तमिलनाडु राज्य के छोटे से गांव में रहने वाली सांगवी आज कई नीट एस्पिरेंट्स के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हैं। 20 साल की सांगवी ने हाल ही में नीट की परीक्षा पास की है, जिसके बाद सांगवी की चर्चा देश भर में हो रही है।
आजादी के इतने साल बाद भी हमारे देश में ट्राइबल कम्युनिटी का विकास बहुत कम देखने को मिलता है, ऐसे में सांगवी का नीट एंट्रेंस पास करना मालासर जनजाति के लिए गर्व का विषय है। बता दें कि नानजप्पनु गांव में सांगवी से पहले किसी भी ट्राइबल महिला ने बारहवीं की शिक्षा नहीं ली थी। सांगवी अपनी जनजाति से बारहवीं पास करने वाली पहली छात्रा तो थी हीं अब वो पहली नीट क्वालीफाई करने वाली छात्रा भी बन गई हैं।
घरवालों ने हमेशा दिया साथ -
सांगवी के परिवारवालों नें उन्हें हमेशा शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया। घर की हालत खराब होने के बावजूद भी सांगवी ने हिम्मत नहीं हारी और लगातार पढ़ाई में लगी रहीं। सांगवी के पिता का सपना था कि सांगवी एक दिन डॉक्टर बनें। सांगवी ने 2017 में अपनी बारहवीं की शिक्षा पूरी की और इसी के साथ सांगवी अपनी जनजाति के बीच बारहवीं करने वाली पहली लड़की बनी। सांगवी कहती हैं कि वो हमेशा से ही डॉक्टर बनना चाहती थी, बचपन से ही उन्हें दवाइयों के बारे में पढ़ने और उनके बारे में जानने का शौक था।
कास्ट सर्टिफिकेट मिलने में हुई कई मुश्किलें -
सांगवी की माता वसंतमणि और पिता मुनियप्पन खेती करके अपने घर का गुजारा करते थे। पैसे की कमी होने के बावजूद भी दोनों अपनी बेटी को खूब पढ़ाना चाहते थे। सांगवी को कास्ट सर्टिफिकेट मिलने में काफी मुश्किलें आईं। दरअसल, सांगवी के माता-पिता के पास कोई कास्ट सर्टिफिकेट नहीं था, जिस वजह से उन्हें कोई भी सुविधाएं नहीं मिल पा रही थीं।
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार वहां के लोकल ऑफिशियल्स ने बताया कि कास्ट सर्टिफिकेट न होने के कारण वह उसे मालासर ट्राइब से जुड़ा हुआ नहीं मान सकते। हालांकि, एक गैर सरकारी संगठन से जुड़े आदमी शिवा ने इस गांव को लेकर एक वीडियो बनाया, देखते ही देखते वह वीडियो वायरल हुआ। लोगों को इस गांव की हालत का पता चला और गांव के लोगों पर सरकार का ध्यान गया। आखिर कलेक्टर के हस्तक्षेप के बाद सांगवी को उसका कास्ट सर्टिफिकेट मिल गया।
पिता की मृत्यु ने बढ़ा दीं मुश्किलें -
सर्टिफिकेट मिलने के बाद भी सांगवी की मुश्किलें कम नहीं हुई। बल्कि कुछ समय बाद ही कार्डियक अरेस्ट के चलते सांगवी के पिता का निधन हो गया, वहीं सांगवी की मां की आंखों की रोशनी भी कम होने लगी। पिता के निधन के बाद घर की माली हालत और भी खस्ता हो गई।
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कोरोना काल में बंद हुई कोचिंग -
प्राइवेट संगठन से जुड़े जिस आदमी शिवा ने सांगवी को जिस कोचिंग में स्कॉलरशिप दिलाई थी, कोरोना के कारण वो भी बंद हो गई। गांव में इंटरनेट और मोबाइल ना होने के कारण सांगवी की पढ़ाई पर असर पड़ा, वह इन कारणों से ऑनलाइन क्लासेज भी नहीं कर सकती थी। सांगवी अपने पिता की मृत्यु से अभी भी उबर नहीं पाई थी।
आखिर पूरा किया पिता का सपना-
कहीं ना कहीं इस सब कारणों से सांगवी का मन उदास हो गया था, पर बाद में शिवा की मदद से सांगवी ने परीक्षा के 2 महीने पहले जाकर कोचिंग अटेंड की और 2021 की परीक्षा में पेपर देने बैठी। अनुसूचित जाति के लिए नीट में 108 से 137 अंको का कटऑफ है, वहीं सांगवी ने परीक्षा में 202 अंक हासिल किए हैं।
इस वजह से सांगवी को यह ऑप्शन मिला है कि वह अपने मन के हिसाब से मेडिकल कॉलेज चुन सकती है। आगे की आर्थिक सहायता के लिए सांगवी तमिलनाडु सरकार से उम्मीद करती है। अभी भी सांगवी के जीवन में कई चुनौतियां हैं, पर वह इन्हें जरूर पार कर लेगी, इतना ही नहीं आज से कुछ सालों बाद हम सांगवी को किसी जिले में डॉक्टर के पद पर लोगों का इलाज करते हुए देखने की उम्मीद करते हैं।
यह था हमारा आज का आर्टिकल, सांगवी की यह इंस्पिरेशनल स्टोरी आपको कैसी लगी? हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं और इसी तरह के आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।
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