाली ने कहा कि उनकी बेटी खेतों में चराई से पहले अभ्यास करती है जो उनके घर से 50 मीटर की दूरी पर है। इसके बाद गांव के लोग वहां अपने मवेशियों को चराने ले जाते हैं।

नौ साल की उम्र में हिमा ने एथलेटिक्स को चुना था। उसने अपने पिता के साथ प्रशिक्षण की शुरुआत की थी। एक दिन ढींग नवोदय विद्यालय के खेल अध्यापक सामसुल हक की नजर हिमा पर एक स्कूल प्रतियोगिता के दौरान पड़ी।

हक ने इसके बाद हिमा की प्रतिभा को पहचाना और उसे जिला एवं राज्य चयनकर्ताओं से मिलाया जिसके बाद उसने गुवाहाटी में निपोन दास के मार्गदर्शन में 17 माह का प्रशिक्षण लिया और इसके बाद सब इतिहास बन गया।

हिमा का हुनर केवल एक एथलीट के रूप में ही नहीं बल्कि एक नेतृत्वकर्ता के रूप में भी उभर कर आया। जब उसने ओनी-एती में एक अवैध शराब की दुकान को खत्म करने के लिए महिलाओं के एक समूह का नेतृत्व किया। इस घटना ने उसके नेतृत्व कौशल को सबके सामने लाकर रखा।

शराब की दुकान के मालिक ने हिमा के 52 वर्षीय पिता को अदालत में घसीटा लेकिन उनके पिता ने कहा, यह मामला चल रहा है, लेकिन मैं इससे बिल्कुल भी चिंतित नहीं हूं। आखिरकार मेरी बेटी ने कुछ भी गलत नहीं किया है। मुझे उस पर तथा उसकी उपबल्धियों पर गर्व है।

असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने हिमा के माता-पिता से मंगलवार को मुलाकात की और उसे राज्य के पहले खेल एम्बेसेडर के रूप में नियुक्त करने की घोषणा भी की। इसके अलावा, हिमा की वापसी पर राज्य स्तर के एक कार्यक्रम में 50 लाख रुपये की पुरस्कार राशि की घोषणा की।

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